यह सच है जब कोई रूठा हो तो फिर हँसकर बात नहीं करता,
आहत हो जाता मन कितना जब कोई अपना बात नहीं करता ।
अपनों की भीड़ में सिकुड़ा सिमटा रहता हूँ जैसे कैदी हो कोई,
डालकर नज़र बढ़ जाते हैं आगे पर कोई भी बात नहीं करता ।
मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था अब देखो,
होठों पर मुस्कान लिए बैठा हूँ फिर भी कोई बात नहीं करता ।
मैं वही हूँ वही है वजूद मेरा फिर भी अनमना सा क्यूँ है कोई,
कहता हूँ जब भी कुछ सुन लेते हैं पर कोई भी बात नहीं करता ।
दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।