शनिवार, 25 अप्रैल 2009

चुरा लिये जिन्‍दगी ने . . .

हसरतों के समन्‍दर में जब - तब,
एक नई हसरत जन्‍म लेती रही ।

चुपके से उसको बहला दिया मैने जब,
देख बेबसी मेरी वो भी दफन होती रही ।

घुटन, दर्द, आंसू भी उसके न हुये जब,
पल- पल वो पराई खुद से होती रही ।

लुटा दिया उसने यूं तबस्‍सुम का खजाना,
खोखली हंसी से खुद ही आहत होती रही ।

चुरा लिये जिन्‍दगी ने हर हंसी पल उसके,
फिर भी ‘ सदा' वो उसकी बन्‍दगी करती रही ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khoobsoorat ahsaas........sach zindagi kabhi kabhi sab kuch chura leti hai..............adbhut,dil ko choo gayi aapki rachna.

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  2. घुटन, दर्द, आंसू भी उसके न हुये जब,
    पल- पल वो पराई खुद से होती रही ।

    लुटा दिया उसने यूं तबस्‍सुम का खजाना,
    खोखली हंसी से खुद ही आहत होती रही ।
    ehsason ko bahut achhe se piroya hai lafzon mein sunder rachana badhai

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  3. चुरा लिये जिन्‍दगी ने हर हंसी पल उसके,
    फिर भी ‘ सदा' वो उसकी बन्‍दगी करती रही ।
    अदभुत!सुंदर। मनोभाव।

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  4. घुटन, दर्द, आंसू भी उसके न हुये जब,
    पल- पल वो पराई खुद से होती रही ।

    हृदयस्पर्शी ..

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....