कुछ पाक़ीज़ा से रिश्ते
जिनकी सरपरस्ती के लिये
दुआ़ जब भी निकलती
सर पे कफ़न बाँध के
ये कहते हुए
मुमकि़न हो के न हो
पूरा कर के लौटूंगी
तेरी ख्वा़हिश मेरे मौला !
...
तबस्सुम की गली
मिला दर्द अंजाना सा तो
बढ़ा दी हथेलियाँ मैने
ओक़ में,
बस आँसू थे ज़ानां
कुछ नमक मिला था इनमें
सलीक़े का इस क़दर
बस लबों को खारापन दे गये
इस उम्मीद के साथ
जब भी इनका जि़क्र होगा
तेरा नाम न अाने देंगे
सिहर गई पी के जिंदगी इनको
और एक वादा किया
ये नमक तेरी वफ़ा का
ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!
...
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