जाने कब से तरसती थी निगाहे,
तेरे एक दीदार को हमनशी मेरे ।
रूखसत हुआ जब से दिया नहीं,
कोई संदेश कभी ये हमनशी मेरे ।
तेरे जाने के बाद घर में सूनेपन,
के सिवा कुछ नहीं हमनशी मेरे ।
ढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे ।
छाया सदा साथ रही हमनशी मेरे ।
जाने कब से तरसती थी निगाहे,
तेरे एक दीदार को हमनशी मेरे ।
रूखसत हुआ जब से दिया नहीं,
कोई संदेश कभी ये हमनशी मेरे ।
तेरे जाने के बाद घर में सूनेपन,
के सिवा कुछ नहीं हमनशी मेरे ।
ढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे ।
छाया सदा साथ रही हमनशी मेरे ।
bahut hi sundarta se wirah ke aag ko abhiwykt kiya hai.....
जवाब देंहटाएंतेरी यादों को समेट के आंचल में,
ढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे ।
dil ko chhoo gayee.......
नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है....आप का ब्लॉग पढ़कर ऐसा मुझे लगा. आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे. बधाई स्वीकारें।
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
बहुत अच्छा, दिल को छू लेने वाले भाव हैं आपकी इस रचना के।
जवाब देंहटाएंkhoobsooratee ke saath lkhee gyee hai yh rchna.
जवाब देंहटाएंविवेक सिंह के स्वप्नलोक से आप का पता ले वहां से छूट कर सीधे ''सदा'' लगाने यहाँ आ गया कि
जवाब देंहटाएंकुछ जरुरी सूचनाये यहाँ भी उपलब्ध हैं ::---- " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से " परन्तु यहाँ जो भावों का प्रवाह , संवेदनाओं तूफान देखा तो उसी में बह गया ,
बहुत खूब कहा
" रूखसत हुआ जब से दिया नहीं,
कोई संदेश कभी ये हमनशी मेरे ।
तेरे जाने के बाद घर में सूनेपन,
के सिवा कुछ नहीं हमनशी मेरे । "
या इसे ही देखें
" रिश्ते न बढ़ते हैं,
रिश्ते न घटते हैं,
वो तो उतना ही
उभरते हैं ।
जितना रंग उनमें,
हम अपनी
मुहब्बत का भरते हैं ।
या फिर यह
जन्म देने वाली,
होती एक मां
फिर भी बेटे को,
कुल का दीपक,
बेटी को पराई ही,
सदा कहते लोग ।|
आप के इन भावों का रसास्वादन एक बार में एक साथ संभव नहीं है ,आनन्द नहीं आयेगा \ अब तो ''सदा '' आना पड़ेगा हर स्वर के भावों का रसपान करने |
कभी मेरे ब्लॉग ''कबीरा '' पर भी आवें आमंत्रण है ||
sada ji bahut hi shandar
जवाब देंहटाएंrachna ha.....ek baat aour itne sunder alfaz kaha se dhund laati hain....
is sunder rachna k liye aapko dher saaree badhai....
तेरी यादों को समेट के आंचल में,
जवाब देंहटाएंढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे
गहरी बात लिखी है .......... लाजवाब रचना
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंWAH BADHIYA GHAZAL...
जवाब देंहटाएं..AUR YE LINE TO JAAN HAI IS GHAZAL KI...
तेरी यादों को समेट के आंचल में,
ढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे ।
simple and effective hai...some of the words chosen are really good...impressiveone
जवाब देंहटाएंआप सभी की बहुत ही आभारी हूं, आशा है आप सब यूं ही सदा प्रोत्साहित करते रहेंगे ।
जवाब देंहटाएंतेरी यादों को समेट के आंचल में,
जवाब देंहटाएंढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे ।
बहुत सुन्दर पसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
तेरी यादों को समेट के आंचल में,
जवाब देंहटाएंढक लेती हूं चेहरा हमनशी मेरे
खूबसूरत एहसास शुभकामनायें
bahut sundar shabd sanyojan sada sis ...wahh..
जवाब देंहटाएंलब खामोश, आंखों में विरह की,
छाया सदा साथ रही हमनशी मेरे ।