गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था ...!!!















यह सच है जब कोई रूठा हो तो फिर हँसकर बात नहीं करता,
आहत हो जाता मन कितना जब कोई अपना बात नहीं करता  ।

अपनों की  भीड़ में सिकुड़ा सिमटा रहता हूँ जैसे कैदी हो कोई,
डालकर नज़र बढ़ जाते हैं आगे पर कोई भी बात नहीं करता ।

मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था अब देखो,
होठों पर मुस्‍कान लिए बैठा हूँ फिर भी कोई बात नहीं करता ।

मैं वही हूँ वही है वजूद मेरा फिर भी अनमना सा क्‍यूँ है कोई,
कहता हूँ जब भी कुछ सुन लेते हैं पर कोई भी बात नहीं करता ।

दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।

33 टिप्‍पणियां:

  1. खलता जब खुलते नहीं, रविकर सम्मुख होंठ |
    देह-पिंड में क्यूँ सिमट, खुद से लेता गोंठ ||

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  2. अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।

    वक्त से आगे कहाँ निकल गई आप? खुश रहें और मस्त रहें ,
    ऐसा वक्त हमे ही काटने दें !
    सटीक अहसास ......
    शुभकामनायें!

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  3. ये जिंदगी का सबसे कठिन दौर हैं ...जब इंसान खुद में अकेला हो जाता है

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  4. कैसे कह दूँ के मुलाक़ात नहीं होती है ...
    रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है .....

    बहुत सुंदर लिखा है सदा जी ....

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  5. दायरे इनकार के इकरार की सरगोशियाँ
    ये अगर टूटे कभी तो फासला रह जाएगा
    ............................

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  6. अपनों की भीड़ में सिकुड़ा सिमटा रहता हूँ जैसे कैदी हो कोई,
    डालकर नज़र बढ़ जाते हैं आगे पर कोई भी बात नहीं करता ।

    बहुत खूब कहा है...सच्चाई व्यक्त की है आपने अपनी इस रचना में...बधाई

    नीरज

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  7. सदा जी माफ़ किजिये मुझे ये पोस्ट कुछ खास पसंद नहीं आई........आपकी अपनी ही लेखनी का मुकाबले ये बहुत फीकी से लगी :-)

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  8. सच कहती बेहद खूबसूरत रचना

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  9. समय समय की बात है समय ही सब कराते है
    कभी हमको सर-आखों पर बैठाते थे व अब आँख चुराते हैं.

    bahut achchha ehsas Sada ji

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  10. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति |सच में भीड़ में अकेले सिमट कर रह जाना बहुत खलता है |
    आशा

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  11. दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
    अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।

    मानव मनोविज्ञान की परतों ,आहत मन की परतों को खोलती रचना .

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  12. उगते सूर्य को सभी नमन करते है, अस्ताचल को जाते सूर्य को कोई नही पूछता!!

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  13. @ वक्त से आगे कहाँ निकल गई आप?
    ऐसा वक्त हमे ही काटने दें !

    मैं कहने ही वाली थी कि ये पोस्ट तो सलूजा जी को लिखनी चाहिए थी
    तस्वीर भी उनसे मिलती जुलती है ....

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  14. सदा जी!!
    रविन्द्र नाथ ठाकुर ने कहा था कि तुम्हारी पुकार पर कोई न साथ आये, तो तुम अकेले चलो. यह भी कहा गया कि लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया. लगता है अब यह कहने का वक्त आ गया है कि अगर कोई बात नहीं करता तो खुद से बात करो.. कभी दिल पे हाथ रखकर सोचिये कि कितने युग बीत गए जब हमने खुद से बात नहीं की!!

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  15. सुन्दर प्रस्तुति । धन्यवाद ।
    मेरी नयी पोस्ट "10 रुपये के नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के" को भी एक बार अवश्य पढ़े ।
    मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com

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  16. ब्लॉग बुलेटिन पर भी इस पोस्ट को बांचा .वहां पोस्ट पर टिपण्णी करना मना है ,
    मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था अब देखो,
    होठों पर मुस्‍कान लिए बैठा हूँ फिर भी कोई बात नहीं करता । वो कहकहे मोहन राकेश के साथ कब के गए .कमलेश्वर भी गए दुष्यंत भी गये .

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  17. सोनल जी ने सही कहा है कि जिन्दगी में ऐसे भी दौर आते हैं ,सदा जी सुंदर रचना ।

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  18. इस जिन्दगी में अक्सर ऐसे भी दौर आये,
    दिल खून रो रहा था और मैंने गीत गाये,,,,

    resent post : तड़प,,,

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  19. मनोभावों को बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने .आभार आत्महत्या:परिजनों की हत्या

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  20. तेज़ रफ़्तार जिंदगी का सच यही है.

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  21. जीवन के इक मोड़ पे आकर हम फिर से मिल जाएं भी तो
    लब थिरकेंगे, दिल मचलेगा, पर आपस में बात न होगी.

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  22. मुझे लगता है कि
    मै एक नही कई हू
    मै देख रहा हू
    एक साथ ढेर सारे लोग
    मेरे मुखौटे लगाये हुये
    किंतु
    भाव अलग अलग है
    ये सभी
    मै होने का दावा करते है
    छिडा है भीषण युद्ध
    मेरे द्वारा मेरे विरुद्ध्

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  23. बहुत ही उम्दा ख्याल है, हृदयस्पर्शी प्रस्तुति बधाई स्वीकारें दी
    दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
    अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।

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  24. बहुत ही शानदार रचना वाह वाह

    सदा जी आपके ब्‍लाग से एक ज्ञान तो हमे मिला है कि यह जरूरी नही की आपके ब्‍लाग पर कितने व्‍यक्त्‍िा टिप्‍पणी करते है बल्कि यह मायने रखता है कि आप कितने ब्‍लागो पर कमेन्‍ट देते हो ,

    फेसबुक थीम को बदले

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  25. समय करे नर क्या करे ,समय समय की बात ,

    किसी समय के दिन बड़े ,किसी समय की रात .

    हाँ .आखिरी सफर अकेला है .महाप्रयाण पे जाने से पहले यह बोध हो जाए तो अच्छा है .अपने साथ रहना सीखना चाहिए हर किसी को ,लुत्फ़ भी ले लें जरा सा खुद से रु -ब -रु होने का .

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  26. दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
    अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।


    वाह सदा जी क्या कहने बेहद उम्दा पोस्ट

    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html

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  27. अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता...तभी वे दिन याद आते हैं जब छोटी छोटी बातों पर भी कहकहे लगते थेः)

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  28. यह सच है जब कोई रूठा हो तो फिर हँसकर बात नहीं करता,
    आहत हो जाता मन कितना जब कोई अपना बात नहीं करता ...

    सच कहा है ... कोई अपना हो ओर बात न करे तो मन आहट होना स्वाभाविक है ...
    लाजवाब रचना है ...

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