मंगलवार, 28 जून 2011

गीता का सत्‍य ....















तुम
जानते हो,
न्‍याय का मंदिर
हमारे देश का कानून
आज भी गीता की शपथ
लेकर सच कहने को कहता है
उसे विश्‍वास है
श्री कृष्‍ण ने
अन्‍याय नहीं किया था
कौरवों के साथ
न्‍याय था उनकी नजरों में
पांडवों का साथ देना
अपने पराये का पाठ
गीता का सत्‍य के रूप में
स्‍थापित होना
झूठ की अनगिनत
दलीलों के बीच
सच कहना ... सच सुनना
सच को साबित करना
हर रिश्‍ते से ऊपर
इंसाफ की दुहाई देना
न्‍याय और सिर्फ न्‍याय करना
गीता की शपथ देना
गुनहगार हो या निर्दोष
कर्म की प्रधानता बता
सत्‍य कहना ... सत्‍य सुनना ...।।

बुधवार, 22 जून 2011

पाकर इक मुस्‍कान ...











मेरा रूठना जाने क्‍यों तुमसे अक्‍सर हो ही जाता है,
रूठा ये दिल तुमसे जाने कितना कुछ कह जाता है ।

बदलती हवाओं सा यह भी ये आया वो गया हुआ,
पाकर इक मुस्‍कान तुम्‍हारी ये गुम सा हो जाता है ।

ढूंढती मैं बहाने तुमसे न मिलने के क्‍या करती जब,
अश्‍कों की कुछ बूंदो के संग सारे शिकवे ये कर जाता है ।

धड़कनों को पता है तेरे दिल में धड़कता है दिल मेरा,
मेरे वादे, मेरी कसमों का असर तुझ पर हो जाता है ।

उलझन मेरी सुलझाने के लिये तुमने सारे जतन किये,
मुहब्‍बत का मुहब्‍बत पे यकीं करना मुश्किल हो जाता है ।

मेरा इंतजार तुम मुझसे छिप कर करते हो अक्‍सर क्‍यूं,
कहो तो प्‍यार जताने से क्‍या इसका असर कम हो जाता है ।

शनिवार, 18 जून 2011

आशीषों तक पापा ....












यादों
की गलियों में लम्‍हा - लम्‍हा मेरा
जाता है बस आपकी आशीषों तक पापा ।

मैं बड़ी होकर भी तो नहीं बड़ी हुई कभी,
आपकी नजरों में रही हूं छोटी सदा पापा ।

मां की डांट से बचाते चुपके से समझाते,
मेरे लिये हंस के बहलाते मां को जब पापा ।

बचपन के दिन वो बचपन की बातें बताओ,
हम चाहकर भी क्‍यूं नहीं भुला पाते पापा ।

मैं भूली हूं न भूलूंगी कभी जिन्‍दगी मेरी तो,
आपके स्‍नेह की उंगली थाम के चली है पापा ।

मुस्‍कराहट आपकी निशानियां वो गुडियों की,
आज भी कैद हैं वो मेरी छोटी संदूक में पापा ।

मन मचल जाता है किसी बच्‍चे की तरह अब भी,
दहलीज़ पे जब कभी आकर बेटा कहते हो पापा ।

लिखी है हर याद आपके नाम बच्‍चों सी वो बातें,
जानती हूं पढ़कर होंगे आज भी मुस्‍कराते पापा ।

सोमवार, 13 जून 2011

दुआ ....











मैने
दुआ के वास्‍ते जब भी अपने हांथ उठाये हैं,
मेरी बंद पलकों में तेरे ही साये उतर आये हैं ।

मेरी फितरत में नहीं खुद की खुशी मांगना,
मैने गैरों के गम में अपने अश्‍क बहाये हैं ।

मेरे हंसने पे ऐतराज़ वो करते रहे जाने क्‍यूं,
जिनकी ख़ातिर मैने सदा हर ज़ख्‍म खाये हैं ।

रिश्‍तों की उम्र लम्‍बी होती है किसने कहा,
जाने कितने जीवनदान हर रिश्‍ते ने पाये हैं ।

दरो-दिवार में सिमटती रही जिन्‍दगी जिनकी,
उनसे पूछा शहर का हाल तो बस मुस्‍कराये हैं ।

मंगलवार, 7 जून 2011

प्‍यार तो ....








किसी से प्‍यार करना,

फिर उसपर खुद से ज्‍यादा

ऐतबार करना

कैसे किसी के लिये

यूं बेकरार हो जाना

भरी महफि़ल में तन्‍हां हो जाना

कभी तसव्‍वुर... कभी इंतजार

कभी बेरूखी प्‍यार की

सब बातों से परे

हसरत बस एक दीदार की

शिकायतें हजार हों प्‍यार में

फिर भी जाने क्‍यों ..

औरों के मुंह से शिकायत सुनना

नहीं भाता है कभी उसके लिये

आप जिये जा रहो

जिसके बिन ...

या जिसके साथ ...जिसके लिये

प्‍यार तो बस प्‍यार है

इसपर किसी का

ना हुआ अख्तियार है

बारिश की बूंदो सा

प्‍यार का अहसास

जैसे बहती हो नदिया

हिमशिखरों के पास

प्‍यार के अंक में

गहराई है

धरती पे देखो

अम्‍बर का साया

सारी सृष्टि इसमें समाई है ...।

गुरुवार, 2 जून 2011

शब्‍द हथियार मेरे हैं ...













मैं
चल दिया करता जब भी अमन की राह पे,
हर कदम पे अपने दुश्‍मन तैयार करता था ।

पूछा करता था उनसे ही फिर भी मैं हंसकर,
यारो बताओ तुम्‍हारा क्‍या लिया करता था ।

फासले दिलों के मिटा कर नजदीकियां लाया,
बस इक यही गुनाह मैं सरेआम करता था ।

मेरी कलम के शब्‍द हथियार मेरे हैं जिनसे मैं,
खामोश रह कर भी वार कर लिया करता था ।

सत्‍य की लड़ाई लड़ता हूं तो क्‍या गुनाह भला,
अपने सर बांध के कफ़न ही निकला करता था ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....