सोमवार, 18 मई 2009

पाने को उजास . . .






भविष्य की कोख में तेरे लिये क्या पल रहा है,
मत सोच देख सूरज, आज का फिर ढल रहा है ।


जो रह गया है काम बाकी पूरा कर ले वह भी,
तेरा काम आज का फिर, कल पर टल रहा है ।


आ गये आसमां पे सितारे, चांद भी आता होगा,
आज का दिन भी अब तो, कल में बदल रहा है ।


जल गई शमां रौशन करने को महफिल किसी की,
देखो परवाने को कैसे, उसपे हर पल मचल रहा है ।

उसे खबर है कि जल जाएगा, फिर भी पाने को उजास,
बेखबर मौत से अपनी, खुशी-खुशी खुद को छल रहा है ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. मत सोच देख सूरज, आज का फिर ढल रहा है - bahut hi sunder, zindagi sochne mein hi beet jaati hai.

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  2. जो रह गया है काम बाकी पूरा कर ले वह भी,
    तेरा काम आज का फिर, कल पर टल रहा है ।
    - सुन्दर संदेश !

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  3. समय की चाल को बखूबी एक गजल का रूप दिया है आपने... आभार.

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  4. जो रह गया है काम बाकी पूरा कर ले वह भी,
    तेरा काम आज का फिर, कल पर टल रहा है ।समय को कहाँ कोई रोक पाया है.......

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....