शनिवार, 30 जून 2012

पुस्‍तकें मानव की सबसे बड़ी मित्र हैं ...














पुस्‍तकें मानव की सबसे बड़ी मित्र हैं,
कह दो तो ये जीवन का पूरा चरित्र हैं ।

स्‍वस्‍थ्‍य चित्‍त का विकास करके ये, 
भरती  प्रेरणा और विश्‍वास  का इत्र है ।

खुश्‍बू इनकी रच जाती है जीवन में जब भी,
इतिहास रचता विद्वता का सबल चरित्र है ।


ज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
कह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है । 

व्‍यक्तित्‍व अधूरा है मन अज्ञानी बिन इनके,
उनका रहता है सदा जिनकी नहीं ये मित्र हैं ।

30 टिप्‍पणियां:

  1. पुस्तकें यकीनन ज्ञान दीप हैं
    बहुत सुन्दर

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  2. सदा पुस्तकें हैं रहीं, अभिनव उत्तम मित्र ।
    देश काल विज्ञान भू , वर्णन करें सचित्र ।
    वर्णन करें सचित्र, परम मानव हितकारी ।
    मुफ्त लुटाती ज्ञान, सदा रविकर आभारी ।
    एक एक ये युग्म, सही सन्देश सुनाएँ ।
    इन्टरनेट का काल, इन्हें लेकिन अपनाएँ ।

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  3. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  4. पढ़ी हुई अच्छी पुस्तक जीवन भर साथ रहती है. वही सच्ची मित्र है.

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  5. बिल्कुल सहमत

    पुस्तकें तो मेरी कमजोरी है

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  6. बहुत सही कहा आपने पुस्तके मेरे लिए तो लाइफ लाइन हैं :)

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  7. बहुत सुन्दर...और सच कहा आपने.....

    कितना प्यारा वार्तालाप रहता है पुस्तकों के साथ....

    सस्नेह.

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  8. ज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
    कह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है ।

    BEAUTIFUL ANALYSIS

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  9. बिना इस मित्र के मैं तो दो कदम न चल पाऊं जी।

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  10. बिना पुस्तकों के जीवन की कल्पना भी मुश्किल है....बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  11. .बिन पुस्तक सब सून....बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  12. बहुत सुंदर लिखा...हर उलझन का समाधान है पुस्तक !!

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  13. सिर्फ़ सुकून... देने वाला सच्चा मित्र !!!

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  14. सटीक और सुंदर रचना .... पुस्तकें अकेलेपन की सच्ची साथी हैं

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  15. वाकई अगर किताबें न होती तो जिंदगी कैसी होती...

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  16. स्‍वस्‍थ्‍य चित्‍त का विकास करके ये,
    भरती प्रेरणा और विश्‍वास का इत्र है ।
    स्‍वस्‍थ्‍य चित्‍त का विकास करके ये,
    भरती प्रेरणा और विश्‍वास का इत्र है ।सदा जी पहली पंक्ति में स्वस्थ चित्त कर लें /स्वास्थ्य तो यहाँ वैसे आ नहीं सकता भाव अलग है यहाँ चित्त वृत्ति से है वह स्वस्थ है या बीमार .फिर भी ऐसे कितने ही लोगों को जानता हूँ जिनका किताब से नहीं है कोई नाता ,रूचि नहीं है नया सीखने में वक्त कटता है जिनका जुगाड़ में ,ऐसे व्यक्ति शब्द कृपण हैं अर्थ कृपणता निभ जाती है शब्द कृपणता पचती नहीं हैं .संगीत से भी ऐसे लोगों का कोई लगाव नहीं दिखेगा कोई गा रहा है गीत ये ठीक उसी वक्त पडोसी के कान में मन्त्र फूकेंगे .अच्छी प्रस्तुति ..कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai

    शनिवार, 30 जून 2012
    दीर्घायु के लिए खाद्य :
    http://veerubhai1947.blogspot.de/

    ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  17. सचा है इनके बिना व्यक्तित्व अधूरा है.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  18. एकदम सही कहा है...
    पुस्तके मानव की सबसे बड़ी मित्र है...
    बहुत सुन्दर....
    :-)

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  19. पुस्तकें ही मनुष्य की सबसे बडी मित्र हैं ………निसंदेह

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  20. सच्ची कहा... ऐसा मित्र और कहाँ....
    बहुत सुन्दर रचना...
    सादर।

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  21. प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति....

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  22. पुस्तकों में भी सद शास्त्र हमारे मित्र ही नही गुरु समान ही हैं.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,सदा जी.

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  23. बहुत ही सुन्दर....सहमत हूँ आपसे।

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  24. ज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
    कह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है ।
    सार्थक रचना। बधाई।

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  25. पुस्तक सम मित्र नही इस जग में कोई
    जो न मित्र को माने उसने आशा खोई ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....