सोमवार, 30 जुलाई 2012

मेरी हथेली की रेखाओं में ....

सीखा है तुमसे मुस्‍कराने का फ़न
जादूगरी शब्‍दों की  पाई है आशीष में
'' वक्‍़त की कलम में सच की स्‍याही भरना
हर फै़सला तुम्‍हारी मुट्ठी में होगा  ''

डगमगाये जब भी मेरे कदम
मुश्किल भरी राहों में
उंगली तुम्‍हारी मैं झट से थाम लेती हूँ

बुनियाद कितनी भी कमज़ोर हो
हौसला बन जाती हो तुम मेरा
जब भी तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
...  जब भी  जिन्‍दगी के साथ
चलना हो तो मैं तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
मैं जानती हूँ
रब मेरे गुनाहों को माफ़ नहीं करेगा
मैं जागते ही तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
नहीं दौड़ता मेरी धमनियों में
तुम्‍हारा रक्‍त
लिखा नहीं है मेरी हथेली की रेखाओं में
तुम्‍हारा नाम 
फिर भी दुआओं में तुम्‍हारा साथ
सुब्‍हो - शाम  मैं रब से मांग लेती हूँ
....





शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

शब्‍दों के अरण्‍य में ...

जब कभी एक साथ दो लोग मिलकर चलते हैं तो उन्‍ह‍ें कोई दो कहता है तो कोई 11 लेकिन जहां एक साथ 60 लोग शामिल हों तो उन्‍हें आप क्‍या कहेंगे कोई करिश्‍मा ही... इस करिश्‍में को अंजाम दिया है इस बार ब्‍लॉग जगत की बेमिसाल शख्सियत आदरणीय रश्मि प्रभा जी ने ... बेमिसाल इसलिए की उनके बारे में जितना भी कहा जाए वह कम होता है उनकी पारखी नज़र के तो हम सभी क़ायल हैं ही इस पुस्‍तक में स्‍वयं को पाकर अभिभूत भी हैं ... इन सबकी तलाश तो की रश्मि जी ने पर इन्‍हें साथ लेकर चलें हैं '' हिन्‍द युग्‍म '' के शैलेश भारतवासी जी रचना प्राप्ति से लेकर पुस्‍तक प्रकाशन से होते हुए पुस्‍तक को आप तक पहुंचाने का श्रमसाध्‍य कार्य आपने जितनी सहजता से किया है उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ... यह तो थी शुरूआत से लेकर पुस्‍तक प्राप्‍त होने के पलो की दास्‍तान ... अब उनसे भी मिलना है जो इसमें शामिल हैं ...

जैसे कभी आप फूलों के बाग में जाएं तो एक मनमोह‍क खुश्‍बू आपका मन मोह लेती है वहां पर किसी एक फूल का उल्‍लेख नहीं होता ... वहां तो सभी सुवासित हो अपनी सुगंध बिखेर रहे होते हैं बिल्‍कुल उसी तरह यह पुस्‍तक है जो '' शब्‍दों के अरण्‍य में ''  इसमें शामिल हर रचनाकार भी अपनी - अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त कर रहा है एक ऐसे वृक्ष की तरह जो अडिग है अविचल है और अपनी खूबियों से  सबको भा रहा है ... इसी  वजह से इस अरण्‍य से बाहर आना मुश्किल सा हो रहा है ... पर चलना तो है ही तो आइए  चलते हैं ... शब्‍दों के अरण्‍य में वृक्ष दर वृक्ष पहचान करते हुए ... इनका कहना गलत तो नहीं ...

जीवन जीवन होता है
भिन्‍न होता है तो दृष्टिकोण,
जो देता है मायने जीवन को ... अंजू अनन्‍या जी का यह '' दृष्टिकोण '' जानकर हम आगे चले तो ... देखते हैं

झूठ की सूली पर चढ़कर
सत्‍य अपना शरीर त्‍याग देता है,
मगर सच की आत्‍मा अमर होती है,
सच कभी मरता नहीं ... अनुलता राज नायर जी  '' रस्‍साकशी - सच और झूठ के बीच ''

समय मिले तो
मोरपंख के साथ जड़ लेना मुकुट में
अपने ये अलतई सुमन परिजात के ... अपर्णा मनोज जी   '' विष का रंग क्‍या तेरे वर्ण - सा है कान्‍हा ?''

न जाने कब से
संभाल कर रखा है उन्‍हें मैने
अपने दिल की अलमारियों में
अपनी ही सांसों की तरह ... अमरेन्‍द्र अमर जी ...के शब्‍दों में '' मेरी किताब के वो रूपहले पन्‍ने '' पर पाया मैने ''

वृक्ष की छाया, हरी धरती
पंछियों का बसेरा, शीतल बयार
क्‍यों छीन लिया जीवन का मूल आधार,
क्‍यों किया आपने वृक्षों का संहार .. ऋता शेखर मधु जी .. '' मत संहार करो वृक्षों का ''

ये बेनाम रिश्‍ते हम नहीं चुनते
ये तो आत्‍मा चुनती है
और आत्‍मा जिस्‍म नहीं
आत्‍मा चाहती है .. ... गार्गी चौरसिया जी ... वो रिश्‍ता .. '' अनमोल ''

ओ मृत प्राय पल !
जाओ और बनो मेरी मुक्ति के देवदूत
मुझे जन्म लेना है आभी तुम्हारी राख से... गीता पंडित जी ... मेरी बूढ़ी होती हुई इन अस्थियों को दे सको तो ...  '' ओ मृत प्राय पल ''

तुम्‍हें आंसू नहीं पसंद
चाहे मेरी आंखों के हों
या किसी और के
चाहते हो .. हँसती ही रहूँ .... डॉ. जेन्‍नी शबनम जी ... मेरी जिन्‍दगी जी चाहता है तुम्‍हें श्राप दे ही दूँ  '' जा तुझे इश्‍क हो ''


सुबह का सपना सच होता है
इसलिए सोते हुए, यही प्रार्थना
कि तुम्‍हारा सपना आये तो सुबह आये ... डॉ. निधि टंडन जी ... फिर सुबह से रात होने तक बस तुम्‍हारा ख्‍याल '' मेरी व्‍यस्‍तताऍँ ''


ठंडी आह भर कर
पुन: कोशिश करती लड़ती अपने विचारों से
आखिर
जीत जाते संस्‍कार और हार जाती वो ... डॉ. प्रीत अरोड़ा जी ... कहती है यही है वो '' संस्‍कारों की जीत ''

 
तभी तो कूडेदान में सिसकती
बेटियां यही प्रश्‍न उठाती हैं  ... डॉ. मोनिका शर्मा जी ... क्‍यों, कैसे मानुष न रहे हम ?   '' आखिर क्‍यों विक्षिप्‍त हुए हम ? ''


अफसानों को हसीन मोड़ पे छोड़ना
न चाहते हुए भी गम से रिश्‍ता जोड़ना
आसान तो नहीं होता
हवा के रूख को मोड़ना ... दिगम्‍बर नासवा जी .. कुछ न कुछ होने का ये अहसास शायद तभी तो ... '' कभी खत्‍म नहीं होता ''

पत्‍नी से बिछुड़ा आदमी
कर्मयोगी है
वह संसार से भाग नहीं सकता ... दीपिका रानी जी ... नई उम्‍मीदों, नए हौसलों के साथ ... '' पति से बिछुड़ी औरत ''

ओ गंगा तुम बहती हो क्‍यों
उस नदी में बहते देखा है
उसने हमारी सभ्‍यता को
फूले हुए 'शव' की तरह ... नित्‍यानंद गायेन जी ... आज वह सहमा हुआ है  ... '' आखरी पेड़ और चिडि़या ''

बचपन भले ही चला जाये
बचपना कहां जाता है
और शायद यही तो है
जो इंसान की मासूमियत
खोने से बचाता है ... पल्‍लवी त्रिवेदी जी ... '' हम सब ऐसे ही होते हैं ''

इन आंखों को पढ़ना बहुत मुश्किल है
पढ़ लिया तो फिर समझना मुश्किल है
समझ लिया तो फिर भूलना मुश्किल है ... मीनाक्षी धन्‍वंतरी जी ... सुंदर सौम्‍य, मुस्‍काती नम्र नम आंखे उनका '' व्‍यक्तित्‍व ''

एक ईमानदार
कोशिश,  बस इतना ही ... मुकेश कुमार सिन्‍हा जी .. शायद बन जाय शहंशाह तकदीर से ऊपर उठकर ... '' हाथ की लकीरें ''

अब रूकने की जरूरत है
और यह जानने की जरूरत है
शब्‍दों के अरण्‍य में हम सब एक साथ कैसे??... हमें खोजा रश्मि प्रभा जी ने ... जिनकी अद्भुत रचना '' तथास्‍तु और सब खत्‍म ''

हँसते - बतियाते
ये तारे
क्‍या
हमेशा ही इतनी खुशी से चमकते रहते हैं ?... रश्मि रवीजा जी ..  '' काली कॉफी में उतरती सांझ ''

मुझे बुलाना हो तो
शांत मन और मस्तिष्‍क से
बुलाओ
परमात्‍मा का ध्‍यान करो ......... राजेन्‍द्र तेला जी .... '' नींद मानो रूठ कर बैठ गई '' 

नहीं मिलेगा तुम्‍हें कभी वरदान
नहीं खोज पाओगे तुम उसका ब्रह्मांड ... वंदना गुप्‍ता जी ... '' और श्राप है तुम्‍हें मगर तब तक नहीं मिलेगा तुम्‍हें पूर्ण विराम ''


अब कोई सपना अपना नहीं
थमा उसे सपनों की पोटली
निश्‍चिंत हुई  ............ वाणी शर्मा जी ......भर गया मेरा अधूरापन ..........  '' मैं पूर्ण हुई, सम्‍पूर्ण हुई ''


मां को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा
वो हमेशा ही मेरे पास थीं और हैं अभी भी .... विजय कुमार सम्‍पत्ति जी ....आज सिर्फ मां की याद रह गई है .... '' तलाश ''


तुम्‍हें नहीं लगता
इस पूरी यात्रा में
सारे रिश्‍ते ज़ख्‍म ही बनकर रह जाते हैं ... विभारानी श्रीवास्‍तव जी ... तो रिश्‍तों से रू-ब-रू हो या ज़ख्‍म कुरेदो ... '' बात एक ही है ''

पर पेड़  से गिरे पत्‍ते
कहां फिर पेड़ पर लगते हैं
वो सूखे लम्‍हें भी
यहां - वहां बिखरे ही दिखते हैं .... शिखा वार्ष्‍णेय जी .......जिनके मन के किसी कोने में झिलमिलाते हैं ... '' कुछ पल ''



नादान ख्‍याल है / मगर सच में सोचती हूँ ऐसा
काश किसी याद को सिरहाने रख कर सो जाऊँ
और पा जाऊँ तुम्‍हें तब ............... शैफाली गुप्‍ता जी ......... क्‍या कम लगेगी मुझे... '' तुम्‍हारी कमी ''

 
जिंदगी की राह में
शूल भी हैं, फूल भी
किस - किस का त्‍याग करूं
और किसे वरण करूं .... संगीता स्‍वरूप जी ... नाते-रिश्‍ते सब मेरे दिल के बहुत करीब हैं ... '' किसे अर्पण करूं ''


इंसानों ने जो ऊँचे - ऊँचे टॉवर लगाये हैं
ये ही हमारे लिए मुसीबत लाये हैं .... संध्‍या शर्मा जी ..... मुझे सोचने के लिए छोड़ गई  ... '' चिडिया ''


हम जी न सकेंगे दुनिया में

माँ जन्मे कोख तुम्हारी से ... सतीश सक्‍सेना जी ...कैसे तेरे बिन दिन बीते, यह तुम्‍हें बताने का दिल है ..  '' तेरी याद में ''


उम्र के इस पड़ाव पर आ
निकलता हूँ जिस शाम
मैं घर से अपने
सात समुन्दर पार आने को ... समीर लाल जी ... उसके आने का सबब ... '' वापसी ''

लोग कहते हैं - कल छोड़ तो आज को जी
फिर भी यादें हैं कि अनचाहे चली आती हैं .... सरस दरबारी जी .... बस इस तरह से उम्र बीतती जाती है ... '' यादें ''

यदि ऐक्टिंग है तो अद्भुत है
 

करोडो से कम अमिताभ भी नहीं लेता
इस ऐक्टिंग के
इस बेचारे ने तो करोडो का खजाना
कोडियों के मोल बेचा है .... सलिल वर्मा जी ... तभी जनपथ पर बैठा भीख देखो मांगता है ...'' भिक्षुक ''

मैं मर्यादा पुरूषोत्तम राम
की मां कौशल्‍या नहीं
उनके अनुज लक्ष्‍मण
की मां सुमित्रा हूँ ? ...... साधना वैद जी ... फिर मेरी पीड़ा तुम्‍हारी पीड़ा से बौनी कैसे हो गयी? ... '' सुमित्रा का संताप ''  


कभी कभी आत्मा के गर्भ में
रह जाते हैं कुछ अंश
दुखदायी अतीत के ..... सुनीता शानू जी ... अमर बेल की मानिंद '' एक विचार '' 

हाँ ! आज मैं
मुहब्‍बत की अदालत में खड़ी होकर
तुम्‍हें हर रिश्‍ते से मुक्‍त करती हूँ  .... हरकीरत हीर जी .. दर्द के सहारे उस रिश्‍ते से मुक्‍त करती हूँ  '' मैं तुम्‍हें मुक्‍त करती हूँ ''

रामायण - महाभारत, वेद-पुराण इसी अरण्‍य की जड़े हैं .. पंचतंत्र की कहानियां यहीं लिखी गईं हैं .. प्रभु के निर्माण को रचनाकार अलग-अलग साँचे देता है ... 
''शब्‍दों के अरण्‍य में'' भी हर रचनाकार ने अपनी रचनाओं से पूरा न्‍याय किया है कहीं अध्‍यात्‍म है तो कहीं जीवन दर्शन कहीं यादों का संगम तो कहीं मुहब्‍बत तो कहीं शिकायत मुहब्‍बत से ... मैने भी एक छोटा सा प्रयास किया है ... हां इस प्रयास में कुछ नाम शामिल नहीं कर पाने का अफसोस जरूर है ... पर आप सभी के सहयोग की अपेक्षा भी है ... एक पहचान करने के लिए सभी से आपको भी पुस्‍तक की आवश्‍यकता महसूस हो रही होगी तो ... इसे आप प्राप्‍त कर सकते हैं ... ऑनलाइन फ्लिपकॉर्ट पर 
 
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 हिन्‍द युग्म,
1, जिया सराय,
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बुधवार, 25 जुलाई 2012

गिर गया तो फिर किसको नज़र आएगा

डर था मुझे वो टूटेगा तो बिखर जाएगा,
तुमसे जो मुंह फेरेगा तो किधर जाएगा ।

संभालता रहा खुद को भागती दुनिया में,
गिर गया तो फिर किसको नज़र आएगा ।

बेबसी जब भी पूछती मेरा हाल धीमे से,
सोचता कुछ कहा तो बन ज़हर जाएगा ।

बुत बना रहा वो हादसों को देखकर जब,
कहा लोगो ने इसतरह तो ये मर जाएगा ।

गुनाहों  की जो लोग माफ़ी भी नहीं मांगते,
पूछो तो बचाया इनको किस कदर जाएगा ।

शनिवार, 21 जुलाई 2012

तुम्‍हारी हर ख्‍़वाहिश को ...


















कुछ बातों पर
यकी़न करना जैसे कील चुभोना होता है
सच की नोक इतनी पैनी
फिर भी झूठ के
आवरण उसे ढंकते रहते हैं
चुभ सकती थी ऐसे जैसे किसी ने
ठोक दिया हो जबरदस्‍ती
पर वह चुभती रही हर बार
एक नई जगह पर
और छलनी कर देती पूरा का पूरा
...
कुछ बेबसी के लम्‍हों पर
फिर खा़मोशी ने
तान दी चादर बड़े ही सलीके से
हिचकियों की आवाजें
हलक से बाहर आ रही थीं दबी-दबी सी
उसने चादर का
एक कोना भर लिया मुंह में
सन्‍नाटा बेताब था
विद्रोह की गर्जना करने को
उसने हथेलियों से
दी थीं थपकियां
वो निढाल हो गया
कहना चाहता था
बेबसी तुम सन्‍नाटे की
दुलहन न बनती तो अच्‍छा था
वो मासूम़
जिसका कल रात कत्‍ल हुआ
वो फक़ीर अंधा था
सौंप गया था बड़े ही यकीन से
तुम्‍हें मेरे बाजु़ओं में
और मैंने
तुम्‍हारी हर ख्‍वाहिश को
चकनाचूर कर दिया !!!
...

बुधवार, 18 जुलाई 2012

खुद का खुद से नाता तोड़ता !!!













सब कुछ पा लेने के भ्रम में वह
जाने कितना कुछ वह
खोता चला गया
...
टूटता रहा जब भी कुछ
वह उसे जोड़ने के क्रम में
कभी वादे करता
कभी मिन्‍नतें करता
कभी बांधकर गांठ
किसी न किसी तरह  से
अपना काम चला ही लेता
...
होता मन जब भी प्रेम में
फूलों को तोड़ता
तुमसे स्‍नेह का रिश्‍ता जोड़ता
...
क्रोध की अग्नि में जब वह
अपना धैर्य खो देता
मैं की सर्वज्ञता में
रिश्‍तों को तोड़ता
....
वक्‍़त के साथ दौड़ता
इसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
....

सोमवार, 16 जुलाई 2012

आस्‍था का परम दर्शन !!!














आस्‍थावान होता है मन तो
भावनाओं का अभिषेक होना स्‍वाभाविक है
लेकिन  जब भी कभी यह आस्‍था
किसी दिन विशेष को ईश्‍वर की दहलीज़
पर आती  भीड़ का सैलाब़ आ जाता
ईश्‍वर की एक झलक पाने के लिए
धक्‍का-मुक्‍की मच जाती
पहले आप की श्रेणी यहां नादारद
सिर्फ रह जाता पहले मैं -पहले मैं
दर्शन करके अपना जीवन धन्‍य करना
.........
यह आस्‍था किसी दिन विशेष को ही
क्‍यूँ उमड़ती नवरात्रि हो महाशिवरात्रि
गंगा स्‍नान हो या फिर
हर की पौढ़ी पर मां गंगा की आरती
आस्‍था अपनी चरम सीमा पार करते हुए
उत्‍सव में परीणित हो जाती
यह उत्‍सव व्‍यापार हो जाता
मार्ग अवरूद्ध हो
संकरी गली में  तब्‍दील हो जाते
प्रसाद की दुकाने सज जाती ...
आलम यहां तक भी देखा
देव प्रतिमा को समर्पित जल
किसी अगले श्रद्धालु को अर्पित हो जाता
यही होता अंत में
आस्‍था का परम दर्शन !!!
आस्‍था जब भी कभी ईश्‍वर की दहलीज़
पर आती  भीड़ का सैलाब़ आ जाता
 .....

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

क्‍या कहूँ अब इन यादों को ... !!!














वो आज रूठा है यादों से
गुस्‍से से बोला
निकम्‍मी हैं ये तो
जब भी छुट्टी होती है
सोचता हूँ आज तो जी भर के सोना है
पर कहां आज तो आंखे रोज से पहले ही
तरोताज़ा हो गईं
यादें ले आईं सवेरे-सवेरे
एक फीकी सी बेड टी
मैं करवट बदल - बदल कर उसे अनदेखा करता  रहा
कानों में एक धीमी फुसफुसाहट सी हुई
ठंडी हो जाऊंगी तो बेस्‍़वाद लगूंगी
....
उफ् तुम्‍हें पता है हफ्तें भर की भागमभाग के बाद
ये संडे कितना प्‍यारा लगता है
एक भरपूर नींद हो कुछ ख्‍वाब हों
बस कोई खल़ल डालने वाला न हो
यादों का सुबह से आ धमकना
सच इन यादों की जगह
तुम होती तो
ये फीकी सी बेड टी भी मीठी लगती
हम मिलकर कुछ यादों का
एक स्‍पेशल बुके तैयार करते
कुछ यादों को साथ शेअर कर खिलखिलाते
कुछ को गुनगुनाते गीत की तरह
कुछ पलों को बनाते हम भी इक याद
कहते - कहते वो बड़बड़ा उठा
लो इन निकम्‍मी यादों ने मुझे भी
निकम्‍मा कर दिया :)
क्‍या कहूँ अब इन यादों को ... !!!


गुरुवार, 12 जुलाई 2012

वो गूंगी नहीं थी !!!

वो गूंगी नहीं थी,
उसे बोलना आता था,
उसे देता था दिखाई
सुनती रहती थी
धड़कनों की उथल-पुथल को
पर वह बस
खा़मोश रहती थी
मुहब्‍बत की हद़ से
वाक्रिफ़ थी
इसलिए कुछ कहती नहीं थी!!!

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

कभी यूँ भी आज़मा के देख ...

आज़माना है तो मुझे तो कभी यूँ भी आज़मा के देख,
मैं हँसती रहूँ तेरे हर सितम पर तू मुझे रूला के देख ।

जा डाल दी खाक़ मैने तेरे हर गुनाह पे कोई शिक़वा नहीं,
जा माफ़ कर तू भी कभी किसी को यूँ अपना बना के देख ।

मुश्किलों का भी अपना है एक मज़ा तू इक बार यकीं से
इन मुश्किलों की ओर हौसले से सर अपना उठा के देख ।

दौर मुश्किल हो हालात नाजु़क हों जब भी कोई साथ न दे,
ऐसे वक्‍़त में तू इक बार दिल से मुझे आवाज़ लगा के देख ।

बुलन्‍दी पर पहुंचने का कोई टोटका नहीं होता है बता दे उसे,
बस इक बार सदा  तू मन में लगन का दीप जला के देख ।

शनिवार, 7 जुलाई 2012

खामोशी को शब्‍द मिल जाएं .... !!!
















कुछ किवाड़ बंद हैं
सालों साल बीते नहीं बजी सांकल
चौखट ने नहीं सुनी उसकी खनखनाहट
ये कमरा जिसपे पड़ी कुर्सियों पे
बस धूल पसर जाती खामोशी की
कोने जालों से हैं भर जाते
व्‍यस्‍त मकड़ी हर दिन पूरी तन्‍मयता से
नया घर बनाती उतनी तल्‍लीनता से
जितना पहले वाला बनाया था
बहुत काम है उसके लिए तो
पूरा कमरा उसके आधिपत्‍य में जो है
....
कमरे में नमी सी है
इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
आहटों पर कान लगाये सन्‍नाटा भी थक चला है
अब वह चाहता है कोई आये
और भंग कर दे उसकी नीरवता को
इन दबी सिसकियों में
वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर 
कब तक ढहने से रोक पाएगा
....
जाने कितनी आवाजें गुम हैं
तुम्‍हें पुकारकर
आओ आजाद कर दो उन आवाजों को
तुम्‍हारा नाम हो हर तरफ़
तुम ही रहो हर तरफ़  बस तुम्‍हारी ही मुस्‍कान हो
जब बजे सांकल ...
तुम्‍हारी पायल के स्‍वर साथ देते हुए कह उठें
लो मैं आ गई ....
खामोशी को शब्‍द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
...





गुरुवार, 5 जुलाई 2012

यह दुआ है तुम्‍हारे लिए ....!!!


















किसी योद्धा सी तुम कमजोर विचारों को
मन से झटकते हुए आगे बढ़ती
करती सवाल खुद से
आस्‍थाओं का मान रखना
सबका ह्रदय में सम्‍मान रखना
पर फिर क्‍यूँ
जीवित न अपना स्‍वाभिमान रखना

कर्तव्‍य का रक्‍त धमनियों में
नितांत वेग से बहता हरदम
मैं करती हूँ, कर लूगीं, तुम फिक्र मत करो
हौसले की परछाईं बनकर
समर्पित खुद को करना
मुश्किलें कैसी भी आईं
त्‍याग की पहली सीढ़ी पर कदम
खुद का रखने में पहल करना
वक्‍़त की कसौटियों पर
हँसकर खुद को परखना
बेफिक्री की चादर उढ़ाकर सबको
खुद ख्‍यालों के बिस्‍तर पे  करवट बदलना
तुम्‍हारा देखा है मैने
...
आस्‍थाओं का मान रखना
सबका ह्रदय में सम्‍मान रखना
पर फिर क्‍यूँ
जीवित न अपना स्‍वाभिमान रखना
इस बात से सहमत हूँ शत-प्रति-शत
कुछ रहे न रहे
तुम्‍हारा यह हौसला और यह स्‍वाभिमान सदा रहे
यह दुआ है तुम्‍हारे लिए... !!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....