सताती हैं अब भी,
जाने कितनी राखियों में से,
खोज लाती थी राखी,
जो मन भायेगी
मेरे भाई को,
दिखलाती थी बड़े चाव से ।
अब भी ढूंढ कर लाती हूं राखी,
डालनी जो होती है लिफाफे में,
भेजनी होती है स्नेह के साथ,
कहीं रास्तें में,
उसकी सुन्दरता बिगड़ ना जाये,
उसके साथ बन्द करती हूं,
स्नेह, विश्वास, परम्परा,
रोकती हूं,
आंसुओं की बूंदो को,
लिफाफे पर लिखे,
पते पे गिरने से,
पहुंच जाये,
राखी के दिन तक भाई के पास ।
Bahut sundar bhaav.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
स्नेह, विश्वास, परम्परा,
जवाब देंहटाएंरोकती हूं,
आंसुओं की बूंदो को,
लिफाफे पर लिखे,
पते पे गिरने से,
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सदा जी आपकी यह सदा तो दिल के गहराई तक उतर गयी.
कितनी सादगी से आपने कहा है!!
बेहतरीन
स्नेही बहन की भावुक पाती स्नेहिल भाई के लिए .........अच्छी रचना है ........ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें...........
जवाब देंहटाएंकितनी सादगी से मन के उदगार व्यक्त कर दिए हैं , बस जो सोचते हैं उसको शब्दों में व्यक्त कर पाना ही तो कलाकारी है !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
बहुत सुन्दर सरल सामयिक भाई बहिन के प्यार दुलार की अभिव्यक्ति है बधाई
जवाब देंहटाएंस्नेह, विश्वास, परम्परा,
जवाब देंहटाएंरोकती हूं,
आंसुओं की बूंदो को,
लिफाफे पर लिखे,
पते पे गिरने से,
पहुंच जाये,
राखी के दिन तक भाई के पास ।
Bahut bhavon...se paripoorn rachana.badhai.
poonam