चल रही हवायें इन दिनों मतलब की,
तू चला कर तो जरा संभल-संभल के ।
इनका झौंका तुझे भी ना लेकर चल दे,
अपनी बात किया कर संभल-संभल के ।
हिसाब की बातें किया कर संभल-संभल के ।
नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,
लोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।
अब तो ‘सदा’ रिस्ते बनाया कर संभल-संभल के ।
नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,
जवाब देंहटाएंलोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।
सही व सटीक अभिव्यक्ति पर बधाई
स्नेहिल मित्र
हिन्द-युग्म पर मेरी अनेक गज़लें आपके स्नेह को प्राप्त हुई हैं आज भी
सरस पायस पर मेरे बालगीत बादल भैया.......आओ नाचें त ता थैया पर स्नेहिल टिपण्णी मिली आपका आभार
श्याम सखा श्याम
‘कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर’
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रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंनादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,
जवाब देंहटाएंलोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।
निभाने को रिस्ते-नाते बात कहने की होती है,
अब तो ‘सदा’ रिस्ते बनाया कर संभल-संभल के ।
bahut hi khubsoorat nzma aapne likhi hai ...........ek ek panktiyon me kuchh hai sikhane ko.......anupam
रिश्ते बहुत संभल के बनाने चाहिए, सही कहा!
जवाब देंहटाएं---
डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
निभाने को रिस्ते-नाते बात कहने की होती है,
जवाब देंहटाएंअब तो‘सदा’रिस्ते बनाया कर संभल-संभल के।
Dear SADA,
Aapka andaaze bayan kamaal ka.badhaai.