शुक्रवार, 18 जून 2010

पैरों में पाजेब की तरह .....





आज पहरे पर मुहब्‍बत के नफरत बैठ गई ऐसे,

किसी ने मुहब्‍बत की कीमत अदा कर दी जैसे ।

वफा का सिला बेवफाई प्‍यार के बदले नफरत ये,

लगता किसी गुनाह की सजा मैने पाई हो जैसे ।

बेडि़यां पड़ गई पैरों में पाजेब की तरह मैं चली,

एक कदम भी हौले से तो खनक जाएगी जैसे ।

खुशियों के मेले में गम तन्‍हा मेरे पास अकेला,

रास नहीं आई हो उसे हंसी की महफिल जैसे ।

रूठती गई किस्‍मत जितना मनाया उसको मैने,

छोड़कर फैसला रब पर मैने भी सुकूं पाया जैसे ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. Jab doortak koyi nazar nahi aata,tab saath hota hai..bahut sundar rachana!

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  2. antim panktiya to bas....

    bahut badhiya manobhaav prastut kiye aapne

    kunwar ji,

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  3. "LUK-CHHIP KAR JO RAHA KAROGE
    TO FIR KAISE BAAT BANEGI ?
    SAMMUKH AAKAR BAAT KARO TO
    TUMSE MERI BAAT BANEGI "

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  4. कमाल की रचना ।
    अंतिम फैसला तो रब का ही होता है ।

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  5. बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

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  6. किसी ने मुहब्‍बत की कीमत अदा कर दी जैसे ।

    वाह.....मुहब्बत और दर्द को क्या पिरोया है आपने ....
    क्या बात है .....!!

    रूठती गई किस्‍मत जितना मनाया उसको मैने,
    छोड़कर फैसला रब पर मैने भी सुकूं पाया जैसे ।

    बहुत खूब .....!!

    खुदा के घर देर है अंधेर नहीं .....!!

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  7. वाह!हमेशा की तरह बहुत अच्छी है आभार

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....