अर्पित है जल की
प्रत्येक बूँद से आपको
इस श्राद्ध में
तर्पण श्रद्धा का
मां - पापा ...
भावना की नन्हीं सी
अंजुरि मेरी में
जौ, तिल, फूलों के संग
मिश्रित है गंगा का
पावन जल
आपकी तृप्ति के लिए
...
भीगा सा मन
नमी आंखों में
भावनाओं की करूणा भरे
शब्द जिभ्या पर लिए मैं
श्रद्धान्वत् हूँ पूर्ण आस्था से
यह मान आप जहां भी होंगे
तृप्त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
...
बहुत सुंदर भावना से लिखी कविता.
जवाब देंहटाएंभावना की नन्हीं सी
जवाब देंहटाएंअंजुरी से .....
तर्पण श्रद्धा का
..........................
आप जहाँ भी होंगे.......
बेटी की शादी हुई, बेटा भी परदेश |
जवाब देंहटाएंजब तक रहते पास में, माने हर आदेश |
माने हर आदेश, परोसे भोजन पानी |
बढती जाए आयु, चिंत-रेखा पेशानी |
शिथिल बदन हो जाय, खाट पर काया लेटी |
पानी रही पिलाय, हमारी प्यारी बेटी ||
भीगा सा मन
जवाब देंहटाएंनमी आंखों में
भावनाओं की करूणा भरे
शब्द जिभ्या पर लिए मैं
श्रद्धान्वत् हूँ पूर्ण आस्था से
यह मान आप जहां भी होंगे
तृप्त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
आप के साथ मैं भी यही कामना कर रही ............ !!
Nihayat khoobsoorat rachana!
जवाब देंहटाएंइत्ते सुन्दर पोस्ट की बधाई दीदी
जवाब देंहटाएंश्रद्धा सुमन बहुत खूबसूरती से भावों में पिरोये हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सदा....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी..नेह से श्रद्धा से भीगी पंक्तियाँ....
बडों का आशीष बना रहे..
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंश्रद्धा भाव से ओत-प्रोत सुन्दर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंश्रद्धा से भीगी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवाह सदा जी वाकई श्रद्धा में भीगी भीनी-२ खुशबू फैलाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंइश्वर आपकी यह साध पूरी करे ,सब कुछ तो है पर फिर भी एक कमी रह जाती है और यही एक माध्यम है जो हमें उन्सबसे बांधे रखता है |
जवाब देंहटाएंश्रद्धा भाव से परिपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंस्नेहिल शब्दों का तर्पण ... इससे विशिष्ट कोई तर्पण नहीं
जवाब देंहटाएंलगा हमने भी अपने लोगों को याद कर लिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
शब्द जिभ्या पर लिए मैं
श्रद्धान्वत् हूँ पूर्ण आस्था से
यह मान आप जहां भी होंगे
तृप्त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
sundar bhavnaon ko ukerti rachna .aabhar
जवाब देंहटाएंsundar Praarthnaa
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्रद्धा से ही श्राद्ध बना है!
अर्पित है जल की
जवाब देंहटाएंप्रत्येक बूँद से आपको
इस श्राद्ध में
तर्पण श्रद्धा का
मां - पापा ...
भावना की नन्हीं सी
अंजुरि मेरी में
जौ, तिल, फूलों के संग
मिश्रित है गंगा का
पावन जल
आपकी तृप्ति के लिए
सदा जी श्रद्धा में भीगी भीनी खुशबू फैलाती सुन्दर रचना
श्रद्धा भाव से परिपूर्ण सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंबहुर अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंरखेंगे नहीं वो हमेशा रखते हैं
जवाब देंहटाएंमा बाप बच्चों को कभी भी
अकेला कहाँ कब रखते हैं
शरीर माना की छोड़ देते हैं
आत्मा अपने वो हमेशा ही
सारे बच्चों के दिल के
हमेशा ही नजदीक रखते हैं !
बहुत सुन्दर भाव;
जवाब देंहटाएंवस्तुतः 'श्राद्ध और तर्पण'=श्रद्धा +तृप्ति। आशय यह है कि जीवित माता-पिता,सास-श्वसुर एवं गुरु की इस प्रकार श्रद्धा-पूर्वक सेवा की जाये जिससे उनका दिल तृप्त हो जाये। लेकिन पोंगा-पंथियों ने उसका अनर्थ कर दिया और आज उस स्टंट को निबाहते हुये लोग वही कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंपोंगापंथी सिर्फ आवेश में आते हैं,डराते-धमकाते हैं....सत्य अपनी जगह सामर्थ्यनुसार श्रद्धा के फूल अर्पित करता है.
हटाएंसभी पूर्व जनों को तर्पण नमन .बढ़िया मौजू रचना है एक परम्परा से रु -बा -रु करवाती .
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंश्रद्धान्वत् हूँ पूर्ण आस्था से
जवाब देंहटाएंयह मान आप जहां भी होंगे
तृप्त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
baqhut hi sunder bhav
rachana
अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंश्रद्धा भाव से समर्पित अत्यंत भावमयी प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंनमन पितरों को ...
जवाब देंहटाएंसुबह जल अर्पित करते समय लगता है, वे पास हैं ...
जवाब देंहटाएंआभार इस रचना के लिए !