पुस्तकें मानव की सबसे बड़ी मित्र हैं,
कह दो तो ये जीवन का पूरा चरित्र हैं ।
स्वस्थ्य चित्त का विकास करके ये,
भरती प्रेरणा और विश्वास का इत्र है ।
खुश्बू इनकी रच जाती है जीवन में जब भी,
इतिहास रचता विद्वता का सबल चरित्र है ।
ज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
कह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है ।
व्यक्तित्व अधूरा है मन अज्ञानी बिन इनके,
उनका रहता है सदा जिनकी नहीं ये मित्र हैं ।
पुस्तकें यकीनन ज्ञान दीप हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सदा पुस्तकें हैं रहीं, अभिनव उत्तम मित्र ।
जवाब देंहटाएंदेश काल विज्ञान भू , वर्णन करें सचित्र ।
वर्णन करें सचित्र, परम मानव हितकारी ।
मुफ्त लुटाती ज्ञान, सदा रविकर आभारी ।
एक एक ये युग्म, सही सन्देश सुनाएँ ।
इन्टरनेट का काल, इन्हें लेकिन अपनाएँ ।
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंपढ़ी हुई अच्छी पुस्तक जीवन भर साथ रहती है. वही सच्ची मित्र है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सहमत
जवाब देंहटाएंपुस्तकें तो मेरी कमजोरी है
बहुत सही कहा आपने पुस्तके मेरे लिए तो लाइफ लाइन हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...और सच कहा आपने.....
जवाब देंहटाएंकितना प्यारा वार्तालाप रहता है पुस्तकों के साथ....
सस्नेह.
ज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
जवाब देंहटाएंकह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है ।
BEAUTIFUL ANALYSIS
बिना इस मित्र के मैं तो दो कदम न चल पाऊं जी।
जवाब देंहटाएंबिना पुस्तकों के जीवन की कल्पना भी मुश्किल है....बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं.बिन पुस्तक सब सून....बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा...हर उलझन का समाधान है पुस्तक !!
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ सुकून... देने वाला सच्चा मित्र !!!
जवाब देंहटाएंसटीक और सुंदर रचना .... पुस्तकें अकेलेपन की सच्ची साथी हैं
जवाब देंहटाएंBilkul Sahi..... Sunder Rachna
जवाब देंहटाएंवाकई अगर किताबें न होती तो जिंदगी कैसी होती...
जवाब देंहटाएंस्वस्थ्य चित्त का विकास करके ये,
जवाब देंहटाएंभरती प्रेरणा और विश्वास का इत्र है ।
स्वस्थ्य चित्त का विकास करके ये,
भरती प्रेरणा और विश्वास का इत्र है ।सदा जी पहली पंक्ति में स्वस्थ चित्त कर लें /स्वास्थ्य तो यहाँ वैसे आ नहीं सकता भाव अलग है यहाँ चित्त वृत्ति से है वह स्वस्थ है या बीमार .फिर भी ऐसे कितने ही लोगों को जानता हूँ जिनका किताब से नहीं है कोई नाता ,रूचि नहीं है नया सीखने में वक्त कटता है जिनका जुगाड़ में ,ऐसे व्यक्ति शब्द कृपण हैं अर्थ कृपणता निभ जाती है शब्द कृपणता पचती नहीं हैं .संगीत से भी ऐसे लोगों का कोई लगाव नहीं दिखेगा कोई गा रहा है गीत ये ठीक उसी वक्त पडोसी के कान में मन्त्र फूकेंगे .अच्छी प्रस्तुति ..कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शनिवार, 30 जून 2012
दीर्घायु के लिए खाद्य :
http://veerubhai1947.blogspot.de/
ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
लेखक से पूरा संवाद है पुस्तकें..
जवाब देंहटाएंसचा है इनके बिना व्यक्तित्व अधूरा है.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
एकदम सही कहा है...
जवाब देंहटाएंपुस्तके मानव की सबसे बड़ी मित्र है...
बहुत सुन्दर....
:-)
पुस्तकें ही मनुष्य की सबसे बडी मित्र हैं ………निसंदेह
जवाब देंहटाएंसच्ची कहा... ऐसा मित्र और कहाँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
सादर।
प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंपुस्तकों में भी सद शास्त्र हमारे मित्र ही नही गुरु समान ही हैं.
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,सदा जी.
बहुत ही सुन्दर....सहमत हूँ आपसे।
जवाब देंहटाएंज्ञान का दीपक जलाकर ये फैलाती प्रकाश जब,
जवाब देंहटाएंकह उठता मन इनसा नहीं कोई दूजा पवित्र है ।
सार्थक रचना। बधाई।
सही कहा है.
जवाब देंहटाएंsahi kaha hai, achhi prastuti
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
पुस्तक सम मित्र नही इस जग में कोई
जवाब देंहटाएंजो न मित्र को माने उसने आशा खोई ।
बहुत खूब...
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