बुधवार, 29 जुलाई 2009

साथ लेकर चलता था . . .

राख के ढेर पर वह यादों की

लकडि़या रखता रहा

कोई चिंगारी होगी

तो यह भी जल जाएगी

वरना दिल की आह,

सुनेगी तो बिखर जाएगी

कुरेदना मेरी

फितरत ही नहीं

उठेगा धुंआ

तो चिंगारी

खुद-ब-खुद सामने,

आ ही जाएगी ।

(2)

मेहनत पे भरोसा था,

बहुत तभी तो,

हांथ की लकीरो पे

एतबार नहीं किया ।

साथ लेकर चलता था

अपने हौसला मैं हरदम,

कुछ कर गुजरने का,

तभी तो गैरों पे,

एतबार नहीं किया ।

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