सोमवार, 11 दिसंबर 2017

बुनकर थी सांसे !!!

बुनकर थी सांसे
बनाती रहती
लिबास नये
जिन्हें पहनकर
जिंदगी कभी मुस्कराती
कभी गुनगुनाती
कभी बस रूहानी हो जाती !!


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-12-2017) को जानवर पैदा कर ; चर्चामंच 2815 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. साँसों का काम है चलना ... और कुंडली का काम नित नए रूप बदलना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह्ह्ह....सुंदर दार्शनिक पंक्तियाँ👌👌

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सात पंक्तियाँ .... एक एक पंक्ति कबीले तारीफ है

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....