शब्दों की गंगा से
तुम हर पल अपनी विषम परिस्थितियों का
अभिषेक करती हो स्वत: ही
कभी जटिलतम होता मार्ग तो
तुम शिव की जटाओं सा
उनका मार्ग प्रशस्त करती
मनन करना फिर कहना
सहना हर शब्द को उतना ही
जितना वह तुम्हारे लिए असहनीय न हो
...
शब्दों की गंगा इसलिए कहना सही है
कोई भी अपवित्र शब्द
नहीं जन्मा तुम्हारी लेखनी से
ना ही कभी तुम्हारी जिभ्या ने उच्चारित किया
ऐसे किसी शब्द को तुम्हारे सानिध्य से
हर शब्द में एक अलौकिक तेज होता है
जिससे कभी जन्म लेती गरिमा
या फिर गर्व फलीभूत होता है
जिनकी कीर्ति चारों दिशाओ में
गुंजायमान होती है
......
अपनी पराजय का क्षोभ मनाते
अहंकारित शब्द दूर खड़े
अपने दायरे से बाहर आने के लिए
छटपटाते रहते लेकिन मर्यादाओं के
बांध उन्हें संयम का पाठ पढ़ाते हुए
तिरस्कृत भी नहीं करते तो
मान भी नहीं देते !!!
....
पावनता तुम्हारी
मन को भी निर्मल करती है
मन में कितना भी संताप हो
किसी को कोई अभिशाप हो
तुम क्षणश: हर लेती हो
शब्दों की गंगा से
तुम हर पल अपनी विषम परिस्थितियों का
अभिषेक करती हो स्वत: ही
...
सुन्दर 'शब्दों की गंगा '..!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों की निर्झर बहती गंगा...
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं्ये गंगा यूँ ही बहती रहे
जवाब देंहटाएंनिर्मल भावों को सहेजे सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंपवित्र करती, शब्दों की गंगा।
जवाब देंहटाएंअपनी पराजय का क्षोभ मनाते
जवाब देंहटाएंअहंकारित शब्द दूर खड़े
अपने दायरे से बाहर आने के लिए
छटपटाते रहते लेकिन मर्यादाओं के
बांध उन्हें संयम का पाठ पढ़ाते हुए
तिरस्कृत भी नहीं करते तो
मान भी नहीं देते !!!.... बेहद गूढ़ अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
सुन्दर प्रस्तुति ..........
जवाब देंहटाएंपावनता तुम्हारी
मन को भी निर्मल करती है
मन में कितना भी संताप हो
किसी को कोई अभिशाप हो
तुम क्षणश: हर लेती हो
शब्दों की गंगा से
तुम हर पल अपनी विषम परिस्थितियों का
अभिषेक करती हो स्वत: ही
...
बहुत सुंदर ... जिसके लिए भी लिखी गयी है बहुत श्रद्धा से लिखी है
जवाब देंहटाएंशब्दों का ये काव्य निर्झर बहता रहे ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
बहुत बढ़िया शब्दों की गंगा है यह यूं ही बहती रहनी चाहिए ...:)
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur pawan rachna ...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen Sada ji ...
शब्दों की गंगा इसलिए कहना सही है
जवाब देंहटाएंकोई भी अपवित्र शब्द
नहीं जन्मा तुम्हारी लेखनी से
ना ही कभी तुम्हारी जिभ्या ने उच्चारित किया
उत्तम अभिव्यक्ति!
पावनता तुम्हारी
जवाब देंहटाएंमन को भी निर्मल करती है
मन में कितना भी संताप हो
किसी को कोई अभिशाप हो
तुम क्षणश: हर लेती हो
शब्दों की गंगा से
तुम हर पल अपनी विषम परिस्थितियों का
अभिषेक करती हो स्वत: ही
...शब्दों की गंगा में मन पावन हो जाता है..
अपनी पराजय का क्षोभ मनाते
जवाब देंहटाएंअहंकारित शब्द दूर खड़े
अपने दायरे से बाहर आने के लिए
छटपटाते रहते लेकिन मर्यादाओं के
बांध उन्हें संयम का पाठ पढ़ाते हुए
तिरस्कृत भी नहीं करते तो
मान भी नहीं देते !!!
कुछ लेखिकाएं हैं जिन्हें पढ़ना अच्छा लगता है उनमें आप भी शामिल हैं बात बड़ाई की नहीं गरिमा के पालन का है जो आपकी लेखनी में झलकता है .बधाई स्वीकारें .
शब्दों की गंगा से
जवाब देंहटाएंतुम हर पल अपनी विषम परिस्थितियों का
अभिषेक करती हो स्वत: ही
जिसे महसूस कर दुसरे भी
विषम परिस्थितियों का
हिम्मत से सामना कर लेते हैं ..... !!
hmmmmmmm bilkul sahi kaha aapne
जवाब देंहटाएंशब्दों की गंगा से अभिव्यक्ति निर्मल हो जाती है ..
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव से लिखी पावन मनभावन कविता !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अहसास व्यक्त करती
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर..कोमल रचना....
:-)
वाह!
जवाब देंहटाएंशब्द गंगा हो जाएं ,मन वृन्दावन ,......बढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबधाई !बधाई !बधाई !
bahut sunder......
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