मंगलवार, 29 सितंबर 2009

मनाने की जिद लिये ...

उसका दर्द बन गया है अब दवा देखो,

हर पत्‍ता है खामोश कहां है हवा देखो ।

तुम मनाने की जिद लिये बैठे हो वहां,

कह रहा है दिल कौन है हमनवा देखो ।

तुझसे दूर होकर खुद से बिछड़ गया हूं,

उड़ी-उड़ी सी चेहरे की रंगत हमनवा देखो ।

छूटता हांथ से हांथ तो आंखे बात करती,

कब होगी अगली मुलाकात हमनवा देखो ।

धड़कनें चल रही है तो लोग कहते हैं जिंदा,

वर्ना बुत की मानिन्‍द हो गया हमनवा देखो ।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

जब मन हो मतवाला ....

विधि का विधान विधना ने कब है टाला,

उसके लिखे से मिले हर मुंह को निवाला ।

कर्म किये जा फल की इच्‍छा मत कर कहे,

तो सब पर होवे क्‍या जब मन हो मतवाला ।

सुख के सेवरे में दुख की काली रात छुपी,

घबराये न होनी से जो वही हिम्‍मतवाला ।

माला के फेर में मनवा मत पड़ना कहते,

जीते वही जिसने इसे सच्‍ची राह है डाला ।

माटी की देह माटी में मिल जाएगी किस,

अभिमान में तूने यह भरम मन में पाला ।

चूर होते हैं सपने टूटती आशाएं तब भी तेरे,

मन ने क्‍यों यह रोग इतने जतन से संभाला ।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

मां के सपने .....

सपने बुनते-बुनते,

आंखे थक सी गईं थीं

मां की कभी

वह कहती मेरा लाल

जल्‍दी से बड़ा हो जाए

फिर कहती

खूब पढ़-लिख जाए

लाल बड़ा भी हुआ

पढ़ लिख भी गया

मां की आंखो ने

फिर एक सपना बुना

अब यह कमाने लगे तो

मैं एक चांद सी

दुल्‍हन ले आऊं

इसके लिए

मैं डरने लगा था

सपनो से

कहीं

मैं

एक दिन

अलग न हो जाऊं

मां से

इन सपनों की वजह से

मां की दुल्‍हन भी

सपने लेकर आएगी

अपने साजन के

मैं किसकी

आंख में बसूंगा

किसके

सपने पूरे करूंगा ।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

तेरे बिन धड़कन नहीं ...

मैं आज भी तुझे अपने आस-पास पाता हूं

तेरी यादों को नये-नये रंगों में सजाता हूं ।

हर तस्‍वीर पूरी हो जाती मगर फिर भी,

उनको तेरे बिन धड़कन नहीं दे पाता हूं ।

मैं जिस राह पर चला तू हमसफर रही मेरी,

तेरे जाने के बाद भी अपने साथ ही पाता हूं ।

हर कोई तेरे होने की निशानी मांगे मुझसे,

तू मेरे साथ है हर पल बस यही कह पाता हूं ।

हर आंख में अमृत की बूंदों सी उभरी थी तू,

म‍हफिल जब भी तेरे गीतों की सजाता हूं ।

बुधवार, 9 सितंबर 2009

गुमनाम ख्‍यालों के पैगाम . . .

ये सफर आखिरी है मेरा उसे सलाम दे देना,

लौट के फिर न आऊंगा ये पैगाम उसे दे देना ।

म‍हफिलें सजती रहेंगी पर हम न उसमें होंगे,

कुछ गुमनाम ख्‍यालों के पैगाम उसे दे देना ।

पढ़ लिख कर वो इतना बड़ा हो गया ज्ञानी,

मेरी छोटी-छोटी बातों के पैगाम उसे दे देना ।

ख्‍यालों में रहकर वो ख्‍वाबों में घर कर गया,

मैं सदा पास रहूंगा तेरे ये पैगाम उसे दे देना ।

रस्‍सी जल जाए तो भी उसके बल नहीं जाते,

कह गए ज्ञानी-ध्‍यानी ये पैगाम उसे दे देना ।

यादों के जंगल में भटक जाओगे तो भूलोगे,

एक दिन खुद का पता ये पैगाम उसे दे देना ।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

पंक्ति पूरी होने को प्‍यासी है ...

आज शब्‍दों में कुछ उदासी है,

पंक्ति पूरी होने को प्‍यासी है

टूटे लफ्ज जोड़ने को आतुर,

हर लम्‍हा बात जरा खासी है ।

कोई कुछ कहता कोई कुछ,

यह कितना ज्‍यादा बासी है ।

मन ही मन इतनी उलझन,

हर शब्‍द इसका ही वासी है ।

लिख दे आज तू इनकी व्‍यथा,

पढ़े कोई इनकी जो उदासी है ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....