मन की बातों को ना कर के वह खुश हो जाता,
अपने आप में सोचता मैने मन को जीत लिया ।
घड़ी दो घड़ी का भ्रम उसके जीवन में कटुता भरा,
कहता कैसे मन पर अपने ही यूं आघात कर लिया ।
मन की चंचलता का क्या है वह हमारी खुशी में खुश,
हमारे गम में दुखी जाने तूने फिर क्या जीत लिया ।
मन को मार कोई ना पाया अरे तू तो उसका साया है,
समझा कर तुझको ये बातें उसने है तुझको जीत लिया ।
मन में है हर बात छुपी, आस, विश्वास, नेकी, और बदी,
कैसे ‘सदा’ उसको ना कर कहता तू तूने उसे जीत लिया ।
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