मन मेरा जो इतना आहत है,
फिर क्यों इस दिल में चाहत है ।
अन्तर्मन में खोखली हंसी के कहकहे,
कहते हों जैसे, कैसे लबों पे मुस्कराहट है ।
संवेदनाओं के शिखर अब ढहने लगे हैं,
नयनों में भी अश्को की छटपटाहट है ।
सच्चाइयों की बस्तियां वीरान हैं जबसे,
झूठ की ऊंची इमारतों में जगमगाहट है ।
बेनकाब हो के ‘सदा’ मायूसी ये बोली मुझसे,
किसके लबों पे आज सच्ची खिलखिलाहट है ।
kya khoob likha hai ...........adbhut.
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