सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

कुछ रिश्‍ते ... (6)

कुछ रिश्‍ते होते हैं ऐसे,
जिनमें नहीं होता
कोई रक्त सम्‍बंध
फिर भी वे दिल की
धड़कन जैसे होते हैं
...
कुछ रिश्‍ते होते हैं ऐसे,
जैसे कोई अनचाहा
बोझ
कहते हैं ऐसे रिश्‍तो को
तोड़ना बेहतर
...
कुछ रिश्‍ते होते हैं
धर्म के
जिनकी पवित्रता का
बोध बिल्‍कुल
ईश्‍वर जैसा होता है
...
कुछ रिश्‍ते
यक़ीन होते हैं
जो क़ायम रखते हैं
खुद को मरते दम तक
....

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

जब भी तुम्‍हें सोचती ...

तुम एक खिलखिलाती हँसी हो
मेरे लिए
जब भी मिली
अपनी मृद वाणी सहज़ मुस्‍कान  से
जीवन का दर्शन कराती
कभी लगता तुम प्‍यार हो सिर्फ प्‍यार
कभी लगता तुम जीवन हो सिर्फ जीवन
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं
तुम गीत बनती .. नदिया बनती
शब्‍दों में ढलती तो कविता बनती
फूलों में दिखती तो तितली सी
तुम्‍हारा एक रूप मन में बसा ही न‍हीं पाई
जब भी तुम्‍हें सोचती महसूस करती
तुम हर बार इक नया रूप धरती
तुम से कहती तो तुम कहती
ना मैं तो चिडि़या हूँ
...
मैं हैरान चिडि़या
वो भी गौरेया बेहद प्रिय
वक्‍़त के साथ चलते हुए तुम्‍हें
एहसासों को समेटना भी खूब आता है
पंखों का फैलाना लम्‍बी उड़ान भरना
थकन की शिक़न कहीं नहीं चेहरे पर
आराम का समय निश्चित
वक्‍़त - बेवक्‍़त कभी तुम्‍हारी पलकें
कभी नहीं झपकतीं
वही चिंतन वही मनन
जब जिसने आवाज दी तुम हाजि़र हो जाती
मैं विस्मित सी ! तुम्‍हें देखती
बस देखती रह जाती !!!
...

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

कुछ रिश्‍ते ... (5)

कुछ रिश्‍ते
सौभाग्‍य के सिन्‍दूर
काले मोतियों की माला में
गुथकर
जन्‍म-जन्‍मांतर के हो जाते हैं
....
कुछ रिश्‍ते
जन्‍म जन्‍मांतर के होते हैं
इस विश्‍वास के साथ
वर्षों की दूरियां भी
कोई मायने नहीं रखती
....
कुछ रिश्‍ते
जन्‍म से पहले ही
उम्र से बड़े हो जाते हैं
और आत्‍मीय भी
...
कुछ रिश्‍ते होते हैं
जो हर रिश्‍ते को सहेजते हैं
बचाते हैं बिखरने से
उनका होना ही
सब कुछ होता है
 ...
कुछ रिश्‍ते
तपस्‍वी होते हैं
एक साधना जो निरन्‍तर
तप में लीन रहती है
..

बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

गौरैया की चोंच में दबी किरण ...!!!














एक छवि तुम भाव की,
नज़र तुम पर जो उठे सम्‍मान की,
विषमताओं के मार्ग भी
अवरूद्ध से हो गये
जो हँसे लब तल्खियों से
वो विक्षिप्‍तता का भान अब कर रहे
तुम्‍हारे रास्‍ते में
सत्‍य अविचल था खड़ा हर मोड़ पर
देखकर कंटीली बाडियां
रक्‍तरंजित हथेलियों में कुंठाओं के तीर थामे
आह! के वो स्‍वर लिये
बच निकलने के रास्‍ते को थे खोजते
....
कामयाबी के शोर में वो हर कदम पे
असफलता का स्‍वाद चखते हुए
अपनी पीठ खुद थपथपाते
पूछते मूलमंत्र तुम्‍हारी सफलताओं का
माथे पे पसीने की बूंदों को  छिपाते
विस्मित नयनों को मूंदकर
कुछ चमत्‍कार की अभिलाषा रखते
लड़खड़ाते कदमों से
अपने शरीर का भार घसीटते चलते
ये दृश्‍य उनके लिए करूण है
पर मेरे लिये जैसे को तैसा
...
तुम साधक बन हर शब्‍द का
आह्वान करती मन के मंदिर में
एहसासों के दीप जलाती
मिटाती हर मन के क्‍लेश को
अलौकित करती हर भावना को
सद्भावनाओं के द्वार पर
प्रतीक बनती विनम्रता का
...
तुम्‍हारी तपस्‍या से मेरा मन
भाव-विह्वल हो नित दिन अभिषेक  करने को
अर्पित करता स्‍नेह, कभी सम्‍मान, कभी ध्‍यान
वंदित स्‍वरों की पुकार तुम तक पहुँचती जब
तुम मंद मुस्‍कान लिए
मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती ...!!!

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

जन्‍मदिन मुबारक हो .... अलंकार

अपनी तोतली जबान से उआ (बुआ) कहना शुरू करने वाला मेरा भतीजा अलंकार 'अंकू' और अपने मित्रों के बीच में 'Alan' के नाम से लोकप्रिय आज 15 अक्‍टूबर को 20 वर्ष पूरे करने जा रहा है, उंगली पकड़कर चलते-चलते दौड़ना सीखा और तोतली ज़बान कब मधुरता के गीत गाने लगी उसका प्रिय शौक गाना है पढ़ाई में अव्‍वल बी.ई. (सिविल) 5वें सेमेस्‍टर में अध्‍ययनरत अलंकार फोटो्ग्राफी भी पूरी तन्‍मयता से करता है ...  आज के दिन बस यही दुआ है उसकी हर ख्‍वाहिश पूरी हो ...

कुछ दुआओं के शब्‍दों को
रख तेरे सिरहाने
मैने तेरे जन्‍म का
सदका उतारा है
तू मेरा ही नहीं
मां-पापा के संग
हम सबका दुलारा है
 ...
कुछ शब्‍दों में स्‍नेह है,
कुछ में कामना है
तुम्‍हारी सफलता की
कुछ शब्‍दों के भाव
आशीषों संग चले हैं
कुछ शब्‍दों ने
मन्‍नतों के मंत्र भी पढ़े हैं
तब जाकर कहीं ये
भाव तुम्‍हारे हुए हैं
.... 
मन के आंगन में
देखो खुशियों के लम्‍हे आये है
दुआओं के शब्‍द हैं
जो आशीषों से झोली तुम्‍हारी
भरने आये हैं
हर लम्‍हे से मांगती हूँ
तुम्‍हारी खुशी
जिनसे महके फूलों सी
तुम्‍हारी जिन्‍दगी

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

जिन्‍दगी हर कद़म पर ....

कुछ विचार हैं मेरे मन के
तुम्‍हारे मन से उलझे हुए
कुछ बिखरे हैं
एक-एक कर समेटती जाती हूँ उन्‍हें
कई सवाल आंखों में आकर अटक से गए हैं
पूछने के लिए
सिर्फ पलकों का उठना तुम्‍हें देखना खामोशी से
तुम्‍हारा मौन कितनी लड़ाईयां लड़कर
पस्‍त हो चुका था
बिना कुछ कहे ही बुझा सा मन लिए
मेरी सवालिया नज़रों का  नज़रों से जवाब देता
बस कुछ लम्‍हे खामोशी के मुझसे मांग रहा था
....
सच कहूँ मैने हक़ से कभी
खुद से खुद की खुशी नहीं मांगी
तुम्‍हारे सवालों का जवाब क्‍या मांगती
हर बार की तरह
इस बार भी सब कुछ छोड़ दिया तुम्‍हारी चाहत पर
तुम्‍हारे यक़ीन पर अपने यक़ीन की मुहर लगा
सोचती हूँ एक से भले दो
बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि ले
संभव तो नहीं होता पर
एक रास्‍ता एक किरण जो अंधेरे को चीरती है
उसे भी बड़ी शिद्दत से इंतजार होता है
भोर का
...
जिन्‍दगी हर कद़म पर ज़ीना सिखाती है,
दुख हो, दर्द हो, धूप हो या फिर
हो नितान्‍त अकेलापन
वो धड़कनों में जीवन का संगीत लिए
अपनी लय में कद़म से कद़म मिला
जब थिरक़ती है तो सब कुछ
दृष्टिगोचर हो मनभावन हो जाता है
क्‍योंकि तब हम फ़र्क समझ चुके होते हैं
अच्‍छे और बुरे का
...

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

गनीमत है ...!!!

कुछ शब्‍दों के अर्थ कई बार
मन में अपना घर बना लेते हैं
अर्थ का अनर्थ करते शब्‍द
मन का चैन हर लेते हैं
ऐसे में एक शब्‍द
मेरे मन के आस-पास
परिक्रमा करता है
गनीमत है
इसका अर्थ मन को
इतना संतोष देता है
सोचती हूँ यदि ये न होता
कैसे मैं उग्र होते विचारों को
संयम का पाठ पढ़ाती 
...
ये शब्‍द अपने भावों को
संतुलित करते हैं
कुछ तोड़ते हैं जिज्ञासाओं को
तब मैं गनीमत की
अहसानमंद हो जाती हूँ
ये सब होना
तुमसे ही संभव हुआ है
जो असंभव को तुम ने
बांध रखा है अपने संयम से
एक लम्‍बी सांस जितना
अहसास है  गनीमत का होना
किसी कार्य के सम्‍पन्‍न होने
पर खुशी का प्रतीक है
इसका भाव
....
मन से निकली एक दुआ
एक श्रद्धा एक आहुति
एक विश्‍वास का पाना ही है  
गनीमत जिसका भाव
मेरे मन के
आस-पास परिक्रमा करता है
....

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

अवसरवादी चेहरे !!!

कभी अवसरवादी चेहरे देखे हैं तुमने,
मुस्‍कान सजी हुई आंखों में तलाश
एक अवसर की जहाँ कहीं भी मिले
लपकने को आतुर
दोनो हाथों की क्‍या कहें साष्‍टांग दण्‍डवत कर
सीधे चरणों में समर्पित
 ...
यह अवसरवादिता
अपनी घुसपैठ बड़ी तेजी से करती है
इसकी जड़ें गहरी होती हैं
इनपर आवश्‍यकता नहीं होती सिचंन की
यह तो बस सदैव चिंतन करते हैं
तर्क तो बिल्‍कुल नहीं करते
जो भी आपने कहा सब शिरोधार्य
आखिर मिला हुआ अवसर गंवाया क्‍यूँ जाये ??
...
विश्‍वास करते नहीं विश्‍वास दिलाते हैं
अवसर देते नहीं अवसर लिया करते हैं कुछ पाने का
श्रेष्‍ठ होते नहीं ये  बताया करते हैं श्रेष्‍ठता है तुममे
हर वर्ष एक बुत रावण का जलाकर
अवसरवादिता को नया चोला पहना
हमारे बीच  उतार कर राम के संकल्‍पों की दुहाई
दिलाते लोग नया बहाना गढ़ ही लेते हैं
...
वक्‍़त रहते संभल गए तो ठीक है
वर्ना इनका उद्धार तो हो ही जाएगा
तुम्‍हारी तुम जानना
घुटनों से पेट ढकता आदमी
भ्रष्‍टाचार को दोष देते हुए
ईमानदारी की तालियां पीटता तो है
पर एक हाथ से तो ताली भी नहीं बजती
कसमसाहट को व्‍यक्‍त करता है
भूख जब जि़गर कचोटती है
तो ख़ालिस पानी भी सीना छलनी कर देता
और दो बूंदे पलकों पर
बनकर नमीं उतर आती है !!!

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

कुछ रिश्‍ते .... (4)

कुछ रिश्‍ते ऋणी होते हैं,
जिनकी कितनी भी
किस्‍ते अदा की जायें
ब्‍याज़ चुकाया जाये
फिर भी इनका
ऋण चुकता नहीं होता
...
कुछ रिश्‍ते अनमोल होते हैं
इनका मोल चुकाने के लिए
बेशकीमती खजाने
कम पड़ जाते हैं
....
कुछ रिश्‍ते
मध्‍यमा, अनामिका
और कनिष्ठिका न‍हीं
बल्कि तर्जनी होते हैं
जिन्‍हें पकड़कर कोई
बच्‍चा अपना पहला
कदम रखता है
विश्‍वास से
...
कुछ रिश्‍तों में बंधन नहीं होता
कोई भी
फिर भी वे बंधे होते हैं
मजबूती से बिना किसी डोर के
.....

बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

तर्पण श्रद्धा का ...










अर्पित है जल की
प्रत्‍येक बूँद से आपको
इस श्राद्ध में
तर्पण श्रद्धा का
मां - पापा ...
भावना की नन्‍हीं सी
अंजुरि मेरी में
जौ, तिल, फूलों के संग
मिश्रित है गंगा का
पावन जल
आपकी तृप्ति के लिए
...
भीगा सा मन
नमी आंखों में
भावनाओं की करूणा  भरे
शब्‍द जिभ्‍या पर लिए मैं
श्रद्धान्‍वत्  हूँ पूर्ण आस्‍था से
यह मान आप जहां भी होंगे
तृप्‍त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
...

सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

शब्‍दों का मौन !!!














कुछ शब्‍द भीग गये हैं
ना जाने क्‍या हुआ
उनका मौन
सुना नहीं था किसी ने
या फिर चीखते हुए
गला रूंध गया था
हिचकियों के स्‍वर
भी घायल थे
हैरान हूँ !
भीगे शब्‍द भीगा सा मन लिए
कुछ भी कहने में  असमर्थ
उनके अर्थों से बेखबर
तुम हर शब्‍द को
अपना ही अर्थ देते रहे
कभी सीमाओं में बांधते
कभी लांघ जाते स्‍वयं ही
उत्‍तेजित हो हर दीवार
कसमसाते शब्‍द
बस सवालों के दायरे में
एक मानसिक द्वंद लिए
कभी सहते आघात
कभी बन जाते घात
कभी तपस्‍वी की तरह
साधक हो जाते
कभी होकर बावरे
निरर्थक से बिखर जाते
यहां-वहां
.........
जब भी कुछ बिखरा है
मैने अपनी दृष्टि को स्थिर कर
हथेलियों को आगे कर दिया
फिर वह तुम्‍हारी पलको से
गिरा कोई आंसू था
या कोई टूटा हुआ ख्‍वाब
मैने हर बार सच्‍चे मन से
बस यही चाहा
तुम्‍हारी चाहत साकार हो
तुम कोई ख्‍वाब देखो तो वह
अधूरा न रहे
कुछ शब्‍द भीग गये हैं
ना जाने क्‍या हुआ
उनका मौन
सुना नहीं था किसी ने
....

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....