मेरी जिन्दगी खुली किताब,
जो भी पढ़ना चाहे पढ़ ले,
कहता जा रहा वक्त का,
हर लम्हा जिसको,
जो करना हो वो कर ले,
मेरी जिन्दगी . . .
ना मैं रूकता हूं,
ना मैं लौटकर आता हूं,
जिसको पकड़ना है मुझे,
बस इसी पल पकड़ ले,
मैं कहता हूं अच्छा भी,
मैं कहता हूं बुरा भी,
कोई पल मेरा,
रच देता इतिहास,
कोई पल मेरा,
बन जाता
किसी के लिए बनवास,
मेरी जिन्दगी . . .
खुशियां भी लाता हूं,
रंजो गम भी झोली में,
जिसको जो लेना है,
वह उसी पल पकड़ ले ।
जीत भी है हार भी,
मन में भरपूर विश्वास भी,
मेरी जिन्दगी . . .
मैं गतिमान हूं,
ना मैं अभिमान हूं,
ना ही मैं मान हूं,
मैं तो हर पल नियति के,
साथ कदम से कदम,
मिलाकर चलायमान हूं,
मेरी जिन्दगी . . .
मेरा नाम रहता,
सब की जुबान पर,
फिर भी होते,
सब मुझसे अंजान से,
मैं रूकता नहीं,
मैं ठहरता भी नहीं,
मैं किसी के लिए,
बदलता नहीं,
मैं किसी से कुछ,
छिपाता भी नहीं . . . ।
मैं गतिमान हूं,
जवाब देंहटाएंना मैं अभिमान हूं,
ना ही मैं मान हूं,
मैं तो हर पल नियति के,
साथ कदम से कदम,
मिलाकर चलायमान हूं,
सच कहा...ये जीवन चलते rahne में ही saar है.............rukaa huvaa पानी भी sad जाता है ये तो जीवन है.......... bahoor अच्छा लिखा है ......... gatimaan लिखा है
Bahut khub likha hai.Badhai.
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