बुधवार, 19 अगस्त 2009

टूटे हुए टुकड़े के करीब ...

उलझ गया आज,

मैं फिर तेरी यादों में

सोचा था

काट लूंगा बाकी जिन्‍दगी

तेरे वादों में

तनहां ये सफर

मुश्किल होगा अब


आज जाने कैसे,

कुछ किरचें

फिर मिल गईं

आपस में

हुईं टूटे हुए टुकड़े के करीब

जैसे कह रहीं हों

अब हम न एक होंगे

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर, रचना को थोडा और बड़ा कर लेते तो और भी सुन्दर लगती !

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद गहरे भाव लिये हुये कविता............बहुत ही सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. आज जाने कैसे,
    कुछ किरचें
    फिर मिल गईं
    आपस में
    ====
    किरचो का मिलना और फिर एक नई किरच बन जाना
    एहसास के इस सुन्दर भाव को बखूबी पिरोया है

    जवाब देंहटाएं
  4. आज जाने कैसे,
    कुछ किरचें
    फिर मिल गईं
    आपस में

    Badhiya hai ....

    जवाब देंहटाएं
  5. टूटी किरचे मिलकर कभी फिर ना जुड़ सकीं ...अच्छी रचना ..!!

    जवाब देंहटाएं
  6. टूटी हुए किरचों ने कहा ....... अब हम न होंगे एक ............ लाजवाब, बहुत ही भावौक रचना है .........

    जवाब देंहटाएं
  7. खुबसूरत रचना के लिए मुबारकबाद कुबूल करें...

    प्रमोद कुश 'तनहा'

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत अच्छा लगा !

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....