शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

साधना शब्‍दों की ... !!!


















साधना शब्‍दों की
तुम्‍हारे शब्‍दों को जब भी मैं अपनी
झोली में लेती वे तुम्‍हारी खुश्‍बू से
मुझे पहले ही सम्‍मोहित कर लेते
तुम्‍हारे कहे का अर्थ
मैं पूछती जब भी चुपके से
वे संस्‍कारवश
पहले तो उनका अभिषेक करते
फिर नतमस्‍तक हो
तुम्‍हारे श्रीचरणों में अपनी कलम रख देते
तुम सहज़ ही अपना हाथ
मेरे सिर पर रख देती
सौम्‍य मुस्‍कान तुम्‍हारी
कांतियुक्‍त आभामंडल
एक अलौकिक तेज लिए प्रदीप्‍तवान 
तुम्‍हारे नेत्र जिसमें
मुझे नज़र आता स्‍नेह और स्‍नेह
मैं अपनी आंखों को भीगने से रोक नहीं पाती
....
ये किसका है जादू मै सोचती
तुम्‍हारे शब्‍द हैं ये
या फिर तुम्‍हारी छवि जो
मेरे नयनों में है
या वो ख्‍याल जो हर वक्‍़त
दूरियों के बीच भी
सदा पास रहता है
...
तुमने कहा
कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
हो सके तुमसे जितना भी
तुम इनका सम्‍मान करना
ये मत कहना भरी है मेरी झोली
ये झोली कभी न‍हीं भरती
हमेशा खाली ही रहती है
जहां से जितना भी जैसे मिले
तुम ज्ञान लो
स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
बड़ों का जितना भी मिले
आशीष अपने भाल लो
....

32 टिप्‍पणियां:

  1. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो ....जिसने भी कहा हो अमल करो...यही मान हौसला बनता है

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  2. शब्दों की इतनी सुन्दर साधना वाह अति सुन्दर खुबसूरत बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति

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  3. ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो
    ....

    सदा जी ...आपके भावों को नमन ...बहुत कोमल और सकारात्मक सोच है आपकी ...
    बहुत सुंदर रचना ...अभिभूत हुई ...!!
    शुभकामनायें ...

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  4. जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो

    गहरे भाव....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. शब्दों और संस्कारों का विहंगम संगम !

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  6. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है

    बिल्कुल सही कहा ………यही तो माँ की परम कृपा है।

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  7. गुरुजन के आशीष से, जानो शब्द रहस्य |
    शब्द अनंत असीम हैं, क्रमश: मिलें अवश्य |
    क्रमश: मिलें अवश्य, किन्तु आलस्य नहीं कर |
    कर इनका सम्मान, भरो झोली पा अवसर |
    फिर करना कल्याण, लोक हित सर्व समर्पन |
    रे साधक ले साध, दिखाएँ रस्ता गुरुजन ||

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  8. बहुत सुन्दर, मृदुल..दिल को सुख और सुकून पहुंचती रचना

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  9. शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.शब्द सदा अनमोल,
    शब्द बनाये शब्द बिगाडे.तोल मोल के बोल,
    शब्दों की अति हो जाए, बन जाते है अपशब्द
    मन आवेशित हो जाए तो,हो जाइये निशब्द,

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  10. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना

    बहुत खूबसूरत बात .... जहां से भी मिले ज्ञान लेना ही चाहिए ... सुंदर और भावयुक्त रचना

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  11. सम्मान, आदर, स्नेह और आशीर्वाद, जितना मिले, उतना बाटते चलो।

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  12. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो

    एक आशीर्वाद जो सदा साथ होता है

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  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  14. सुन्दर सार्थक भाव लिए
    रचना...अति उत्तम..
    :-)

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  15. सार्थक भाव लिए बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  16. स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो

    जीवन दर्शन है यह तो..... अति सुंदर

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  17. शब्दों का सम्मान करना कितना जरूरी है हमारे लिये । शब्द सावधानी से कम कम इस्तेमाल करना चाहिये ।

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  18. शब्दों की यह साधन अभिभूत करती है ...
    यह सम्मान बना रहे !

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  19. कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो

    बहुत ही सुन्दर शब्द.....बेमिसाल ।

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  20. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो
    ये सीख सदैव यही रहती है, काल और मान्यताएं हम भले ही बदल लें लेकिन ये आज से वर्षों पहले भी ऐसे ही थी और आज भी ऐसी ही बनी रहेंगे. वह बात और है कि इसको समझने वाले कितना समझते हें?

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  21. तुमने कहा
    कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो
    स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले.. ..badon se aasis lo aur chhoto ko pyar do -- sundar bhaw
    आशीष अपने भाल लो

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  22. स्‍नेह बांटो सदा छोटों को दिल से
    बड़ों का जितना भी मिले
    आशीष अपने भाल लो.

    सच्ची सलाह. सुंदर जीवन दर्शन. शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  23. कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो........iska koi paryay nahin......

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  24. बहुत सुन्‍दर पक्तियो का सकंलन वाह वाह

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  25. क्या बात है आपने तो शब्दों को पकड़कर ही रख लिया है। :)बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  26. शब्द ही तो हैं, जो हमारे हर एहसास को खूबसूरती से बयां कर देते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  27. कभी भी शब्‍दों का अभिमान मत करना
    हो सके तुमसे जितना भी
    तुम इनका सम्‍मान करना
    ये मत कहना भरी है मेरी झोली
    ये झोली कभी न‍हीं भरती
    हमेशा खाली ही रहती है
    जहां से जितना भी जैसे मिले
    तुम ज्ञान लो.

    निःशब्द करती रचना...अनूपम भाव...अनूपम अभिव्यक्ति!!

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  28. ये किसका है जादू मै सोचती
    तुम्‍हारे शब्‍द हैं ये
    या फिर तुम्‍हारी छवि जो
    मेरे नयनों में है
    या वो ख्‍याल जो हर वक्‍़त
    दूरियों के बीच भी
    सदा पास रहता है

    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.

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  29. शब्दशः सत्य...शब्दों की साधना...

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....