शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

जन्‍म से ही जुड़ी होती आकांक्षाएं ...!!!

कोई कैसे जिन्‍दगी को
अहसासों से मुक्‍त
और बंधनों से आजाद कर
स्‍वच्‍छंद विचरण
करने के लिए
छोड़ सकता है भूमंडल पर
जन्‍म से ही
जुड़ी होती आकांक्षाएं अनगिनत
संवेदनाओं से लिपटा
भावनाओं में पला
मां के आंचल से निकलकर
पिता के स्‍नेह से
पल्‍लवित हो विचारों की
पाठशाला में अध्‍ययन कर
शिक्षा रूपी ओज से संस्‍कारों का
पोषण करते हुए क्रमश:
एक लक्ष्‍य देता है जीवन को
...
पेड़ ये मात्र  पेड़ या पौधे नहीं होते
इनमें भी जीवन होता है
बीज से निकलकर
माटी में पल्‍लवित होकर
हवा और पानी पाकर इनका
विस्‍तार होता है
यह भी संवेदनशील होते है
सर्दी और गर्मी
स्‍पर्श का ज्ञान लिए
हमारी बाते सुनते भी हैं
और फल देकर अपने जीवन को
सार्थक भी करते हैं
...
सदानीरा जल की देवी
जिनसे जीवन है  मानव का
बहते रहने में ही
इसका सार है बहाव लिए  हुए
यह अपनी निरंतरता
कायम रखती है
कल कल कर बहता निर्मल पानी
जिसने हार कभी न मानी
...
मानव मन ही होता जाने क्‍यूं अभिमानी
जो यह सब भूल जाता है
अपनी 'मैं' के चलते ही
यह मन बारी-बारी से
जीवन रूपी आग की भट्ठी में
परखने के लिए
तपाया जाता है परिमाणत:
कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
कभी जलकर राख ...!!!




32 टिप्‍पणियां:

  1. मानव मन ही होता जाने क्‍यूं अभिमानी
    जो यह सब भूल जाता है
    अपनी 'मैं' के चलते ही
    यह मन बारी-बारी से
    जीवन रूपी आग की भट्ठी में
    परखने के लिए
    तपाया जाता है परिमाणत:
    कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
    कभी जलकर राख ...!!!

    बहुत सुंदर उपमाओं से सार्थक तथ्य को कहा है ...सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. सच में ये तो खुद ही पर है कि कुंदन बनना है या राख... अच्छी कविता...
    ************

    प्यार एक सफ़र है, और सफ़र चलता रहता है...

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  3. अपनी 'मैं' के चलते ही
    यह मन बारी-बारी से
    जीवन रूपी आग की भट्ठी में
    परखने के लिए
    तपाया जाता है परिमाणत:
    कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
    कभी जलकर राख ...!!!
    अत्यंत सुन्दर उपमाओं एवं बिम्बो से सजी भाव पूर्ण आध्यात्मिक प्रस्तुति......
    सादर !!!

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  4. जीवन रूपी आग की भट्ठी में
    परखने के लिए
    तपाया जाता है परिमाणत:
    कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
    कभी जलकर राख,,,,बहुत अच्छे भावों की सार्थक रचना,,,,,

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  5. बेहतरीन भावों में शब्दों को सजाया है सदा जी आपने. बेहतरीन रचना......

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. अभिमानी या स्वाभिमानी ...इस क्यों का जवाब ही तो ढूंढते है!
    गहन चिंतन है कविता में !

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  8. बहुत सुन्दर भाव सदा.....
    गहन अर्थ लिए रचना..

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  9. .
    मानव मन ही होता जाने क्‍यूं अभिमानी
    जो यह सब भूल जाता है
    अपनी 'मैं' के चलते ही
    यह मन बारी-बारी से
    जीवन रूपी आग की भट्ठी में
    परखने के लिए
    तपाया जाता है परिमाणत:
    कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
    कभी जलकर राख ...!!!

    सब कुछ समेट लिया आपने रिश्तों में

    जवाब देंहटाएं
  10. रिश्तों की मोहक दुनिया की सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. रिश्तों के हर पहलू को समेटे
    गहरे भावों और संवेदनाओं को
    व्यक्त करती बहुत ही सुन्दर
    अति उत्तम रचना...
    :-)

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  12. बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना |मन को छू गयी

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  13. सदा जी रचना में जीवन की तरह बहुत गहराई है -स्पंदन है शब्दों में भी भाव में भी पेड़ पौधों सा गति है नदिया के आवेग सी हाँ जीवन होता है बिना एहसास के भी ,सिर्फ साक्षी भाव रह जाता है वहां -बिना एहसास के जिए जा रहा हूँ ,इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें ,खैरमकदम (स्वागत )कर सकूं .

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  14. ''मैं''और ''जीवन'' की सोच को बेहद संजीदगी से लिख दिया आपने

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...........मन को छू गयी

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  16. गहन अर्थ लिए भावमयी सुन्दर रचना..

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  17. अपनी 'मैं' ही में अब मैं समाया
    कब आदमी से बकरी अपने को बनाया
    मैं मैं करता रहकर ये नहीं मैं जान पाया !

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  18. सार्थक अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट 'समय सरगम' पर आपका इंतजार रहेगा।

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  19. काश मनुष्य भी इन्ही की तरह सहज सरल होता .........

    जवाब देंहटाएं
  20. Great lines.. you deserve a dinner. Keep writing Sada a lot to learn from you..

    Thanks..

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  21. पूर्वनियत कार्यक्रम के अनुसार ही होता है हमारा जन्म।

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  22. वाह...बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।

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  23. मानव मन ही होता जाने क्‍यूं अभिमानी
    जो यह सब भूल जाता है
    अपनी 'मैं' के चलते ही
    यह मन बारी-बारी से
    जीवन रूपी आग की भट्ठी में
    परखने के लिए
    तपाया जाता है परिमाणत:
    कभी वह निखर कर कुंदन हो जाता है
    कभी जलकर राख ...!!!

    ....बहुत गहन और सार्थक चिंतन....बहुत सुन्दर

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  24. प्रकृति देने का सुख भोगती है और मानव जीवन पाने और छिन जाने की स्थितियों को झेलता है. आखिर मन जो ठहरा उसके साथ. बहुत सुंदर कविता.

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  25. हाँ हीरा भी कोयले का ही कार्बन का ही एक रूप है अपरूपता.एहम आदमी को कोयला बना देता है ओर उसका विसर्जन हीरा हैं दोनों कार्बन .एहम व्यक्ति को जड़ ही नहीं बीमार बना देता है .सभी मनो -रोगी इसका इस्तेमाल डिफेन्स मिकेनिज्म के रूप में करते हैं .कोई चीज़ उनसे टूट जायेगी तो गलती नहीं मानेंगे ,इलज़ाम लगायेंगें -"चीज़ को रखने का भी एक तरीका होता है ,ऐसे रखा जाता है .टूटनी ही थी वह तो ,मुझसे न टूटती तो किसी और से टूटती . "

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  26. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  27. सबने ही मैं मैं कहा, पूछा "मैं" है कौन

    मैं का उत्तर ढूँढते , सबके सब हैं मौन ||

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  28. अहम और अभिमान को भुलाकर आगे बढ़ने का सच्चा सन्देश देती सुंदर रचना.

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  29. बुशन अंकल कि बात से पूर्णतः सहमत हूँ। :)

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....