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वफ़ा की चाहत में हम भटके थे बहुत,
मिली जो बन के मुहब्बत तो रास न आई ।
दर्द लिए जुदाई का बहुत दूर चले जाना चाहा,
तमन्ना थी जो मौत की तो पास ना आई ।
रहे तन्हा जिन्दगी का सफर कटा अकेले ही,
जब तक जियेंगे रहेगी साथ मेरी तन्हाई ।
राहे शौक में गर कदम मेरे डगमगाते न,
सच कहें होते ना तेरे हम यूँ तमन्नाई ।
हाले दिल सोचा जब भी "सदा" तुमको बताना,
फकत लबों पे दर्द आँखों में नमी थी उभर आई ।
वाह....
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है आपने...
"मिली जो बन के मुहब्बत तो रास न आई ।"
एक बात और कहूँगा ये शब्द पुष्टिकरण हटा दीजिये...
जवाब देंहटाएंbadhiya gazal.
जवाब देंहटाएंहाले दिल सोचा जब भी "सदा" तुमको बताना,
जवाब देंहटाएंफकत लबों पे दर्द आँखों में नमी थी उभर आई ।
बहुत संजीदा कलाम है आपका...जिन्दाकी की खुशियों पर भी तो लिखिए...फिर भी बहुत खूब कहा है आपने...बधाई...
नीरज