सब कुछ पा लेने के भ्रम में वह
जाने कितना कुछ वह
खोता चला गया
...
टूटता रहा जब भी कुछ
वह उसे जोड़ने के क्रम में
कभी वादे करता
कभी मिन्नतें करता
कभी बांधकर गांठ
किसी न किसी तरह से
अपना काम चला ही लेता
...
होता मन जब भी प्रेम में
फूलों को तोड़ता
तुमसे स्नेह का रिश्ता जोड़ता
...
क्रोध की अग्नि में जब वह
अपना धैर्य खो देता
मैं की सर्वज्ञता में
रिश्तों को तोड़ता
....
वक़्त के साथ दौड़ता
इसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
....
वाह: बहुत गहन अभिव्यक्ति सदा जी..
जवाब देंहटाएं'मैं' चीज़ ही ऐसी है जो इन अनुभवों से गुज़रती है. अंत में अहं से, स्वयं से भी नाता तोड़ने की अवस्था आ जाती है. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंमन ही तो है अलग अपनी ही बात कहता ..सुन्दर रचना .बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंटूटता रहा जब भी कुछ
जवाब देंहटाएंवह उसे जोड़ने के क्रम में
कभी वादे करता
कभी मिन्नतें करता ...
जो टूट जस्ता है उसमें अक्सर दरार आ जाती है ... खुद पे विश्वास रहे तो खुद से नाता जुडा रहता है ...
बहुत सुन्दर रचना सदा जी.....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
वक्त ने सभी को अलग कर दिया हे सब टूटता जा रहा है
जवाब देंहटाएंयूनिक तकनीकी ब्लाrग
सार्थक भाव लिए सुंदर एवं गहन भावभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंरहता कुछ नहीं ... सिवा भ्रम के
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन गहरे अर्थ लिए रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
सब कुछ पा लेने के भ्रम में वह
जवाब देंहटाएंजाने कितना कुछ वह
खोता चला गया
...
जिंदगी काट दी ...बस ऐसा ही होता
चला गया ......
खो देने का सुख जाना जब,
जवाब देंहटाएंपाने का आनन्द भी पाया।
वक़्त के साथ दौड़ता
जवाब देंहटाएंइसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
....बहुत खूब! बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
विषय समझने में थोड़ी मुश्किल हुई-
जवाब देंहटाएंटूट-फूट को जोड़ते, लगा गाँठ पर गाँठ ।
रहा अनवरत कर्मरत, पहर आठ के आठ |
पहर आठ के आठ, पाठ धीरज का पढ़ के ।
नेह बांध के साथ, निभाये वह बढ़-चढ़ के ।
सबसे आगे दौड़, छोड़ता पीछे सबको ।
खुद से नाता तोड़, याद कर जाए रब को ।।
क्या कहने
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
लालच बुरी बला ..
जवाब देंहटाएंजितना मिल जाए काफी होता है ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
मन की एक घुटन ...जो अंदर ही अंदर धुँआ धुआँ होती रहती हैं ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ दौड़ता
जवाब देंहटाएंइसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
बिल्कुल....सटीक पंक्तियाँ
वक़्त के साथ दौड़ता
जवाब देंहटाएंइसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
BEAUTIFUL LINES
वाह: बहुत गहन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,, सदा जी..,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
मन की गहनता को कहती सुंदर रच्न
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआइये पाठक गण स्वागत है ।।
लिंक किये गए किसी भी पोस्ट की समालोचना लिखिए ।
यह समालोचना सम्बंधित पोस्ट की लिंक पर लगा दी जाएगी 11 AM पर ।।
bahut achchi .....
जवाब देंहटाएंखुद का खुद से नाता तोड़ता....वाह ।
जवाब देंहटाएंपर हम आप से नाता नहीं तोड़ेंगे... :)
जवाब देंहटाएंबिछड़े सभी बारी-बारी
जवाब देंहटाएंयहाँ तक अपने से हम भी
खुद का खुद से नाता तोड़ता ....waah behatreen!!
जवाब देंहटाएंभाव विरेचन करती बहुत अच्छी प्रस्तुति है सदा जी .
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति:
जवाब देंहटाएंतोड़ते चले जाओ
फेविकोल है ना
बाजार से ले आओ!
काबू करलो क्रोध पर, शीतलता अपनाय।
जवाब देंहटाएंगुस्से बनते हिए, काम बिगड़ते जाय।।
वक्त के साथ दौड़ता
जवाब देंहटाएंइसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता
अहं का भाव सदैव घातक होता है
काफी गहन और सुंदर अभिव्यक्ति ...
सादर !
बहुत खूबसूरत रचना और सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसीमा सिंघल जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'सदा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 21 जुलाई को 'खुद का खुद से नाता तोड़ता' शिर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
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