जाने कब से बिखरी थी
मेरे चारों ओर तेरी यादें
जिन्हें समेटकर
मैं तुझे अपनी रूह में
बसाना चाहता था
जिनसे निकलकर
फिर तुम यूं जा ना सको
मुझे देकर तनहाई
मैं खुद के वजूद में,
उन यादों को
यूं गूंथना चाहता हूं
जैसे एक –एक फूल गूंथकर
बनती है पूरी माला
जिसकी खुश्बू बस जाती है
अन्तर्मन में
यादों के साये में
मैं गुनगुनाना चाहता हूं
तुझे गीत की तरह
अपनाना चाहता हूं
संगीत की तरह जीवन में
Is maasoom soch ko pranam.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
waah waah waah waah waah ......our koee shbda sujh hi nahi raha hai
जवाब देंहटाएंसदा जी बहुत ही बेहतरीन रचना मन खुश हो गया ये लायने तो कुछ ख़ास ही बन पड़ी है
जवाब देंहटाएंमैं गुनगुनाना चाहता हूं
तुझे गीत की तरह
अपनाना चाहता हूं
संगीत की तरह जीवन में
मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुंदर रचना! यही कहूँगी की आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंतुझे गीत की तरह
जवाब देंहटाएंअपनाना चाहता हूं
संगीत की तरह जीवन में।
सुंदर, आह्ललादक लाइने।
सदा जी की सदा की तरह एक और बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबधाई.
dil se nikli hui
जवाब देंहटाएंdil hi ki baateiN
anmol rachnaa
anmol prastuti
---MUFLIS---
जिनसे निकलकर
जवाब देंहटाएंफिर तुम यूं जा ना सको
मुझे देकर तनहाई
मैं खुद के वजूद में,
उन यादों को
यूं गूंथना चाहता हूं
जैसे एक –एक फूल गूंथकर
बनती है पूरी माला...mujhe ye kavita etni achhi lagi kyee baar padhi...boht khoobsurat likhti hai aap....
मैं गुनगुनाना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतुझे गीत की तरह
अपनाना चाहता हूं
संगीत की तरह जीवन में
लाजवाब लिखा है ............ किसी को मन में basaane की chaah .......... sundar रचना
यादों के साये में
जवाब देंहटाएंमैं गुनगुनाना चाहता हूं
तुझे गीत की तरह
अपनाना चाहता हूं
संगीत की तरह जीवन में
..यादों के सहारे जीवन के सकारात्मक पक्षों को उजागर करती कविता.
बहुत प्यारी रचना सदा जी...
जवाब देंहटाएंआज कुछ पुराने पन्ने पलट रही हूँ...
आप भी यादें ताज़ा कर लीजिए :-)
बहुत सुन्दर रचना.दिल को भा गयी
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