उम्र भर का रिस्ता वो तोड़ आया पल में,
जाने क्या देखा उसने आने वाले कल में ।
पलकों पे उसकी आंसू लबों पे तबस्सुम,
सारी यादों को जो छोड़ आया पल में ।
बन्द कर के मुठ्ठी खुद को ही दोष देता,
कैसे मैं आ गया उस बेवफा के छल में ।
बुराई का बदला बुराई मिला है नहीं समझा,
कोई, कैसे समझ पाता वो नादां इक पल में ।
कैसे मिटाऊं इन फासलों को ‘सदा’ के लिये,
बता दे मुझे तू आने वाले हर एक पल में ।
बुधवार, 20 मई 2009
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- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
sunder abhivyakti hai dil ko chhoone vali aabhar
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat likha hai aapne
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है
जवाब देंहटाएंबन्द कर के मुठ्ठी खुद को ही दोष देता,
जवाब देंहटाएंकैसे मैं आ गया उस बेवफा के छल में ।
-बेहतरीन!!
वाह ! वाह ! वाह ! लाजवाब ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंकोमल भावों को बहुत ही सुन्दर ढंग से अभिव्यक्ति दी है आपने.....