बुधवार, 30 जून 2010

शुभा होता है .....



हिचकियों के आने से तेरे,

याद करने का शुभा होता है ।

यादे होती हैं सहारा इंसान का,

जिनसे हर शख्‍स बंधा होता है ।

तनहाईयां डस लेती आदमी को,

परछाईयों का इनपे पहरा होता है ।

मिलना-बिछड़ना खेल तकदीर के,

आदमी बस इक खिलौना होता है ।

दिल की गहराईयों से चाहो जिसे,

बस वही तो दिल में बसा होता है ।

शुक्रवार, 18 जून 2010

पैरों में पाजेब की तरह .....





आज पहरे पर मुहब्‍बत के नफरत बैठ गई ऐसे,

किसी ने मुहब्‍बत की कीमत अदा कर दी जैसे ।

वफा का सिला बेवफाई प्‍यार के बदले नफरत ये,

लगता किसी गुनाह की सजा मैने पाई हो जैसे ।

बेडि़यां पड़ गई पैरों में पाजेब की तरह मैं चली,

एक कदम भी हौले से तो खनक जाएगी जैसे ।

खुशियों के मेले में गम तन्‍हा मेरे पास अकेला,

रास नहीं आई हो उसे हंसी की महफिल जैसे ।

रूठती गई किस्‍मत जितना मनाया उसको मैने,

छोड़कर फैसला रब पर मैने भी सुकूं पाया जैसे ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....