बुधवार, 27 दिसंबर 2017

लेखकों का गोत्र !!!!

मन में विचारों की आँधी चली,
लेखक का जीवन खंगाला गया
धर्म की पड़ताल हुई
गोत्र पर भी चर्चा हुई
तो पाया बस इतना ही कि
सारे लेखकों का
गोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !
....
मित्रता कलम से होती है
जो अपनी नोक़ से
कभी वार करती है तो
कभी बस फैसला आर-पार करती है
हर युग में लेखक
अपने धर्म का बड़ी निष्‍ठा से
पालन करता रहा
सच को सच, झूठ को झूठ, लिखता रहा
जाने कितनो का मार्गदर्शक बन
मन का मन से वो
संवाद करता रहा !!
....
कोरे पन्‍नों पर होती कभी
अंतस की पीड़ा
कभी जीवन की छटपटाहट तो
कभी बस वो हो जाता साधक
जागता रातों को
शब्‍दों का आवाह्न करता
पर धर्म से अपने कभी न डिगता
किसी पात्र को जीता है जब कोई लेखक
बिल्‍कुल उस जैसा हो जाता है
ना नर होता है नारी
वो तो होता है बस लेखक
जो विचारों की अग्नि में देता है आहुति
अपने दायित्‍वों की
लेखनी को अपनी पावन करता है
जब भी किसी की पीड़ा को
शब्‍दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!
... 

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

दोनों ही गूंगे !!!!

झगड़ पड़े सच और झूठ
तक़रार जब 
हद से ज्यादा होने लगी 
तभी जीभ बोली
किस बात का अहम है तुम्हें
मैं न होती तो 
तुम दोनों ही गूंगे होते !!!!

...

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

रंग जिंदगी के !!!





हँसती थी जब भी जिंदगी
खुशियों के मेले में
फ़िक्र, परेशानी, और
उदासियों के
गुब्बारे उड़ा कर
तालियाँ बजाकर
कोई मन बच्चा हो जाना चाहता था !
....
रंग जिंदगी के
सारे तुझसे हैं
ये मुहब्बत
बस उन अहसासों के
नाम अलग हैं !!

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

बुनकर थी सांसे !!!

बुनकर थी सांसे
बनाती रहती
लिबास नये
जिन्हें पहनकर
जिंदगी कभी मुस्कराती
कभी गुनगुनाती
कभी बस रूहानी हो जाती !!


गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

स्मृति हाज़मे की !!

स्मृतियों को मन की
फ़िक्र रहती है
तभी तो वो उसे
अकेला छोड़ती नहीं हैं
कोई खट्टी-मीठी
स्मृति हाज़मे की
खाई है कई बार
जब भी कभी
अकेलेपन की
बदहजमी हुई है 😊

सोमवार, 20 नवंबर 2017

फ़िक्र की धूप !!

..
कुछ रिश्ते
जिंदगी होतें हैं
परवाह और
अपनापन लिए
जिनमें फ़िक्र की
धूप होती है
और ख्यालों की छाँव !!!
...
शब्दों की बारिश से
भीगा है मन
मेरे आस पास
कुछ नमी सी है
कहीं तुम उदास तो नहीं ??

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

कुछ रिश्ते !!!

कुछ रिश्ते
होते हैं कुम्हार से
गढ़ते ही नहीं
आकार भी दे देतें हैं
जीवन को ।
..
कुछ रिश्ते
होते हैं अजनबी से
अन्जाने बिना नाम के
शायद भावनाओं के
जो वक़्त और
परिस्थिति से निर्मित
मन के आँगन में
बने और पनपे होते हैं।
...

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

उम्मीद की हथेली !!!

बदल जाने के लिए
वक़्त होता है रिश्ते नहीं
रूठें तो मनाओ
मन की गिरह खोलो
अपनेपन की ऊँगली
पकड़कर पार कर लो
हर मुश्किल को !!
...
कुछ रिश्ते 
होते हैं सच्चे
झूठ की गिरफ़्त से 
कोसों दूर
जैसे यक़ीन के काँधे पर
टिकी हो कोई
उम्मीद की हथेली !!

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

सिक्के मुस्कराहटों के !!!!

मैंने टांक दिया है आज फ़िर
तेरे खामोश लिबास पे
हँसी की जेब को
जिसमें कुछ सिक्के भी
रख छोड़े हैं मुस्कराहटों के
जो तुम्हें चाह कर भी
खिलखिलाने से नहीं रोक पाएंगे !!

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

नमक तेरी वफ़ा का !!


कुछ पाक़ीज़ा से रिश्‍ते 
जिनकी सरपरस्‍ती के लिये 
दुआ़ जब भी निकलती 
सर पे कफ़न बाँध के 
ये कहते हुए 
मु‍मकि़न हो के न हो 
पूरा कर के लौटूंगी
तेरी ख्‍वा़हिश मेरे मौला !
... 
तबस्‍सुम की गली 
मिला दर्द अंजाना सा तो 
बढ़ा दी हथेलियाँ मैने 
ओक़ में, 
बस आँसू थे ज़ानां 
कुछ नमक मिला था इनमें 
सलीक़े का इस क़दर 
बस लबों को खारापन दे गये 
इस उम्‍मीद के साथ 
जब भी इनका जि़क्र होगा 
तेरा नाम न अाने देंगे 
सिहर गई पी के जिंदगी इनको
और एक वादा किया 
ये नमक तेरी वफ़ा का 
ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!
... 

शनिवार, 16 सितंबर 2017

जीवन की विरासत !!!

तुम सम्बन्धों को समझते हो
तभी तो सारी मुश्किलों को
हँसते हँसते हल करते हो !
...
वैभव से कहा था तुमने
अभिमान मत करो
खुद पर ...
जिस दिन धरा या गगन
अभिमान कर लेंगे
तुम्हें सर छिपाने के लिए
एक कण नसीब नहीं होगा
शानों-शौक़त सब धरे रह जायेंगे !!
....
मानव का सम्बन्ध
प्रकृति से हो या अपनों से
निश्छल होकर ही
इस जीवन की विरासत को
संवारा जा सकता है !!! 

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

तर्पण मेरा इस पितृपक्ष मे !!!


पापा ये पितृपक्ष
आता है जब
मैं हरदिन
तर्पण करती हूँ
ये सोच के
आप दूर जाकर भी
नहीं जा पाये मन से
मेरी अँजुरी में जल के साथ ही
समाहित है अश्रुजल की बूंदें भी
करुण पुकार ह्रदय की
श्रद्धा से अर्पित आपको !
...
जल में पल छिन यादों के
ये तिल स्वरूप
आपके निमित्त किये
श्रद्धा से जो किया जाये
वो आप तक पहुँचता है
समर्पित है आपको
भावों भरा तर्पण मेरा
इस पितृपक्ष मे !!!

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

समय सबसे बड़ा शिक्षक !!!

गुरू के रूप अनेक हैं
माता-पिता
भाई बन्धु सखा
पर समय
सबसे बड़ा शिक्षक है
जाने कितना कुछ सिखाता है
उसे भी नमन _/\_
आज के दिन
जिसने ये अवसर दिया
ज्ञान अर्जित किया है
जिस किसी से भी
छोटा हो या बड़ा
उसे स्वीकारो 😊
और सहज रहो !!

शनिवार, 5 अगस्त 2017

दोस्ती का बंधन भी !!!

कुछ रिश्ते
होते हैं प्रगाढ़
जिनकी रगों में
नहीं दौड़ता रक्त
आपसी सम्बन्धों का
बस बन्धन होता है
मन का मन से !
...
कुछ रिश्तों की
बात होती है अनोखी
ज़िक्र होता है इनका
जब भी
तो होता है एहसास
ये रूहानी रिश्ते हैं
दूरियाँ इन्हें क्या बांटेंगी !
दोस्ती का बंधन भी
कुछ ऐसा ही एहसास देता है !!!!
...

रविवार, 23 जुलाई 2017

मन थोड़ा अनमना सा ....

मन थोड़ा अनमना सा घर के कुछ कोने उदास हैं
दूर गया है आज वो मुझसे जो मन के पास है !

कैसे रहना है अपनों से दूर बेगानों के बीच जाने ना
जिसने जाना ना हो अपनेपन की होती क्या प्यास है !

खोया पाया लिया दिया इन बातों का हिसाब न रखा,
उन लम्हो को फिक्स कर दिया जो लगे कुछ खास हैं !

कीमत मत पूछना बहुत कीमती हैं जज़्बात अपनेपन के
अनमोल रिश्तों में खास होता बस यही इक अहसास है !

तस्वीर दीवार पे लगाई तुमने हर पल सामने रहने को
जी भर देखा भी नहीँ जाता सदा होता जब मन उदास है
  

शुक्रवार, 30 जून 2017

तुमने क्या - क्या किया है !!!

कभी ये कहना
कि तुमने ये नहीँ किया से
ज़्यादा ग़ौर यदि
इस बात पर किया होता
कि तुमने क्या - क्या किया है
तो मन उत्साहित हो जाता
और जो रह गया है शेष
उसे पूरा करने में
जुट जाता जी-जान से 😊

शनिवार, 17 जून 2017

बाँहों में आपकी पापा !!!

दुआओ के झूले
कितने हैं झूले
बाँहों में आपकी पापा
थकान को
मुस्कान में बदलने का
हुनर सीखा है आपसे ही
हम मुस्कराते हैं
वज़ह इसकी आप हैं
ज़रूरत हमारी
लगती न आपको
कभी भी भारी
हिम्मत से आपने हर
मुश्क़िल की है नज़र उतारी !!

शनिवार, 20 मई 2017

माँ की नज़रों से ...


माँ की फूंक
चोट पे मरहम
माँ के बोल
मुश्किल समय में दुआ
माँ की गोद
बीमारी में दवा
माँ का हाथ
पीठ पे हौसला
बन जाता है
ये जादू नहीँ तो क्या है
परवाह और फ़िक्र का
माँ की नज़रों से
बच पाना मुश्किल ही नहीँ
नामुमकिन भी है 😊

रविवार, 12 मार्च 2017

हँसे गुलाल !!!

गुलाल उड़ा
मन ही मन रंगा
पगला मन !
..
रंग से मिल
गलबहियाँ डाल
हँसे गुलाल !
..
रंग बरसा
होली के रंग से
रंगी धरा भी !
..
फागुन संग
पवन खेले रंग
उड़े गुलाल !
...
रंग अबीर
सजधज के आये
मनाओ होली !

मंगलवार, 31 जनवरी 2017

बासंती पर्व !!!!

बसंत पंचमी को
माँ सरस्वती का वन्दन
अभिनंदन करते बच्चे आज भी
विद्या के मंदिरों में
पीली सरसों फूली
कोयल कूके अमवा की डाली
पूछती हाल बसंत का
तभी कुनमुनाता नवकोंपल कहता
कहाँ है बसंत की मनोहारी छटा ?
वो उत्सव वो मेले ???
सब देखो हो गए हैं कितने अकेले
मैं भी विरल सा हो गया हूँ
उसकी बातें सुनकर
डाली भी करुण स्वर में बोली
मुझको भी ये सूनापन
बिलकुल नहीँ भाता !!
....
विचलित हो बसंत कहता
मैं तो हर बरस आता हूँ
तुम सबको लुभाने
पर मेरे ठहरने को अब
कोई ठौर नहीं
उत्सव के एक दिन की तरह
मैं भी पंचमी तिथि को
हर बरस आऊंगा
तुम सबके संग
माता सरस्वती के चरणों में
शीष नवाकर
बासंती पर्व कहलाऊंगा !!!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....