रूपया दिनों दिन
कमजोर होता जा रहा है,
जरा ग़ौर करो तो
नब्ज़ की गति पर
अर्थव्यवस्था की तबियत
ठीक नहीं है
इलाज सुझाई नहीं दे रहा
देश गंभीर रूप से
बीमार होता जा रहा है
सब नीम - हकी़म बने बैठे हैं
श्रेष्ठ चिकित्सक
अपने - अपने नुस्खे
आज़मा रहे हैं
लाभ कुछ भी नहीं
अर्थ इतना शिथिल हो चुका है
उसकी कराह किसी के कानों तक
नहीं पहुँच रही
अर्थ तो बस व्यर्थ हुआ जा रहा है
रूपया दिनों दिन
कमजोर होता जा रहा है ...
कमजोर होता जा रहा है,
जरा ग़ौर करो तो
नब्ज़ की गति पर
अर्थव्यवस्था की तबियत
ठीक नहीं है
इलाज सुझाई नहीं दे रहा
देश गंभीर रूप से
बीमार होता जा रहा है
सब नीम - हकी़म बने बैठे हैं
श्रेष्ठ चिकित्सक
अपने - अपने नुस्खे
आज़मा रहे हैं
लाभ कुछ भी नहीं
अर्थ इतना शिथिल हो चुका है
उसकी कराह किसी के कानों तक
नहीं पहुँच रही
अर्थ तो बस व्यर्थ हुआ जा रहा है
रूपया दिनों दिन
कमजोर होता जा रहा है ...
कमज़ोर रुपए की धड़कन जाँचती कविता :)) बढ़िया.
जवाब देंहटाएंरूप निखारे वित्त-पति, रुपिया हो कमजोर ।
जवाब देंहटाएंनोट धरे चेहरे हरे, करें चोर न शोर ।
करें चोर न शोर, रखे डालर में सारे ।
हम गंवार पशु ढोर, लगाएं बेशक नारे ।
है डालर मजबूत, इलेक्शन राष्ट्र-पती का ।
इन्तजार कर मीत, अभी तो परम-गती का ।
रुपया तो इतना कमज़ोर हो गया है कि हम चल नहीं पा रहे !
जवाब देंहटाएंसच कह दिया ………सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरुपया प्रतिदिन गिर रहा अर्थ व्यवस्था कमजोर,|
जवाब देंहटाएंमनमोहन का जादू नही चला नं किसी का जोर||
न किसी का जोर आगे देखते जाओ भइय्या| ,
एक डालर के बदले मिलेगें सिर्फ सौ रुपैय्या||
बढ़ती मंहगाई देखकर जनता में हा हां कार|
चुप रह तमाशा देख रही ,मौन हुई सरकार||
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
गहन भाव लिए सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और समसामयिक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसटीक और समसामयिक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंye sab is sarkaar ki den hai ... saamyik rachna hai ...
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने ...रुपया कमज़ोर हो गया है सटीक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंकमजोर रुपये ने हमें निर्धन कर दिया है..
जवाब देंहटाएंअनर्थ शास्त्री अभी भी आंकड़े गिना खुद को भरमा रहा है ,
जवाब देंहटाएंवित्त पति भगा राष्ट्र पति भवन में ,खुद को छुपा रहा है .
अनूठी रचना ...
जवाब देंहटाएंकहते हैं ज़्यादा जोगी मठ उजाड़।
जवाब देंहटाएंस्थिति वही है। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए देश में आजकल कई विशेषज्ञ लगे हुए हैं।
.रुपया कमज़ोर हो रहा है इसी लिए हम भी कमजोर हो रहे हैं.....सटीक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअर्थ तो बस व्यर्थ हुआ जा रहा है
जवाब देंहटाएंहमारी अर्थव्यवस्था के लिए दुखद ....
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
.
जवाब देंहटाएंमर्ज़ लाइलाज़ बने इससे पहले कुछ करना पड़ेगा …
सड़े-गले अंगों को काटना ज़रूरी हो गया है अब …
सच्चाई से ओत -प्रोत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ कहने से हासिल कहो क्या हुआ, कोई कारण सही जाँच पाता नहीं
जवाब देंहटाएंउंगलियाँ दूसरी ओर उठती रहीं कोई खुद को जरा आँक पाता नहीं
उस व्यवस्था का करते समर्थन रहे जो कि बैसाखियों पर टिकी है हुई
रोग हमने स्वयं ही तो पाला हुआ, कोई बस सत्य ये मान पाता नहीं
ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया.
जवाब देंहटाएंरूपये के स्वास्थ्यलाभ की कामना
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअर्थ आज व्यर्थ हो रहा है ..... प्रयास कब सार्थक होगा पता नहीं ... समसामयिक रचना
जवाब देंहटाएंवाह...बढ़िया प्रस्तुति !!
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