सोमवार, 30 जुलाई 2012

मेरी हथेली की रेखाओं में ....

सीखा है तुमसे मुस्‍कराने का फ़न
जादूगरी शब्‍दों की  पाई है आशीष में
'' वक्‍़त की कलम में सच की स्‍याही भरना
हर फै़सला तुम्‍हारी मुट्ठी में होगा  ''

डगमगाये जब भी मेरे कदम
मुश्किल भरी राहों में
उंगली तुम्‍हारी मैं झट से थाम लेती हूँ

बुनियाद कितनी भी कमज़ोर हो
हौसला बन जाती हो तुम मेरा
जब भी तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
...  जब भी  जिन्‍दगी के साथ
चलना हो तो मैं तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
मैं जानती हूँ
रब मेरे गुनाहों को माफ़ नहीं करेगा
मैं जागते ही तुम्‍हारा नाम लेती हूँ
नहीं दौड़ता मेरी धमनियों में
तुम्‍हारा रक्‍त
लिखा नहीं है मेरी हथेली की रेखाओं में
तुम्‍हारा नाम 
फिर भी दुआओं में तुम्‍हारा साथ
सुब्‍हो - शाम  मैं रब से मांग लेती हूँ
....





34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ....
    मगर तस्वीर थोड़ा भ्रमित कर रही है भाव समझने में...याने "तुम" किसके लिए प्रयुक्त हुआ है!!!
    सस्नेह

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  2. जो साथ नहीं, जो किस्मत में नहीं....उसे रब से माँगना अंतः को एक गहन पीड़ा के भाव से भर देता है. पर शायद मुट्ठी में भरे सच का फैसला यही है. भावमयी कविता.

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  3. कोई हो ऐसा प्रेरणास्रोत तो हौसला हमेशा ही बना रहेगा .... समर्पण के भावों को बखूबी लिखा है ॥

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  4. बहुत सुंदर रचना
    मन को छू लेने वाला भाव

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  5. अद्भुत समर्पण ...बहुत सुंदर भाव ....

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  6. बहुत ही सुन्दर ।

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

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  8. नहीं दौड़ता मेरी धमनियों में
    तुम्‍हारा रक्‍त
    लिखा नहीं है मेरी हथेली की रेखाओं में
    तुम्‍हारा नाम
    फिर भी दुआओं में तुम्‍हारा साथ
    सुब्‍हो - शाम मैं रब से मांग लेती हूँ

    आप खुशनसीब हो और आपसे खुशनसीब वो जिस पर आपको विश्वास है

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. नहीं दौड़ता मेरी धमनियों में
    तुम्‍हारा रक्‍त
    लिखा नहीं है मेरी हथेली की रेखाओं में
    तुम्‍हारा नाम
    फिर भी दुआओं में तुम्‍हारा साथ
    सुब्‍हो - शाम मैं रब से मांग लेती हूँ,,,,

    फिर भी आपको विश्वास है,,,,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  11. बहुत सुन्दर और भाव प्रधान रचना है सदाजी |
    आशा

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  12. ... जब भी जिन्‍दगी के साथ
    चलना हो तो मैं तुम्‍हारा नाम लेती हूँ

    कैसे सहेज लेती हैं आप .... सबके मन के से भाव.... बहुत सुंदर

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  13. अंतर्मन को छूती सुन्दर रचना...

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  14. हथेली की रेखाओं की क्या जरूरत, जब मन के आंगन पर लिखा हो नाम...

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  15. सीमा जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'सदा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 31 जुलाई को 'मेरी हथेली की रेखाएं...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  16. कर्म ही मेहनत है और मेहनत हाथो की लकीरो से पहचान सकते है
    यूनिक तकनीकी ब्लाग

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  17. समर्पण का सुन्दर भाव ....
    मन को छू जाने वाली रचना

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  18. साथ न होते हुवे भी मांगने की चाह ... शायद इसी को प्रेम की इन्तेहा कहते हैं ...

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  19. संगीता आंटी की बात से सहमत हूँ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....