मेरे पास तुम्हारी सोच का
एक विस्तृत आकाश है
जो मुझे कहीं भी
डगमगाने नहीं देता
मुझे उड़ने का हौसला देकर
मेरे पंखों को सहलाता है जब भी
मुझे ऊंचाईयों से भय नहीं लगता
तुम साथ - साथ उड़ती हो
बन के हवा जब मेरे नन्हें पंख
शिथिल होने को होते
तुम मेरे कानों में
आकर चुपके से कहती
देखो तो मंजिल कितनी पास है
क्यूँ घबराना
हम पहुँच गए हैं अब तो विजय द्वार पर
...
हारने का तो प्रश्न ही नहीं
तुम्हें आज मैं एक सच बतलाती हूँ
हार को लोग नहीं देखते
लोग सिर्फ विजय का स्वागत करते हैं
पराजय का सामना तो सिर्फ
मन करता है और मस्तिष्क लड़ता है
वक़्त कभी भी बुरा नहीं होता
वो तो सबके लिए एक समान होता है
बुरे तो हालात होते हैं
....
तुमने देखा है न कच्ची मिट्टी को
पानी पड़ते ही कैसे घुल जाती है
पानी के साथ बह जाती है
लेकिन उसी मिट्टी के घड़े में
पानी कितने दिनों तक सुरक्षित रहता है
क्यूँ कि वह आग पर पकाया हुआ होता है
जो जितना तपता है उतना ही कुंदन होता है
हर कसौटी पर खरा उतरता है
चाहे तुम उसे फिर कितना भी परख़ लो ... !!!
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