शब्दों के चौक पर ..
भावनाओं का कलश विराजित कर
माँ... की तर्जनी ने पहला पन्ना खोला
अनामिका ने झट ऊँ लिखा
शब्दों ने मिलकर पंक्ति की रचना की
सबने मिल-जुल कर स्नेह की एक भूमिका बांधी
अपना नाम सुनते ही स्नेह ने झट से
माँ की विशेषता बताई
कैसे करनी है उसे सबकी अगुआई
...
मेरी माँ.. हर विधा में प्रवीण
माँ वीणापाणि की सेवा में निस्वार्थ भाव से रत रहती
स्नेह को जब भूख लगती माँ
झट-पट पकाती लज़ीज खाना हँसते-मुस्कराते
स्नेह के मुँह में कौर रखती औ सिर पे ममता का हाथ
पता नहीं उस ममतामयी का क्या जादू होता
स्नेह की आंखे बोझिल होने लगती
माँ गुनगुनाती लोरी मीठे शब्दों की
स्नेह सपनों की दुनिया में परियों के संग खेलती खेल,
तब तक का सारा वक्त माँ लेखन को समर्पित करती
...
एक दिन स्नेह ने मासूम सवाल किया ?
तुम जब देखो काम करती रहती हो
कभी हम बच्चों का ध्यान तो कभी लिखती दिखती हो
बस आराम नहीं करती, माँ सहज भाव से मुस्कराते हुये ...
लेखन मेरा 'प्रेम' है इसके बिना मेरी हर सांस अधूरी है
स्नेह की नन्हीं पलकें हैरानी से फैल गईं
वो धीमे स्वर में बोली 'प्रेम' लेकिन माँ !
किसी को पता चल गया तो आपको प्रेम है तब
माँ उसके सवाल पर हँसी ये प्रेम तो मुझे विरासत में मिला है !
माँ सरस्वती की आराधना में निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य
उनकी श्रेष्ठ उपासना है, जिसे माँ सहर्ष स्वीकार कर बदले में
यश, ख्याति और आत्मसंतुष्टि दे हर क्षेत्र में अपराजित रखती है !
...
स्नेह ने माँ के गले में नन्हीं बांहे डाली और बोली तभी तो
सब आपको प्यार और सम्मान देते हैं
माँ ने समझाया ..
इसके पहले मैं सबकी भावनाओं का मान करती हूँ
हर नये व्यक्ति के आने पर बिना किसी परिचय के उसकी चौखट पर
दस्तक़ देती हूँ .. उसे सबसे मिलाती हूँ
फिर यूँ ही खोजते-खोजते अपनी इस अमूल्य निधि में
जाने कितने रत्नों का संग्रह करते हुए नित सूरज के उगते ही
हर दिशा में एक नई तलाश के साथ
मैं अभिषेक करती हूँ आपनी भावनाओं का तभी पाती हूँ
यह प्यार और सम्मान याद रखो जो हम पाना चाहते हैं पहले
हमें वही औरों को देना होता है..
स्नेह ने समझदारी दिखाई तो मैं आपकी हेल्प कैसे कर सकती हूँ
मुझे तो बस आपका ही प्यार चाहिये
माँ ने उसकी इस शैतानी पर भी मुस्कराते हुये कहा
हर आने वाले का स्वागत ! जाने वाले को शुभकामनायें !! देते हुये चुप बैठो !!!
(आदरणीय रश्मि प्रभा जी , जो मेरे ही नहीं कितनों के अन्दर माँ सी छवि लिए रहती हैं -
उनसे जब भी कुछ सुना,पढ़ा,सीखा तो लगा कुछ कहूँ ')
भावनाओं का कलश विराजित कर
माँ... की तर्जनी ने पहला पन्ना खोला
अनामिका ने झट ऊँ लिखा
शब्दों ने मिलकर पंक्ति की रचना की
सबने मिल-जुल कर स्नेह की एक भूमिका बांधी
अपना नाम सुनते ही स्नेह ने झट से
माँ की विशेषता बताई
कैसे करनी है उसे सबकी अगुआई
...
मेरी माँ.. हर विधा में प्रवीण
माँ वीणापाणि की सेवा में निस्वार्थ भाव से रत रहती
स्नेह को जब भूख लगती माँ
झट-पट पकाती लज़ीज खाना हँसते-मुस्कराते
स्नेह के मुँह में कौर रखती औ सिर पे ममता का हाथ
पता नहीं उस ममतामयी का क्या जादू होता
स्नेह की आंखे बोझिल होने लगती
माँ गुनगुनाती लोरी मीठे शब्दों की
स्नेह सपनों की दुनिया में परियों के संग खेलती खेल,
तब तक का सारा वक्त माँ लेखन को समर्पित करती
...
एक दिन स्नेह ने मासूम सवाल किया ?
तुम जब देखो काम करती रहती हो
कभी हम बच्चों का ध्यान तो कभी लिखती दिखती हो
बस आराम नहीं करती, माँ सहज भाव से मुस्कराते हुये ...
लेखन मेरा 'प्रेम' है इसके बिना मेरी हर सांस अधूरी है
स्नेह की नन्हीं पलकें हैरानी से फैल गईं
वो धीमे स्वर में बोली 'प्रेम' लेकिन माँ !
किसी को पता चल गया तो आपको प्रेम है तब
माँ उसके सवाल पर हँसी ये प्रेम तो मुझे विरासत में मिला है !
माँ सरस्वती की आराधना में निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य
उनकी श्रेष्ठ उपासना है, जिसे माँ सहर्ष स्वीकार कर बदले में
यश, ख्याति और आत्मसंतुष्टि दे हर क्षेत्र में अपराजित रखती है !
...
स्नेह ने माँ के गले में नन्हीं बांहे डाली और बोली तभी तो
सब आपको प्यार और सम्मान देते हैं
माँ ने समझाया ..
इसके पहले मैं सबकी भावनाओं का मान करती हूँ
हर नये व्यक्ति के आने पर बिना किसी परिचय के उसकी चौखट पर
दस्तक़ देती हूँ .. उसे सबसे मिलाती हूँ
फिर यूँ ही खोजते-खोजते अपनी इस अमूल्य निधि में
जाने कितने रत्नों का संग्रह करते हुए नित सूरज के उगते ही
हर दिशा में एक नई तलाश के साथ
मैं अभिषेक करती हूँ आपनी भावनाओं का तभी पाती हूँ
यह प्यार और सम्मान याद रखो जो हम पाना चाहते हैं पहले
हमें वही औरों को देना होता है..
स्नेह ने समझदारी दिखाई तो मैं आपकी हेल्प कैसे कर सकती हूँ
मुझे तो बस आपका ही प्यार चाहिये
माँ ने उसकी इस शैतानी पर भी मुस्कराते हुये कहा
हर आने वाले का स्वागत ! जाने वाले को शुभकामनायें !! देते हुये चुप बैठो !!!
(आदरणीय रश्मि प्रभा जी , जो मेरे ही नहीं कितनों के अन्दर माँ सी छवि लिए रहती हैं -
उनसे जब भी कुछ सुना,पढ़ा,सीखा तो लगा कुछ कहूँ ')
आपने तो सबके हिस्से का कह दिया ...वाकई ..:)
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट.........रश्मि जी का योगदान अमूल्य है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता ...मन और दिल दोनों को छू गयी.
जवाब देंहटाएं:) ek smile kafi hai.. iss rachna ke liye:)
जवाब देंहटाएंमेरी आँखों में तुमसब अति विशिष्ट ..........
जवाब देंहटाएंस्नेह,आशीष,शुभकामनायें ..... दुआएँ
वाह दी वाह एक ही रचना में इतना कुछ कह दिया सचमुच पढ़कर आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंगहन भाव समेटे सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंजय हो ... सारे भाव समेट लिए आपने तो !
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची भवाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंजिसने भी
जवाब देंहटाएंस्नेह से गले लगाया
मुझे जीवन दर्शन
समझाया
विपत्ति में साथ निभाया
समय से लड़ना सिखाया
साथ रोया साथ हंसा
हर पल अपने साथ पाया
उसे ही
माँ का रूप समझा मैंने
उसे ही नमन किया मैंने
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसदा बधाई ||
बहुत खूब...|
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना सदा जी !:)
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
सचमुच बहुत ही खुबसूरत लाइन और रश्मि प्रभा जी का योगदान .
जवाब देंहटाएंहर दिशा में एक नई तलाश के साथ
जवाब देंहटाएंमैं अभिषेक करती हूँ आपनी भावनाओं का तभी पाती हूँ
यह प्यार और सम्मान याद रखो जो हम पाना चाहते हैं पहले
हमें वही औरों को देना होता है..
....एक शास्वत सत्य की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
जिसको भी साथ मिला रश्मि जी का उनके मन के भाव उकेर दिये हैं .... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंउन सभी में एक छोटा सा नाम मेरा भी है | आपने वाकई बहुत अच्छे से हम सब के मन का लिख दिया |
जवाब देंहटाएंऔर साथ ही जो तस्वीर अपने प्रयोग की है , न जाने क्यूँ ये तस्वीर मुझे बहुत पसंद है |
सादर
bahut sundar bhav sanyojan ...
जवाब देंहटाएंहर आने वाले का स्वागत ! जाने वाले को शुभकामनायें !! देते हुये चुप बैठो !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी का कहा सोलह आने सच है , साथ ही सच ये भी है की हमे स्वयं उनमे सदा माँ की छवि ही दिखती है।
सादर
बहुत सुन्दर कृतज्ञता ज्ञापन रश्मि प्रभाजी के लिए! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएं.... बहुत ही खुबसूरत लाइन...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा,,,
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि प्रभा जी , जो मेरे ही नहीं कितनों के अन्दर माँ सी छवि लिए रहती हैं -
उनसे जब भी कुछ सुना,पढ़ा,सीखा तो लगा कुछ कहूँ ')
बहुत उम्दा भावअभिव्यक्ति,,,,,
bahut sundar..........dil ko chu gayi
जवाब देंहटाएंमां बेटी के निश्छल प्रेम और सरस्वती की आराधना की इससे बढ़िया अभिव्यक्ति क्या हो सकती है. सदा जी! आपकी लेखनी तो सरिता के प्रवाह की तरह स्वाभाविक गति से निरंतर चलती है. कमाल है.
जवाब देंहटाएंसच-मुच उम्दा
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
पढते हुये मुझे ऐसा ही लग रहा था जैसे रश्मि जी के लिये लिखा गया हो और जब आखिर में पढा तो लगा कि हाँ कुछ जानने लगी हूँ उन्हें :)
जवाब देंहटाएंसमेटा नहीं जाता प्रेम कैसे होवूं ऋण मुक्त
जवाब देंहटाएंमन के भावो को बहुत ही सादगी और
जवाब देंहटाएंसुन्दरता से व्यक्त किया है..बहुत ही खुबसूरत रचना...
:-)
वाणी निकसी,
जवाब देंहटाएंसबके मन की।
सुन्दर बात
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति......
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar ..behtreen abhiwykti ...sabke dil ki baat kah di AAPNE TO IS RACHNA MEIN ....
जवाब देंहटाएंरश्मि दी के लिए लिखा तो रचना खुद-ब-खुद अनमोल हो गई
जवाब देंहटाएंऐसी ही हैं हम सबकी प्यारी रश्मि दी !!
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंस्नेह ने माँ के गले में नन्हीं बांहे डाली और बोली तभी तो
जवाब देंहटाएंसब आपको प्यार और सम्मान देते हैं
माँ ने समझाया ..
इसके पहले मैं सबकी भावनाओं का मान करती हूँ
हर नये व्यक्ति के आने पर बिना किसी परिचय के उसकी चौखट पर
दस्तक़ देती हूँ .. उसे सबसे मिलाती हूँ
फिर यूँ ही खोजते-खोजते अपनी इस अमूल्य निधि में
जाने कितने रत्नों का संग्रह करते हुए नित सूरज के उगते ही
हर दिशा में एक नई तलाश के साथ
मैं अभिषेक करती हूँ आपनी भावनाओं का तभी पाती हूँ
यह प्यार और सम्मान याद रखो जो हम पाना चाहते हैं पहले
हमें वही औरों को देना होता है..
मैं अभिषेक करती हूँ आपनी ............(अपनी )...........भावनाओं का तभी पाती हूँ .
आदर करने से आदर नेहा से नेहा मिलता है ......यही सीख है माँ के कोमल स्पर्श संसर्ग की .
सबके मन की कह दी :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं सदा......
जवाब देंहटाएंरश्मि दी के लिए हम सबकी भावनाएँ ऐसी ही हैं...
उनके ख़याल से ही मन में आदर और प्रेम उमड़ता है..
आभार..
अनु
निश्छल प्रेम की इस अविरल धारा का आनंद केवल महसूस ही किया जा सकता है ...
जवाब देंहटाएंदिल में सीधे उतर जाती है ये रचना ...