आज पहरे पर मुहब्बत के नफरत बैठ गई ऐसे,
किसी ने मुहब्बत की कीमत अदा कर दी जैसे ।
वफा का सिला बेवफाई प्यार के बदले नफरत ये,
लगता किसी गुनाह की सजा मैने पाई हो जैसे ।
बेडि़यां पड़ गई पैरों में पाजेब की तरह मैं चली,
एक कदम भी हौले से तो खनक जाएगी जैसे ।
खुशियों के मेले में गम तन्हा मेरे पास अकेला,
रास नहीं आई हो उसे हंसी की महफिल जैसे ।
रूठती गई किस्मत जितना मनाया उसको मैने,
छोड़कर फैसला रब पर मैने भी सुकूं पाया जैसे ।
Jab doortak koyi nazar nahi aata,tab saath hota hai..bahut sundar rachana!
जवाब देंहटाएंantim panktiya to bas....
जवाब देंहटाएंbahut badhiya manobhaav prastut kiye aapne
kunwar ji,
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut hi dard bhara hai.
जवाब देंहटाएं"LUK-CHHIP KAR JO RAHA KAROGE
जवाब देंहटाएंTO FIR KAISE BAAT BANEGI ?
SAMMUKH AAKAR BAAT KARO TO
TUMSE MERI BAAT BANEGI "
बहुत उमदा रचना है बधाई
जवाब देंहटाएंलाजवाब ... बहुत खूब लिखा है ..
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना ।
जवाब देंहटाएंअंतिम फैसला तो रब का ही होता है ।
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
जवाब देंहटाएंकिसी ने मुहब्बत की कीमत अदा कर दी जैसे ।
जवाब देंहटाएंवाह.....मुहब्बत और दर्द को क्या पिरोया है आपने ....
क्या बात है .....!!
रूठती गई किस्मत जितना मनाया उसको मैने,
छोड़कर फैसला रब पर मैने भी सुकूं पाया जैसे ।
बहुत खूब .....!!
खुदा के घर देर है अंधेर नहीं .....!!
वाह!हमेशा की तरह बहुत अच्छी है आभार
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