गुरुवार, 19 सितंबर 2019

हो जाता है तर्पण !!

पापा आप नियम से
हर छह महीने में
नीम की पत्तियां पीस
उनकी गोली बना हमें
खिलाया करते
बदलते मौसम के
दुष्प्रभाव दूर करने को
और मैं बुरा सा
मुँह बनाते हुए कहती
आप कितना कुछ या
इसके बाद मीठा खिला दो
पर थोड़ी देर में
फिर से मुँह कसैला हो जाता है !
आप हँसते हुए कहते
ऐसी ही तो है
ये जिंदगी भी
कितना कुछ अच्छा हो
पर दुःख का एक लम्हा
उन कई अच्छे दिनों पर
भारी हो जाता है !!
तब चखा नहीं था
स्वाद ज़िंदगी का मैंने
अंजान थी इसकी
कड़वाहटों से
आज भोर में कुछ
नीम की पत्तियां चबा
गुटक गई पानी से
बड़ी देर तक
मुँह का कसैलापन
भला लगता रहा मन को
शायद ऐसे ही होती है
अर्पण कोई याद आपको
और हो जाता है तर्पण
पितृ पक्ष में
भीगी पलकों के साये में
आपके नाम का  !!
....


13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2019) को    "हिन्दी को बिसराया है"   (चर्चा अंक- 3464)  (चर्चा अंक- 3457)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि । खूबसूरती से व्यक्त की हैं पापा के प्रति अपनी भावनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अपनेपन और दुलार की खुशबू से भीगी मन छूती भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
    सादर प्रणाम..भावपूर्ण श्रद्धांजलि🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. यादें कितनी भी अच्छी हो मन भर आता है
    बहुत सुंदर जिन्दगी से जुडी मौलिक रचना.

    अंदाजे-बयाँ कोई और

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर मन को छू गया सृजन आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अंतस तक भिगो गई आपकी रचना ...
    नमन है मेरा पितरों को ... आपके मन के भाव सभी के साझा हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  7. विनम्र श्रद्धांजलि ।

    तब चखा नहीं था
    स्वाद ज़िंदगी का मैंने
    अंजान थी इसकी
    कड़वाहटों से
    आज भोर में कुछ
    नीम की पत्तियां चबा
    गुटक गई पानी से
    बड़ी देर तक
    मुँह का कसैलापन
    भला लगता रहा मन को


    बहुत सुंदर ....वाह !बेहतरीन सृजन आपका ...मन छूती भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..













    तब चखा नहीं था
    स्वाद ज़िंदगी का मैंने
    अंजान थी इसकी
    कड़वाहटों से
    आज भोर में कुछ
    नीम की पत्तियां चबा
    गुटक गई पानी से
    बड़ी देर तक
    मुँह का कसैलापन
    भला लगता रहा मन को


    बहुत सुंदर ....वाह !बेहतरीन सृजन आपका ...मन छूती भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत है आपका ... स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभार

      हटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....