फनां हो जाएगा एक दिन ये माटी का खिलौना,
रूह तेरी बदल लेगी एक लिबास नये तन का ।
सिसक रहा है तन छूट रहा आज मन का बंधन,
टूट रहा धागा हर रिस्ते का अंत है इस तन का ।
मन जाने क्यों आज व्यथित है, भीगते नयन यों,
कांपते अधर कहने को कुछ बेकार हर जतन है ।
मिले मानुष का जीवन मिन्नतों से पाया ये तन है।
गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्वर तन है ।
कच्ची मिट्टी को दिया आकार ईश्वर ने एक नया,
जवाब देंहटाएंमिले मानुष का जीवन मिन्नतों से पाया ये तन है।
पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,
गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्वर तन है .
..बहुत गहन भाव ,आभार .
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंपाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,
जवाब देंहटाएंगंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्वर तन है ।िन्सान यही तो एक बात समझ नहीं पाया और यही उसके दुखों का कारन है बहुत बडिया प्रस्तुति बधाई
कच्ची मिट्टी को दिया आकार ईश्वर ने एक नया,
जवाब देंहटाएंमिले मानुष का जीवन मिन्नतों से पाया ये तन है।
पाकर यह तन भूल बैठा सब, माया के मोह में फंस,
गंवाया हर क्षण सदा ना याद आया कि ये नश्वर तन है
सच कहा है........... moh maaya के jaal से nikalna aasaan नहीं होते............ ant समय ही सब समझ आता है..... सुन्दर रचना
ek behatarin ehasas .....schchaee yahi hai .....bhulawabhi yahi hai...
जवाब देंहटाएंउम्दा ख़्यालात
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शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन
हम हर पल फनाह होते रहते हैं ..इंतज़ार आख़री तारीख का है ...जब फनाह होंगे , तो इस जहाँ में नही लौटेंगे ..!
जवाब देंहटाएंबड़ी देरतक आपकी रचनाएँ पढ़ती रही ...गहराई से लिखी गयीं हैं सारी पंक्तियाँ ...उमड़ घुमड़ के जज़्बात बह रहे हैं...