नियमों में बंधकर
चलते - चलते मन ऊब सा गया है
खुद को जैसे मैं समझने लगा हूँ
लकीर का फ़कीर
उसी क्रम ... में चलते - चलते
आज सारे नियमों को तोड़
सारे कायदों को छोड़
मन के फ़ायदे का सौदा करने निकला हूँ
...
जिन्दगी की किताब से मैने
समझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन
...
तुम्हारी आदर्शवादी बातों में
कभी - कभी जलने की बू भी होती थी
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
अच्छा है ... पर
वह भी हर एक को नहीं आता
ना ही सबके काम पूरे हो पाते हैं
गौर करना बजती चुटकी के साथ
दूसरा हाथ तुम्हें उसकी पीठ पर भी रखना होता है
तभी चुटकी का बजना सार्थक होता है !!!
....
चलते - चलते मन ऊब सा गया है
खुद को जैसे मैं समझने लगा हूँ
लकीर का फ़कीर
उसी क्रम ... में चलते - चलते
आज सारे नियमों को तोड़
सारे कायदों को छोड़
मन के फ़ायदे का सौदा करने निकला हूँ
...
जिन्दगी की किताब से मैने
समझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन
...
तुम्हारी आदर्शवादी बातों में
कभी - कभी जलने की बू भी होती थी
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
अच्छा है ... पर
वह भी हर एक को नहीं आता
ना ही सबके काम पूरे हो पाते हैं
गौर करना बजती चुटकी के साथ
दूसरा हाथ तुम्हें उसकी पीठ पर भी रखना होता है
तभी चुटकी का बजना सार्थक होता है !!!
....
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन .... wo kagaz ki kashti barish ka panni....
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन ..सच है आज के इस झंझावत से ऊबते है तो वो निश्छल बचपन याद आजाता है..बहुत सुन्दर..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या बात है
तुम्हारी आदर्शवादी बातों में
जवाब देंहटाएंकभी - कभी जलने की बू भी होती थी
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
अच्छा है ... पर
वह भी हर एक को नहीं आता
ना ही सबके काम पूरे हो पाते हैं
गौर करना बजती चुटकी के साथ
दूसरा हाथ तुम्हें उसकी पीठ पर भी रखना होता है
तभी चुटकी का बजना सार्थक होता है !!!
....बहुत खूब!
Bilkul sahee bhavna hai....
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव ... isi ki koshish hai
काश बचपन की मासूमियत याद करने के लिये हम भी समझौतों के पन्नों की नाव बना पाते।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव-
जवाब देंहटाएंबधाई ||
एक विचार आया ||
उड़ा चुटकियों पर रहा, चालू चुटकी बाज |
करूँ चुटकियों में ख़तम, तेरी यह आवाज |
तेरी यह आवाज, चुटकना चुटकी भरना |
समझौते का साज, तोड़ के व्यर्थ अकड़ना |
है मेरा यह स्नेह, गेह रूपी यह नौका |
खेती बिन संदेह, कहो जब दूँगी चौका |
जिंदगी की किताब से समझौते का पन्ना फाड़कर कागज की नाव बनाना... वाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति....
सादर।
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन ..........waah bahut bahut sundar ...mere dil ki baat yahan kaise aa gayi :) behtreen
इतनी व्यावहारिक कविता और इतने सहज ढंग से आपने व्यक्त कर दिया है कि सचमुच विश्वास नहीं होता कि इतने कम शब्दों में कही जा सकती है इतनी गहरी बात!!
जवाब देंहटाएंमुक्त जीवन खुशहाल जिंदगी ...
जवाब देंहटाएंनियमों का बंधन और बंधन के नियम दोनों के बीच तालमेल जरुरी है
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
बहुत ही सुंदर .....
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आदर्शवादी बातों में
जवाब देंहटाएंकभी - कभी जलने की बू भी होती थी
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
अच्छा है ... पर
वह भी हर एक को नहीं आता
ना ही सबके काम पूरे हो पाते हैं
बहुत बेहतरीन लाजबाब प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
दूसरा हाथ पीठ पर भी रखना होता है..वाह!
जवाब देंहटाएं..कमाल की अभिव्यक्ति! अच्छी लगी कविता।
टंकण त्रुटि..दूसरी पंक्ति में 'मन ऊब' सा।
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन
...
तीनों नज़्म खूबसूरत .... यह विशेष पसंद आई
क्या बात है सदा जी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी.
चुटकी की सार्थकता का ज्ञान कराती.
कभी बिना नियमों के चलना भी हल्का उड़ना सा लगता है , चाहे जिधर बह जाएँ !
जवाब देंहटाएंगौर करना बजती चुटकी के साथ
जवाब देंहटाएंदूसरा हाथ तुम्हें उसकी पीठ पर भी रखना होता है
तभी चुटकी का बजना सार्थक होता है !!!bahut achche.....
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन
...
बहुत खूब! काश ऐसा कर पाते..
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
अत्यंत भावपूर्ण रचना.....
चुटकी के साथ दिए निर्देश के पीछे प्रेम की भावना बहुत आवश्यक है. अन्यथा चुटकी केवल आवाज़ बन कर रह जाती है. बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ....
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
महज़ उसे कागज़ की नाव
जहां पानी होगा
बह निकलेगी वह नाव
और उसके साथ होगा मुस्कराता बचपन
खुबसूरत बात खुबसूरत अंदाज़ में कही गई
तुम्हारी आदर्शवादी बातों में
जवाब देंहटाएंकभी - कभी जलने की बू भी होती थी
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
अच्छा है ... पर ......
चुटकी बजाते ही जिन्दगी गुजर जाये तो क्या बात है ...
जिन्दगी की किताब से मैने
जवाब देंहटाएंसमझौते का पन्ना फाड़कर बना दिया है
बहुत ही सुन्दर है पोस्ट।
सीमा जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'सदा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 9 अगस्त को 'चुटकी का बजना सार्थक होता है...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
चुटकियाँ बजाकर काम कराने का ढंग
जवाब देंहटाएंअच्छा है ... पर
वह भी हर एक को नहीं आता
ना ही सबके काम पूरे हो पाते हैं
गौर करना बजती चुटकी के साथ
दूसरा हाथ तुम्हें उसकी पीठ पर भी रखना होता है
तभी चुटकी का बजना सार्थक होता है !!!
अनुपम भाव संयोजन सार्थक रचना....