कभी भी टांग देना खुद को
उदासी की खूंटी पर
हँसी का पर्दा लगाकर
कसकती आत्मा
पर्दे के भीतर
टोह लेती रही
आते-जाते चेहरों का
सच पढ़ती
और मायूस हो
दुआ करती
बस एक बार
जोर की आंधी आ जाए
और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
...
उदासी की खूंटी पर
हँसी का पर्दा लगाकर
कसकती आत्मा
पर्दे के भीतर
टोह लेती रही
आते-जाते चेहरों का
सच पढ़ती
और मायूस हो
दुआ करती
बस एक बार
जोर की आंधी आ जाए
और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
...
वाह: बहुत सुन्दर रचना..सादाजी..
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबस एक बार
जवाब देंहटाएंजोर की आंधी आ जाए
और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
बहुत सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
वाह्…………बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआत्मा की दुआ कबूल होगी तो आत्म प्रकाश फैल जाएगा...!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
हम सबका जीवन ऐसा ही है। एकदम दिखाव का।
जवाब देंहटाएंBAHUT KHOOB
जवाब देंहटाएंअनीता जी की आज की पोस्ट की एक पंक्ति लिखती हूँ.....
जवाब देंहटाएं"लुकाछिपी है,खुद से खुद की...."
सुन्दर भाव...
सस्नेह.
wah....kya baat hai.
जवाब देंहटाएंबस एक बार
जवाब देंहटाएंmain bhi aisa kuchh likh paun...
Shayad yahee hua mere saath.....benaqab to ho chukee hun......lekin zindagee jeene kee koyi wajah bhee to ho!
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंनिरावरण ही तो नहीं हो पाता आज आदमी और इसीलिए कसकता रहता है अपने ही बनाए सँवारे मुखौटों में कभी तो यह ओढ़ी हुई केंचुल उतारी जाए ,थोड़ा सा बस थोड़ा सा जी लिया जाए ,प्यार का एक घूँट पी लिया जाए ,एक नखलिस्तान चंद लम्हों का जी लिया जाए .
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है आपकी -
और मायूस हो
दुआ करती
बस एक बार
जोर की आंधी आ जाए
और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
...
खुली हवा तो छू जाएगी ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..सदा जी..
जवाब देंहटाएंबेनकाब होने को कितने लोग चाहते हैं ज्यादा तर तो चेहरे पे चेहरा लगाये घूमते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ।
मन ही मन में छिपकर रहने से क्या लाभ, खुलकर जिया जाये..
जवाब देंहटाएंसच है ...हर मन की चाहत है स्वतंत्र हो जीने की
जवाब देंहटाएंहम हर पल दोहरी ज़िन्दगी जीने को बाध्य हैं।
जवाब देंहटाएंउदासी की खूंटी और हंसी का पर्दा लगा कर कब तक जिया जा सकता है ... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह !! ग़ज़ब की अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंआते- जाते चेहरों का सच पढ़कर उदासी का बेनकाब हो जाने का मन ...मन आजकल ऐसे ही दौर से गुजरता लगता है हर पल !
जवाब देंहटाएंwah ...badhiya
जवाब देंहटाएंझूठा आवरण अधिक समय नहीं टिकता!! खूब अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंमुखौटों का दुःख बड़ा दुःख देता है ज़िन्दगी में .नकली ज़िन्दगी जीने की कसक ता -उम्र ढौइए .हल चल नै पुरानी पर आरोग्य खिड़की परोसने के लिए आपका शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह बहुत ही खुबसूरत पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबेहद गहन भाव ....बहुत ही सुंदर लिखा है ...सदा जी ...!!
जवाब देंहटाएंदोहरी जिंदगी जीना इसे ही कहते है. आत्मा कही ना कही जरूर रोटी होगी इस बनावटीपन पर.
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता.
जोर की आंधी आ जाए
जवाब देंहटाएंऔर मैं बेनका़ब हो जाऊँ
अंतर मन की आवाज ......एक कसक .....
ये विचारों की, बदलाव की, क्रांति की .. सबकी ख्वाहिश है.. बेनकाब, बेबाक.. सिर्फ सत्य!!
जवाब देंहटाएंसादर
उदासी में भी हमारा अस्तित्व अपने स्वरूप और अपनी अपेक्षाओं को नहीं भूलता. उदास मनःस्थिति का गहन वर्णन है. कठिन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ...!
जवाब देंहटाएंआस्कर वाइल्ड ने भी ऐसे ही कुछ कहा था, मन के बेहद एकाकी भावों को सुंदर बिंब दिए हैं आपने, आभार
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