राख के ढेर पर वह यादों की
लकडि़या रखता रहा
कोई चिंगारी होगी
तो यह भी जल जाएगी
सुनेगी तो बिखर जाएगी
कुरेदना मेरी
फितरत ही नहीं
उठेगा धुंआ
तो चिंगारी
खुद-ब-खुद सामने,
आ ही जाएगी ।
(2)
मेहनत पे भरोसा था,
बहुत तभी तो,
हांथ की लकीरो पे
एतबार नहीं किया ।
साथ लेकर चलता था
अपने हौसला मैं हरदम,
कुछ कर गुजरने का,
तभी तो गैरों पे,
एतबार नहीं किया ।
A very visible and clean thought process, very interesting too.
जवाब देंहटाएंRick
sapience
आपकी पहली रचना ने तो दिल ले लिए............ लाजवाब लिखा है......... सच में यादों को तो हर कोई जलना चाहता है........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंek behad khubsurat rachana padhakar sakun aaya.....atisundar .....badhaaee
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंआभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
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