गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

मंजिलों के रास्‍ते!!!

कर्तव्य की कोई भी राह लो
उस पर चलते जाने की शपथ
तुम्‍हें स्‍वयं लेनी होगी
राहें सुनसान भी होंगी
कोशिशें नाक़ाम भी होंगी
पर मंजिलें कई बार
करती हैं प्रतीक्षा
ऐसे राही की
जो सिर्फ उस तक
पहुँचने के लिए
घर से चला था.
.....
मंजिलों तक जाने के लिए
हमेशा अकेले ही
तय करने होते हैं रास्‍तें
अकेले ही चलना होता है
और पूछना होता है
पता भी मुश्किलों से
मुझे कितनी दूर 
यूँ ही तुम्‍हारे साथ
तय करने हैं
मंजिलों के रास्‍ते!!!

....

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....