सोमवार, 31 अगस्त 2009

चन्‍द लकीरों से ....

आड़ी तिरछी

टूटी फूटी रेखाओं में

हथेली की जब

भाग्‍य रेखा

कहीं बीच में ही

कटी होती है

यह घोषित करती है

उसका दुर्भाग्‍य

तब वह बदलना चाहता है

उन लकीरों का अर्थ

अपने कर्म से

कहीं

जीवन रेखा

नजर आती जब

दो टुकड़ों में विभाजित

तब वह जीना चाहता

हर पल को

आत्‍मविश्‍वास से

इसी तरह एक

दिन बदल लेता वह

अपनी पूरी तकदीर

चन्‍द लकीरों से

वह लड़कर

विजयी होता विश्‍वास

के साथ

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

एक – एक फूल गूंथकर ...

जाने कब से बिखरी थी

मेरे चारों ओर तेरी यादें

जिन्‍हें समेटकर

मैं तुझे अपनी रूह में

बसाना चाहता था


जिनसे निकलकर

फिर तुम यूं जा ना सको

मुझे देकर तनहाई

मैं खुद के वजूद में,

उन यादों को

यूं गूंथना चाहता हूं

जैसे एक एक फूल गूंथकर

बनती है पूरी माला


जिसकी खुश्‍बू बस जाती है

अन्‍तर्मन में

यादों के साये में

मैं गुनगुनाना चाहता हूं

तुझे गीत की तरह

अपनाना चाहता हूं

संगीत की तरह जीवन में

शनिवार, 22 अगस्त 2009

गणपति सबके भाग्‍यविधाता ...


आ गये रिद्धि-सिद्धि के संग,

गणपति सबके भाग्‍यविधाता ।

आसन पर इन्‍हें विराजो भक्‍तो,

मोदक मन को इनके बेहद भाता।

घर-घर आएंगी खुशियां गणपति के

आने से चारों ओर मंगल छा जाता ।

अगले बरस, फिर जल्‍दी आ कहके,

इनको हर बार विदा किया है जाता ।

गणपति बप्‍पा मोरया कहकर तो देखो,

मन कितना सदा पु‍लकित हो जाता ।

बुधवार, 19 अगस्त 2009

टूटे हुए टुकड़े के करीब ...

उलझ गया आज,

मैं फिर तेरी यादों में

सोचा था

काट लूंगा बाकी जिन्‍दगी

तेरे वादों में

तनहां ये सफर

मुश्किल होगा अब


आज जाने कैसे,

कुछ किरचें

फिर मिल गईं

आपस में

हुईं टूटे हुए टुकड़े के करीब

जैसे कह रहीं हों

अब हम न एक होंगे

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

हर दिल का सम्‍मान है तिरंगा . . .


उत्‍साहित हैं बच्‍चे, उनके संग उल्‍लासित है तिरंगा,

पहन पुष्‍पहार अभिनन्‍दन गीतों से शोभित है तिरंगा ।

इस देश की आन है, हर एक दिल की जान है,

खुद अपनी ही नहीं भारत की पहचान है तिरंगा ।

हिम शिखर पर लहरा कर ये बतलाता गौरव अपना,

हिन्‍दुस्‍तान की शान, हर दिल का सम्‍मान है तिरंगा ।

जन गण मन का गायन हो सदा इसकी शान में,

तो वंदे मातरम् कहने पर खुशी से लहराये तिरंगा ।

हिन्‍दी भाषी हैं हम वतन अपना हिन्‍दुस्‍तान है,

कहें जब, आंखो में सबसे पहले लहराये तिरंगा ।

बुधवार, 12 अगस्त 2009

शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन . . .


शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन, करने चले नमन,

लहराने तिरंगा ले के ख्‍वाहिश सब ओर हो अमन ।

चाहत और वफादारी का पैगाम, देता सरहद पे,

बैठा सिपाही निभाने को वादा, देश में हो अमन ।

न ये तेरा है न मेरा है भारत हर हिन्‍दुस्‍तानी का,

रंग-रंग के खिलते फूल जहां ये है वो चमन ।

बना देश को गौरवाशाली लहरा कर शान दिखाये ये,

जीत के संग सम्‍मान दिलाये कहलाये ये मेरा वतन ।

छब्‍बीस जनवरी, पन्‍द्रह अगस्‍त को लाल किले पर,

लहराता जो तिरंगा तो झूमे सदा हर एक मन

सोमवार, 10 अगस्त 2009

रूठ जाता अपने आप से वो . . .

जब भी वो उदास हो जाता है,

तुझे अपने और पास पाता है ।

तनहाईयों में तेरा अक्‍स जब,

दरो-दिवार में नजर आता है ।

रूठ जाता अपने आप से वो,

क्‍यों नहीं तुझे भूल पाता है ।

तेरी हर बात को दिल से लगा,

मसरूफ खुद को ही पाता है ।

सफर कठिन है मान भी लेता,

पर किसी से कह नहीं पाता है ।

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कितनी राखियों में से ...



यादें बचपन की

सताती हैं अब भी,

जाने कितनी राखियों में से,

खोज लाती थी राखी,

जो मन भायेगी

मेरे भाई को,

दिखलाती थी बड़े चाव से ।

अब भी ढूंढ कर लाती हूं राखी,

डालनी जो होती है लिफाफे में,

भेजनी होती है स्‍नेह के साथ,

कहीं रास्‍तें में,

उसकी सुन्‍दरता बिगड़ ना जाये,

उसके साथ बन्‍द करती हूं,

स्‍नेह, विश्‍वास, परम्‍परा,

रोकती हूं,

आंसुओं की बूंदो को,

लिफाफे पर लिखे,

पते पे गिरने से,

पहुंच जाये,

राखी के दिन तक भाई के पास ।

सोमवार, 3 अगस्त 2009

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं ...

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं

इनसे तो जो भी मिले

वो इनके लिये अच्‍छे हैं !


हर बात को शिरोधार्य करते,

सच्‍ची सीधी सादी बातों से,

सब का मन यह पुलकित करते

बुरा लगता जो किसी बात का

आंख में आंसू ले आते,

रोते-रोते उसको कहते जाते

तुम गंदे हो

मन में नहीं द्वेष ये रखते

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं !


ना लड़की से बुराई

ना लड़के से भलाई

बच्‍चों संग इ‍ठलाते इतराते,

पल में झगड़ा करते

पल में झगड़े फिर मिट जाते

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं !


लुका छिपी खेल,

बहुत है मन को भाता,

मिकी माउस मन को बड़ा लुभाता

बिटिया को गुडि़या है भाती,

बेटे को बैट बॉल है प्‍यारा,

मुझको तो इनका बपचन है भाता

बच्‍चे ही तो मन के सच्‍चे हैं

शनिवार, 1 अगस्त 2009

सितारों से नजदीकियां . . .

धरती को मां,

चांद को मामा

इन रिश्‍तों से

जिन्‍दा रखी

मुस्‍कराहट मैने ।


बदलियों में छुप जाता,

चांद जब भी

सितारों से नजदीकियां,

रखी मैने ।


रातें खामोशी की,

चादर ओढ़ लेती जब,

उजालों के लिए,

खिड़कियां खु‍ली

रखी मैने ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....