दर्द से मेरा रिश्ता बहुत है पुराना,
आंसुओं का भी है यहां आना-जाना ।
कुछ अश्क दूर तक आ के, ठहर जाते हैं तो,
कुछ का काम होता है, केवल छलक जाना ।
सुनाता हूं दास्तां जब अधूरे प्यार की, कहता हूं,
बन्द कर दो अब तो यूं अपना आना-जाना ।
तमाम बंदिशें लगा के देखा है मैंने उस पर,
न बंद हुआ उसका, मुझे यूं सरेआम रुलाना ।
तनहाई के साये में ही ‘सदा' गुजरा मेरा हर पल,
शान में था उसकी हर महफ़िल की जान बन जाना ।
सोमवार, 13 अप्रैल 2009
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- सदा
- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
waah...............bahut gahre doobkar likhte hain aap.har nazm dard mein doobi huyi.
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi padharein.
तमाम बंदिशें लगा के देखा है मैंने उस पर,
जवाब देंहटाएंन बंद हुआ उसका, मुझे यूं सरेआम रुलाना ।
शानदार पंक्तियाँ हैं.
सादर
दर्द से मेरा रिश्ता बहुत है पुराना,
जवाब देंहटाएंआंसुओं का भी है यहां आना-जाना ।
बेहतरीन रचना....सादर अभिनन्दन !!!
तमाम बंदिशें लगा के देखा है मैंने उस पर,
जवाब देंहटाएंन बंद हुआ उसका, मुझे यूं सरेआम रुलाना ।
बहुत असर है उसकी बेरुखी में ...शुष्क रेगिस्तान से धारें निकल पड़ी !
लाजवाब !