सोमवार, 24 सितंबर 2012

एक धुन जिंदगी को गुनगुनाने की ....














कभी तुमने देखा है
भागकर आया हो कोई शब्‍द
और लिपट गया हो
कागज़ से
जैसे कब से उसे इन्‍तज़ार था
इस पल का
...
उस रूठे शब्‍द को :(
भूलना मत
ताक रहा है दूर से ही तुम्‍हें
कब तुम उसे बुलाओ
पर कुछ नखरीला है
कुछ भूलने का क्रम  करता
कभी खट्पट भी
कर बैठता
फिर भाग जाता दूर  बहुत दूर
इतना कि तुम उसे
निकाल ही देते
अपने मस्तिष्‍क से
ये क्‍या अचानक
एक झपट्टा मार
वो कागज़ पर और तुम हैरान !
ये कैसे यहां ?
ध्‍यान से देखो एक हल्‍की मुस्‍कान है :)
तुम्‍हारे चेहरे प जहां
वहीं वो खिलखिला रहा है :)))
...
ये आंख - मिचोली
शब्‍दों की
कलम के साथ खूब होती
कभी वो पकड़ लेती
एक धुन
जिंदगी को गुनगुनाने की
बेसाख्‍़ता तुम तरन्‍नुम में
गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
सिर्फ वही याद रखते जिसे
वह आज गुनगुनाना चाहती है
कुछ रूठे हुए शब्‍दों को मनाने के लिए!!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सदा जी अति उत्तम खास कर ये पंक्तियाँ को लाजवाब हैं.
    ये आंख - मिचोली
    शब्‍दों की
    कलम के साथ खूब होती
    कभी वो पकड़ लेती
    एक धुन
    जिंदगी को गुनगुनाने की
    बेसाख्‍़ता तुम तरन्‍नुम में
    गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
    सिर्फ वही याद रखते जिसे
    वह आज गुनगुनाना चाहती है

    जवाब देंहटाएं
  2. शब्दों के नखरे :) और आँख मिचौली का खेल .... बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने ।

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  3. शब्दों के साथ आँख मिचौली के खेल को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है..बहुत खूब ..

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  4. शब्दों को तो सदा ही मनाते रहते हैं हम सब..

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  5. शब्द के गिर्द बुनी सुन्दर पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  6. शब्दों का साथ ढूँढते रहने की बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कोशिश...

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  7. चंचल ...चपल ...नटखट ... ...खूबसूरत से भाव ...!!
    बहुत सुन्दर सृजन ...!!
    खिल गया मन .....!!

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  8. शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.
    शब्द सदा अनमोल,
    शब्द बनाये शब्द बिगाडे.
    तोल मोल के बोल, ,,,,,,,,

    RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता

    जवाब देंहटाएं
  9. कभी तुमने देखा है
    भागकर आया हो कोई शब्‍द
    और लिपट गया हो
    कागज़ से
    जैसे कब से उसे इन्‍तज़ार था
    इस पल का
    ... सोते हुए भी देखा है और चौंक कर उठाया है ...

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  10. शब्दों के नाज़ नखरे उठाये जाते हैं.......
    तभी तो लिख पाते हैं...गुनगुनाते हैं....
    सुन्दर!!!!

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  11. ये आंख - मिचोली
    शब्‍दों की
    कलम के साथ खूब होती
    कभी वो पकड़ लेती
    एक धुन
    जिंदगी को गुनगुनाने की
    बेसाख्‍़ता तुम तरन्‍नुम में
    गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
    सिर्फ वही याद रखते जिसे
    वह आज गुनगुनाना चाहती है
    कुछ रूठे हुए शब्‍दों को मनाने के लिए!!!

    संगीतमय रचना जिसे सचमुच हम जी जाते हैं हर पल मन को ललचाती

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  12. आँख मिचौली खेलना तो शब्दों का अधिकार है न ...और हमसे नहीं खेलेंगे तो किस्से खेलेंगे......एक दूसरे के पूरक ही तो हैं .....बहुत प्यारी रचना सदाजी

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  13. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है

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  14. बहुत सुंदर रचना
    व प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह! बहुत सुंदर।

    कितने शब्द तो मन में ही रह जाते हैं! कलम कदम चूमे इससे पहले ही गुम हो जाते हैं।

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  16. हमेशा की तरह इस बार भी सुंदरतम लाइनो के साथ की गयी रचना

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  17. बहुत नटखट भी होते हैं
    कभी ये शब्द !
    बहुत सुंदर !

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  18. रूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन दीदी.
    सादर

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  19. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह अंतिम पंक्तियों में कमाल का लिखा है आपने रूठे हुए शब्द बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  21. लेखन के अनुभव बहुत सुंदरता से कविता में आए हैं. शब्द हम से ऐसे ही खेलते हैं और कभी हम शब्दों से. बहुत खूब.

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....