मेरे चुप रहने की आदत को उसने जाने क्यों,
मान लिया मन ही मन खुद से डरपोक हूं मैं ।
किसी बड़े की बात को सिर माथे लिया जब मैने,
तो भी हां कहने पर मेरे सोचा ये डरपोक हूं मैं ।
ना करने की आदत सीख ली होती अगर मैने,
तो शायद नहीं कहते मुझे वह कि डरपोक हूं मैं ।
वक्त होकर भी नहीं होता जब उनके लिये तो कहते,
व्यस्त होगा, कह नहीं पायेंगे चाहकर भी डरपोक हूं मैं ।
जैसे बेअदब हो गये हैं यह यदि मैं ऐसा न बन पाया,
तो क्या मुझे सुनना पड़ेगा ‘सदा’ यही डरपोक हूं मैं ।
शुक्रवार, 15 मई 2009
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- सदा
- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
achchi rachna
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