मंगलवार, 6 नवंबर 2012

वक्‍़त की किताब पर ... !!!













वक्‍़त की किताब
हर पृष्‍ठ पर हर लम्‍हे का
हिसाब रखते-रखते
भर चली है
...
अंको की गणना करता
उम्र का यह पड़ाव
सोचता है कभी ठहरने को
तो ठहर नहीं पाता
सब कुछ वक्‍़त की किताब पर
अंकित होने के फेर में
उसके इर्द-गिर्द
एक ताना-बाना रचता
काल करे सो आज कर
आज करे सो अब  ...
को चरितार्थ करता
चला जा रहा है
...
कभी डालना चाहती हूँ
एक दृष्टि
पिछले पृष्‍ठों पर
चाहती हूँ कुछ सुधार करना
पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
वक्‍़त की किताब पर
जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
आगे बढ़ना
कोशिश यही लेकर
अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो !!!

20 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति..बहुत ही अच्छी रचना.

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  2. चाहती हूँ कुछ सुधार करना
    पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
    वक्‍़त की किताब पर
    जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
    आगे बढ़ना

    बेहद प्रभावशाली रचना के लिए आभार सदा .......जिन्दगी जीने के लिए कुछ ऐसा ही करना पड़ता है ।

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  3. पिछले पृष्‍ठों पर
    चाहती हूँ कुछ सुधार करना
    पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
    वक्‍़त की किताब पर
    जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
    आगे बढ़ना
    कोशिश यही लेकर
    अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो,,,,,

    बहुत गहरे सुंदर विचार,,,,काश सुधार करना संभ्भव हो पाता,,,,,

    RECENT POST: सागर,,,

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  4. गलतियाँ दोहराने से बचने का सबक याद रहे -

    -

    बढ़िया आदरेया ।।

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  5. न कोई रबर, न घुमाने को कोई पहिया .... अतीत के पन्ने यूँ हीं रह जाते हैं

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  6. पढ़ने योग्य पुस्तक हो जाता है जीवन।

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  7. वक़्त की किताब में सच ही प्रूफ रीडिंग नहीं हो सकती .... सुंदर प्र्स्तुती

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  8. पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
    वक्‍़त की किताब पर
    जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
    आगे बढ़ना
    कोशिश यही लेकर
    अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो !!!sahi kaha bahut sundar abhiwykti

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  9. Atit ke panne ki galati kabhi sudhara nahi ja sakti. antim para me aapne bilkul sach kaha hai.

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  10. कभी डालना चाहती हूँ
    एक दृष्टि
    पिछले पृष्‍ठों पर
    चाहती हूँ कुछ सुधार करना
    पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
    वक्‍़त की किताब पर
    जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
    आगे बढ़ना
    कोशिश यही लेकर
    अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो !!!

    आपने पहले सोच लिया और अंजाम दे दिया हम सोचते ही रह गए और ज़िन्दगी बीत गई

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  11. वाह bHUT KHOOB ! ZINDGEE BHI AAGE KEE AUR HAI PICHHE KEE AUR NAHIN AAGE KE PRISHTHHON PAR GALTI N HO VAAH !

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  12. सार्थक सन्देश कविता के माध्यम से

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  13. सार्थक सन्देश कविता के माध्यम से

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  14. जीवन एक किताब है जब चाहो पढ़ लो.

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  15. बहुत ही खुबसुरत पोस्ट ... गहरा अर्थ लिए हुए .. आपकी उम्दा सौच को सलाम करता हूँ।

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

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  16. कभी डालना चाहती हूँ
    एक दृष्टि
    पिछले पृष्‍ठों पर
    चाहती हूँ कुछ सुधार करना
    पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
    वक्‍़त की किताब पर
    जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
    आगे बढ़ना
    कोशिश यही लेकर
    अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो !!!


    पूरी तरह सहमत हूं, शायद आज की यही जीवन शैली है।
    भागती दौड़ती जिदंगी में आगे गल्तियां ना हों, पिछला तो जो हो गया..
    क्या कहने..

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  17. सुन्दर सार्थक सवेदनशील रचना दीदी आपकी हर रचना बहुत जुदा होती है कुछ न कुछ नया सिखा जाती है।

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  18. वक्त की किताब इतनी महीन है कि इसकी प्रूफ रीडिंग हमेशा संभव नहीं हो पाती. सुंदर लिखा है आपने. अभी स्वास्थ्य की कुछ समस्याएँ चल रही हैं. शीघ्र आपकी अन्य रचनाओँ पर लौटने की आशा करता हूँ. अपनी ब्लॉग लिस्ट बहुत छोटी करने जा रहा हूँ.

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....