कुछ शब्दों का भार आज
कविता पर है
वो थकी है मेरे मन के बोझ भरे शब्दों से
पर समझती है मेरे मन को
तभी परत - दर - परत
खुलती जा रही है तह लग उसकी सारी हदें
उतरी है कागज़ पर बनकर
तुम्हारा प्यार कभी
कभी बेचैनी बनकर झांकती सी है पंक्तियों में !
...
कभी आतुर हुई है तुमसे
इकरार करने को मुहब्बत का
या फिर कभी जकड़ी गई बेडि़यों में
पर यकीं जानो वह मुहब्बत
आज भी जिंदा है मरी नहीं
सुबूत मत मांगना
ये धड़कने तुम्हारे नाम पर
अब भी तेज हो जाती हैं !!
...
जब भी प्रेम
लम्हा बन आंखों में ठहरता है,
मुझे इसमें ईश्वर दिखाई देता है
किसी ने कहा है प्रेम और ईश्वर दोनो
एक ही तत्व हैं
तुमने भी तो कहा था
कुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
कहो मैं कैसे भूलती फिर इस 'प्रेम' को
इसका अहसास, इसके अमरत्व की
एक बूँद कभी बारिश बनकर बरसती है,
कभी टपकती है आंखो से आंसुओं के रूप में
कभी चंदा की चांदनी बन
पूरे आंसमा को नहीं धरा को भी रौशन करती है
पर आज इसका पूरा भार
कविता पर है, इसकी रचना
इसका होना ही प्रेम है !!!
सुबूत मत मांगना
जवाब देंहटाएंये धड़कने तुम्हारे नाम पर
अब भी तेज हो जाती हैं !!
...
हर कविता ॥चाहे विरह की हो या व्यंग्य हो या हो एहसास से भरी ॥सबमें ही तो प्रेम दिखता है .... सुंदर प्रस्तुति
कुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
जवाब देंहटाएंकहो मैं कैसे भूलती फिर इस 'प्रेम' को
इसका अहसास, इसके अमरत्व की
एक बूँद कभी बारिश बनकर बरसती है,
कभी टपकती है आंखो से आंसुओं के रूप में
कभी चंदा की चांदनी बन
पूरे आंसमा को नहीं धरा को भी रौशन करती है
बहुत खूबसूरत भाव हैं ये.सुन्दर कृति.
behad khubsurat bhaaw hain is rachna ke ..behtreen
जवाब देंहटाएंसबूत मत माँगना.....
जवाब देंहटाएं.............................
तू समझता है कि खुशबू से मोयत्तर है हयात
तूने चखा ही नहीं ज़हर किसी मौसम का
तुझ पे गुज़रा ही नहीं रक्स-ए-जुनून का आलम
तू कभी वक्त की दहलीज़ पर ठहरा ही नहीं
अब तुझे कैसे बताये हमें दुःख क्या है
जिस्म में रेंगती है मुसाफत की थकान
बेहद भावपूर्ण रचना ....आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !बहुत खूब !बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंजब भी प्रेम
जवाब देंहटाएंलम्हा बन आंखों में ठहरता है,
मुझे इसमें ईश्वर दिखाई देता है
किसी ने कहा है प्रेम और ईश्वर दोनो
एक ही तत्व हैं
तुमने भी तो कहा था
कुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
कहो मैं कैसे भूलती फिर इस 'प्रेम' को
इसका अहसास, इसके अमरत्व की
एक बूँद कभी बारिश बनकर बरसती है,
कभी टपकती है आंखो से आंसुओं के रूप में
कभी चंदा की चांदनी बन
पूरे आंसमा को नहीं धरा को भी रौशन करती है
पर आज इसका पूरा भार
कविता पर है, इसकी रचना
इसका होना ही प्रेम है !!!
बहुत खूब !बहुत खूब !बहुत खूब !
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण,प्रेमपगी कविता...
सस्नेह
अनु
बिलकुल, इस कविता का होना ही प्रेम है ... इतनी सुन्दर कविता के लिए बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
prem har haal me prem hai ... sukun,ghabrahat,aandhi,tufaan,andhera........prem ka bhaar hota hi hota hai prem par
जवाब देंहटाएंवाह ..निशब्द हूँ ....प्रेम की इससे सुंदर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती ...
जवाब देंहटाएं्बहुत सुन्दर भावप्रधान रचना
जवाब देंहटाएंप्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......
जवाब देंहटाएंप्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post...: अपने साये में जीने दो.
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंप्रेममयी रचना...
:-)
बहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
जवाब देंहटाएंइसे भी अवश्य देखें!
चर्चामंच पर एक पोस्ट का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढमति और न जाने क्या क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से नवाज़ा आदरणीय ग़ाफ़िल जी को हम उस आलेख का लिंक तथा उन तथाकथित हिन्दूवादियों की टिप्पणयों यहां पोस्ट कर रहे हैं आप सभी से अपेक्षा है कि उस लिंक को भी पढ़ें जिस पर इन्होंने विवाद पैदा किया और इनकी प्रतिक्रियायें भी पढ़ें फिर अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें कि कौन क्या है? सादर -रविकर
राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
कविता भावों और शब्दों को सम्हाल लेगी..
जवाब देंहटाएंकिस तरह दिया जा सकेगा सुबूत ...
जवाब देंहटाएंप्रेम के ईश्वर होने का !
बहुत खूब !
बेहतरीन और शानदार।
जवाब देंहटाएंतुमने भी तो कहा था
जवाब देंहटाएंकुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
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पर आज इसका पूरा भार
कविता पर है, इसकी रचना
इसका होना ही प्रेम है
................ और इस भार को बखूबी वहाँ कर रही है कविता !