अपना ही साया जब नजर नही आता आदमी को,
सोचता है वो तन्हाई के साये में कैसे जिया जाए ।
अंधेरे इस कदर मुझे तड़पा गए कि मैंने भी,
एक दिन ये ठाना अपने लिए कुछ किया जाए ।
मुठ्ठी में बंद करके मैंने जुगनुओं को सोचा,
कुछ देर ही सही मेरी तकदीर रौशन हो जाए ।
मेरी मुस्कान पल भर की देख बोले जुगनू भी,
होने वाली है अब तो सहर बोल क्या किया जाए ।
दिल्लगी पल दो पल के लिए "सदा" अच्छी है,
ताउम्र लगा के दिल ना किसी से जिया जाए ।
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
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मेरे बारे में
- सदा
- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
क्या बात है ..वाह बहुत खूब ...दिल की बात है
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
waah waah kya khoob likhte hain.
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जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है
....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप
.. ....संगीता स्वरूप
. .
कभी-कभी तन्हाई के साये भी भले लगते हैं...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बहुत खूब ॥
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाह वाह वाह सदा जी।
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