ज़िंदगी सबसे बड़ी शिक्षक
तो तू ही है, हर दिन..
हर पल... एक नया सबक
सिखाती है और credit भी
नहीं लेती ☺
वक़्त तो बड़ा ही व्यस्त है
ज़िन्दगी भी अब
इसकी अभ्यस्त है
नित-नई चुनौतियों की
ओढ़कर दुशाला
चलते-चलते
सोचता कोई है ..
जो मन की देहरी को
पार करने से पहले
दस्तक़ देकर,
पूछ ले हाल
मनमर्जियों की लग़ाम
पकड़ ले कसकर !
…
तुम्हें पता है न
विदा के वक़्त की मुस्कान
मन के हर भार को
हल्का कर देती है
और विश्वास को दुगुना
.. कि जो भी होगा
वो अच्छा ही होगा !!
नववर्ष की अनंत मंगलकामनाएं 🎉🎉
...
© सीमा 'सदा'
पर्व है ये
मातृ भाषा की उन्नति का
मन से मन को मिलाती
करती परिक्रमा
अंतर्मन की
सृजित होती,
उर्जित करती कर को
मन की करता चल
रुक मत तू आगे ही आगे
बढ़ता चल !
…
जाने कितने रंग समेटे
उत्सव का दिन
लेकर आई हिंदी
उल्लासित हैं
सब मिल-जुल,
स्वर-व्यंजन भी
हुए अलंकृत
नये-नये प्रतिमानों से,
मन के द्वार
सजी रंगोली
मंगल कलश
सजा कर कमलों में
करती हूँ अभिनन्दन तेरा
हिंदी, लगाकर तुझको
रोली चन्दन मैं !!
…
स्मृतियां आने से पहले
नहीं देती दस्तक़
वरना मैं आपको आज भी
हँसती हुई मिलती पापा
बना रही हूँ
मीठी सिवइयां
इनके बिना फीका लगता था
आपको हर त्यौहार
नेह के बन्धनों में बंधे हम
विस्मृत नहीं होते
कभी इन स्मृतियों से !
…
अक्षत से रोली
हँस के बोली
तुम भी मेरे भाई के माथे पर
सितारों से चमकते हो
मेरे रतनारी रँग पर
पावन सी दुआ बनते हो
इस विश्वास के साथ कि
मेरे भाई की कोई क्षति नहीं होगी
धागा नेह का
बंध के कलाई पर
अडिगता से निभाता है वचन
पवित्र रिश्ते का
सम्मान के संग !!
...
तुम और मैं
अक़्सर अब शब्दों में
मिलने लगे
विचारों में टटोलने लगे हैं
एक-दूसरे को
अपनेपन की दीवारों पर
कड़वाहटों की दरारें
उभर आईं हैं
जरूरत है इनको मरम्मत की !
…
ये जो तुम
सुप्रभात के नाम पर स्टेटस
लगा लेते हो न
इस पर अब कुदृष्टि लग गई है
अर्थ इनके जाने कितनी बार
अनर्थ कर देते हैं,
प्रेम, अनुराग, मित्रता
सबको लुभाने में सक्षम है
पर इन सुविचारों के रूप
अब परिवर्तित हो गए हैं,
हालातों के मारे
अपनों से छले गए लोगों ने
प्रेरक विचारों को
हथियार बना लिया है
तभी तो फ़रेब, धोखे की
तीख़ी मार से
प्यार भी घायल है
अपनेपन की आँखों में नमी है !!
….
न, तुम बुरा मत मानना
बस कुछ शब्दों की मैंने
आज यूँ ही मरम्मत की है,
कुछ जख्मी शब्दों को
दिलाई है दर्द से निज़ात भी
कुछ हिचकियों को ...
पानी भी पिलाया है
उठक-बैठक करते शब्द
कलम से माँग रहे हैं माफ़ी
कुंठित सोच को
न होने देंगे, खुद पर हावी
अनुचित न करेंगे न करने देंगे !!!
© सीमा 'सदा'