कभी तुमने देखा है
भागकर आया हो कोई शब्द
और लिपट गया हो
कागज़ से
जैसे कब से उसे इन्तज़ार था
इस पल का
...
उस रूठे शब्द को :(
भूलना मत
ताक रहा है दूर से ही तुम्हें
कब तुम उसे बुलाओ
पर कुछ नखरीला है
कुछ भूलने का क्रम करता
कभी खट्पट भी
कर बैठता
फिर भाग जाता दूर बहुत दूर
इतना कि तुम उसे
निकाल ही देते
अपने मस्तिष्क से
ये क्या अचानक
एक झपट्टा मार
वो कागज़ पर और तुम हैरान !
ये कैसे यहां ?
ध्यान से देखो एक हल्की मुस्कान है :)
तुम्हारे चेहरे प जहां
वहीं वो खिलखिला रहा है :)))
...
ये आंख - मिचोली
शब्दों की
कलम के साथ खूब होती
कभी वो पकड़ लेती
एक धुन
जिंदगी को गुनगुनाने की
बेसाख़्ता तुम तरन्नुम में
गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
सिर्फ वही याद रखते जिसे
वह आज गुनगुनाना चाहती है
कुछ रूठे हुए शब्दों को मनाने के लिए!!!
वाह सदा जी अति उत्तम खास कर ये पंक्तियाँ को लाजवाब हैं.
जवाब देंहटाएंये आंख - मिचोली
शब्दों की
कलम के साथ खूब होती
कभी वो पकड़ लेती
एक धुन
जिंदगी को गुनगुनाने की
बेसाख़्ता तुम तरन्नुम में
गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
सिर्फ वही याद रखते जिसे
वह आज गुनगुनाना चाहती है
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशब्दों के नखरे :) और आँख मिचौली का खेल .... बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna ..........
जवाब देंहटाएंशब्दों के साथ आँख मिचौली के खेल को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है..बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंभावों का सुंदर चित्रण ..
जवाब देंहटाएंशब्दों को तो सदा ही मनाते रहते हैं हम सब..
जवाब देंहटाएंशब्द के गिर्द बुनी सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंशब्दों का साथ ढूँढते रहने की बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कोशिश...
जवाब देंहटाएंचंचल ...चपल ...नटखट ... ...खूबसूरत से भाव ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ...!!
खिल गया मन .....!!
शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.
जवाब देंहटाएंशब्द सदा अनमोल,
शब्द बनाये शब्द बिगाडे.
तोल मोल के बोल, ,,,,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
कभी तुमने देखा है
जवाब देंहटाएंभागकर आया हो कोई शब्द
और लिपट गया हो
कागज़ से
जैसे कब से उसे इन्तज़ार था
इस पल का
... सोते हुए भी देखा है और चौंक कर उठाया है ...
शब्दों के नाज़ नखरे उठाये जाते हैं.......
जवाब देंहटाएंतभी तो लिख पाते हैं...गुनगुनाते हैं....
सुन्दर!!!!
सस्नेह
अनु
ये आंख - मिचोली
जवाब देंहटाएंशब्दों की
कलम के साथ खूब होती
कभी वो पकड़ लेती
एक धुन
जिंदगी को गुनगुनाने की
बेसाख़्ता तुम तरन्नुम में
गुनगुना कर भूल जाते हर नग़मा
सिर्फ वही याद रखते जिसे
वह आज गुनगुनाना चाहती है
कुछ रूठे हुए शब्दों को मनाने के लिए!!!
संगीतमय रचना जिसे सचमुच हम जी जाते हैं हर पल मन को ललचाती
बहुत सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआँख मिचौली खेलना तो शब्दों का अधिकार है न ...और हमसे नहीं खेलेंगे तो किस्से खेलेंगे......एक दूसरे के पूरक ही तो हैं .....बहुत प्यारी रचना सदाजी
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंव प्रस्तुति !
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंकितने शब्द तो मन में ही रह जाते हैं! कलम कदम चूमे इससे पहले ही गुम हो जाते हैं।
हमेशा की तरह इस बार भी सुंदरतम लाइनो के साथ की गयी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत नटखट भी होते हैं
जवाब देंहटाएंकभी ये शब्द !
बहुत सुंदर !
waah..bahut sundar..
जवाब देंहटाएंरूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह अंतिम पंक्तियों में कमाल का लिखा है आपने रूठे हुए शब्द बेहतरीन अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंलेखन के अनुभव बहुत सुंदरता से कविता में आए हैं. शब्द हम से ऐसे ही खेलते हैं और कभी हम शब्दों से. बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
बेहतरीन रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥