कुछ किवाड़ बंद हैं
सालों साल बीते नहीं बजी सांकल
चौखट ने नहीं सुनी उसकी खनखनाहट
ये कमरा जिसपे पड़ी कुर्सियों पे
बस धूल पसर जाती खामोशी की
कोने जालों से हैं भर जाते
व्यस्त मकड़ी हर दिन पूरी तन्मयता से
नया घर बनाती उतनी तल्लीनता से
जितना पहले वाला बनाया था
बहुत काम है उसके लिए तो
पूरा कमरा उसके आधिपत्य में जो है
....
कमरे में नमी सी है
इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
आहटों पर कान लगाये सन्नाटा भी थक चला है
अब वह चाहता है कोई आये
और भंग कर दे उसकी नीरवता को
इन दबी सिसकियों में
वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर
कब तक ढहने से रोक पाएगा
....
जाने कितनी आवाजें गुम हैं
तुम्हें पुकारकर
आओ आजाद कर दो उन आवाजों को
तुम्हारा नाम हो हर तरफ़
तुम ही रहो हर तरफ़ बस तुम्हारी ही मुस्कान हो
जब बजे सांकल ...
तुम्हारी पायल के स्वर साथ देते हुए कह उठें
लो मैं आ गई ....
खामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
...
ओह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंखामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
बिल्कुल
कमरे की नमी मन के ही भावों का विस्तार है। अब तो पहले इन भवनाओं को कोई समझे फिर सब ठीक हो।
जवाब देंहटाएंखामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!बहुत सुन्दर भाव संजोए है सदाजी..सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... आ जाओ की इस खामोशी कों जुबां मिल जाए ...
जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी है आवाज़ मिलना ...
जब बजे सांकल ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी पायल के स्वर साथ देते हुए कह उठें
लो मैं आ गई ....
खामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
...
न जाने मन के भाव कहाँ और कैसे दस्तक देते हैं .... सुंदर प्रस्तुति
खामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण रचना.....
सदा जी, आपने स्वयं बड़ी सुन्दरता से खामोशी को शब्द दे दिए....
सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
सस्नेह
ख़ामोशी को ही शब्द देती आपकी रचना...
जवाब देंहटाएंखामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... आह! क्या ख्वाहिश है ………बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
....
जवाब देंहटाएंकमरे में नमी सी है
इन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
आहटों पर कान लगाये सन्नाटा भी थक चला है
अब वह चाहता है कोई आये
और भंग कर दे उसकी नीरवता को
इन दबी सिसकियों में
वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर
कब तक ढहने से रोक पाएगा
.... वाह
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअतीत को पुकारती ....सुहानी यादेँ !
जवाब देंहटाएंखामोशी अपना संवाद कह जाती है..अपनी ही भाषा में..
जवाब देंहटाएंsunder shabdo se man ki baat ko sajaya hai. sunder ehsaas.
जवाब देंहटाएंकमरे में नमी सी है
जवाब देंहटाएंइन दीवारों की सिसकियां शायद सुनी हों किसी ने
आहटों पर कान लगाये सन्नाटा भी थक चला है
अब वह चाहता है कोई आये
और भंग कर दे उसकी नीरवता को
इन दबी सिसकियों में
वह परत दर परत छिपी नमीं को आखिर
कब तक ढहने से रोक पाएगा,,,,,,,
वाह ,,,, भावो की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
अनूठी रचना ...
जवाब देंहटाएंबधाई !
sangrahniy v sarthak prastuti.धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
जवाब देंहटाएंsunder ,bahut sunder
जवाब देंहटाएंख़ामोशी भी कभी कभी बोल उठती है ..बहुत ही प्यारी रचना ..
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसन्नाटे को चीरते शब्दों की गूँज बहुत गहरी है.
जवाब देंहटाएंसुंदर संवेदनशील कविता.
"खामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए .... !!!"
जवाब देंहटाएंयह खामोशी से झूझ रहे अंतर्मन की गहरी चाह है. जीवित द्वारा जीवन की इच्छा है. सुंदर कविता.
नीरवता भंग करने को शब्दों की मनुहार ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
यही तो विडम्बना है कि खामोशीयों को ही तो शब्द नहीं मिल पाते ....बहुत बढ़िया गहन भावभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंजब बजे सांकल ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी पायल के स्वर साथ देते हुए कह उठें
लो मैं आ गई ....
खामोशी को शब्द मिल जाएं फिर कुछ और नहीं चाहिए
यही तो नियति है .ख़ामोशी को शब्द कहाँ मिल पाता है .
तुम ही रहो हर तरफ़ बस तुम्हारी ही मुस्कान हो
जवाब देंहटाएंजब बजे सांकल ...
वाह
khaamoshee ko swar mil jaaye,
जवाब देंहटाएंto dil ko sukoon man ko chain mil jaayegaa
sundar rachnaa
जज्बातों को शानदार ढंग से पिरोया है आपने
जवाब देंहटाएंमकड़ी ने नया घर बना लिया न ....?
जवाब देंहटाएंतो अब आप भी सांकल बजने का इंतजार कीजिये ....::))
बहुत सुंदर रचना .....!!