धरा का सीना छलनी है इतना,
देख के आंखे नम हो जाती हैं ।
देखें बरखा कब तक आ पाती है ।
जाने कब माटी सोंधी कर पाती हैं ।
लोगों की उम्मीदें जो बंध जाती हैं ।
झूमेंगी फिजायें पवन ये कहती जाती है ।
धरा का सीना छलनी है इतना,
देख के आंखे नम हो जाती हैं ।
देखें बरखा कब तक आ पाती है ।
जाने कब माटी सोंधी कर पाती हैं ।
लोगों की उम्मीदें जो बंध जाती हैं ।
झूमेंगी फिजायें पवन ये कहती जाती है ।
i am also waiting for rain
जवाब देंहटाएंbeautiful poem
मानसून कुछ और रुके तो अच्छी अच्छी मेघों वाली बहुत कविताएं रची जाएंगी इसी की तरह :)
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता !
bahut hi sundr bhaw ke sath sundar rachana
जवाब देंहटाएंsachmuch.............. barkhaa का intezaar तो सब को है........... meghon को dekh कर aas manbdhnaa तो swabhaavik है......... sundar rachnaa
जवाब देंहटाएंधरा का सीना छलनी है इतना,
जवाब देंहटाएंदेख के आंखे नम हो जाती हैं ।
मेघ करते आंख-मिचौली नभ में,
देखें बरखा कब तक आ पाती है ।
वाह...वाह....छंद बद्ध सुन्दर रचना ....!!
bahut shaandaar kavita........ waaqai mein baarish ka intezaar hai....... yahan lucknow mein to garmi se haalat kharaab hai....... aur shayad poorey india ka yahi haal hai......
जवाब देंहटाएंachha likha hai aapne...innocent kavita hai...
जवाब देंहटाएंव्याकुल हैं नयना रिमझिम बूंदें,
जाने कब माटी सोंधी कर पाती हैं ...yahaan par kuch kamee reh gayee hai,shayad punctuation ki hi chhoti si mistake ho,par flow zara ajeeb lag raha hai...
www.pyasasajal.blogspot.com
ek request hai..please remove this word verification..its not essential,and kai baar comment post hone me kuch technical errors bhi aaye hai is kaaran
जवाब देंहटाएंsunder rachana ke liye badhai
जवाब देंहटाएंछंद बद्ध ,आनंदमय रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सूरत रचना
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti hai badhaaI
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